विद्यासागर का जवाब

Vidyasagar's answer
बात उन दिनों की है जब पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर देश में शिक्षा के प्रसार में लगे हुए थे। फोर्ट विलियम कॉलेज के प्रिंसिपल मार्शल ने उनसे इस कॉलेज में एक अहम पद की जिम्मेदारी संभालने का अनुरोध किया। विद्यासागर ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह अपने ज्ञान का उपयोग देश की गरीब और अशिक्षित जनता को जागरुक बनाने में करना चाहते हैं। वह नौकरी करके इसे सीमित नहीं करना चाहते। मार्शल के यह विश्वास दिलाने पर कि इस नौकरी से उनके अभियान पर कोई असर नहीं पड़ेगा, उन्होंने यह पद स्वीकार कर लिया।
इस कॉलेज में सबसे पहला सुधार उन्होंने यह कराया कि अब सभी जातियों के बच्चों को इस में दाखिला मिलने लगा। उन दिनों इंग्लैंड से सिविल सर्विस के लिए जो अंग्रेज भारत भेजे जाते थे उन्हें इस कॉलेज में प्रशिक्षण दिया जाता था। उन्हें हिंदी की परीक्षा पास करनी पड़ती थी। इसके बगैर उनका प्रशिक्षण पूर्ण नहीं माना जाता था। उनकी यह परीक्षा विद्यासागर जी लिया करते थे। यह कार्य वह पूरी निष्ठा के साथ करते थे। एक बार मार्शल ने अपने एक रिश्तेदार को हिंदी की परीक्षा में पास करने की सिफारिश की। पर सिद्धांतवादी विधासागर ने साफ कहा कि मैं इस तरह की बेईमानी नहीं कर सकता। मेरे ऐसा करने से अयोग्य लोग प्रशासन में आ जाएंगे जो सही नहीं होगा और भारतीय जनता को इसका फल भुगतना पड़ेगा। अगर आपको अपना यह काम कराना है तो पहले मेरे स्थान पर किसी दूसरे परीक्षक की नियुक्ति करानी होगी वरना मेरे इस पद पर रहते हुए तो मेरे से यह अन्याय हो नहीं पाएगा। पंडित ईश्वर चंद्र विधासागर जी का यह खरा जवाब सुनकर मार्शल की बोलती बंद हो गई। इसके बाद उसने फिर कभी ऐसी कोई सिफारिश नहीं की।

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