आखिर तीन वर्ष के बाद अमेरिका व अन्य शक्तिशाली देशों के सहयोग से ईराक सेना ने आईएसआईएस के कब्जे से मोसूल को जीत लिया है। तीन वर्ष तक मोसूल ने अपने बदन पर बहुत कहर झेला है। हजारों लोगों की जानें गई।
तबाही के बाद भी मोसूल की आजादी पर वहां के लोगों के चेहरे खिल उठे हैं। मोसूल वासियों की खुशी इस बात का प्रमाण है कि लोग दु:खों को भुलाकर अमन-शांति से भरपूर खुशहाल जीवन जीने के लिए कितने ज्यादा व्याकुल हैं।
लोगों की अमन-शान्ति से रहने की इच्छा ही आईएसआईएस की हार का बड़ा कारण बनी है। यह घटना चक्र पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा भी है कि आतंकवाद के जोरदार हमलों के बावजूद यदि आमजन, सरकार एवं सैन्य बलों में आजादी पाने की इच्छा शक्ति हो तो सच्चाई की ही जीत होती है। आईएसआईएस सिर्फ ईराक ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन गया था।
नब्बे देशों के 20हजार से भी अधिक युवक आईएसआईएस में भर्ती हो गए थे। भारत में भी आईएसआईएस ने अपना जाल फैंला कर युवाओं को फंसाने की कोई कोशिशें की। आईएसआईएस की हार का बड़ा कारण इसके औरतों, बच्चों पर जुल्मों सितम भी बने।
निर्दोष विदेशी नागरिकों के कत्ल करके उनके वीडियो जारी करना, औरतों का शारीरिक शोषण एवं उन्हें गुलाम बनाने की घिनौनी कारवाईयों को सच्चे मुस्लिमानों ने भी स्वीकार नहीं किया। आईएसआईएस ने अपने स्वार्थों एवं जुल्मो-सितम को जेहाद का रूप देना चाहा, जिसे इस्लाम धर्म के प्रतिनिधियों द्वारा बुरी तरह से नकार दिया गया।
अरब देश जो इस्लाम के सबसे बड़े संरक्षक राष्ट्र हैं, वह भी आईएसआईएस खिलाफ जंग के लिए डट गए। तीस से ज्यादा मुस्लिम राष्ट्रों ने आतंक के खिलाफ अपना संगठन खड़ा कर लिया।
भारत-अमेरिका ने आतंक के खिलाफ प्रचार कर नैतिक व धार्मिक तौर पर मिलने वाली अन्जान मदद को रोका। मोसूल में जीत आतंकवाद के खिलाफ जंग का अंत नहीं है, बल्कि यह एक चरण पूरा होने जैसा ही है।
आतंक अभी भी विश्व के कई हिस्सों को बर्बाद कर रहा है। आतंक का कोई एक रूप नहीं है, यह बहुत से चेहरे लगाए हुए है। आतंक पर पूरे विश्व को अपने दृष्टिकोण एक सामान करने होंगे।
चीन, रूस व अमेरिका जैसी बड़ी महां शक्तियों को दुनिया के अशांत हिस्सों में अपना समर्थन देने से पहले यह सुनिश्चत करना होगा कि यह राजनीतिक विरोधता के चलते किसी आतंकी या आतंकी संगठन का समर्थन नहीं करेंगे।
क्योंकि सीरिया, पाकिस्तान के सन्दर्भ में विश्व शक्तियों में मतभेद है। मोसूल से उन देशों को भी सीख लेनी चाहिए, जो आतंक का पोषण करते हैं। जीत सदैव सच्चाई की होती है।
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