दस सालों बाद भारतीय कूटनीति की जीत

Ten years after the victory of Indian diplomacy

भारत के दस वर्षों के कूटनयिक प्रयासों के बाद हाल ही में फ्रांस, अमरीका और ब्रिटेन के समर्थन से जैश-ए-मोहममद के प्रमुख अजहर मसूद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया है। इससे पूर्व जैश-ए-मोहम्मद ने दावा किया था कि 26 फरवरी को पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला उसने किया है जिसमें 50 रक्षाकर्मी मारे गए थे। सुरक्षा परिषद के तीन शक्तिशाली सदस्यों ने 1267 प्रतिबंध समिति के अंतर्गत अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने पर बल दिया। उन्होने चीन पर दबाव डाला कि वह समिति के प्रस्ताव पर तकनीकी रोक को हटा दे।

चीन ने अजहर मसूद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर वीटो किया था और 1267 समिति के प्रस्ताव पर रोक लगायी थी। अमरीका ने चेतावनी दी थी कि यदि चीन द्वारा यह तकनीकी रोक नहंी हटायी गयी तो वह इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाएगा और यदि यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में ले जाया जाता और चीन उस पर फिर से वीटो करता तो फिर चीन को आतंकवाद के समर्थक के रूप में देखा जाता। यह एक वैश्विक महाशक्ति बनने की चीन की महत्वाकांक्षा के मार्ग में आडे आता। चीन और अमरीका के बीच पहले ही व्यापार युद्ध चल रहा है और इस मामले में चीन हारता हुआ दिखायी दे रहा है। चीन ने अमरीका का मुकाबला करने का जल्दबाजी में निर्णय लिया। शी जिनपिंग ने यह अंदाजा नहीं लगाया कि वह अमरीका के साथ व्यापार युद्ध के लिए तैयार नहं है। अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने का पाकिस्तान, भारत और चीन के लिए क्या महत्व है? अजहर मसूद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने का तात्पर्य है कि उसकी संपत्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा, उसके बैंक खाते सील कर दिए जाएंगे जिनमें कि वह आतंकवाद के प्रयोजन के लिए चंदा प्राप्त कर रहा था।

उसकी यात्रा करने पर रोक लग जाएगी, उसके आवागमन पर रोक लगेगी और उस पर निगरानी होगी तथा उसे नजरबंद रखा जाएगा। उस पर हथियारों का प्रतिबंध भी होगा। इसका तात्पर्य है कि वह न हथियार खरीद सकता है और न ही उन्हें किसी आतंकवादी समूह को दे सकता है। अजहर मसूद आतंकवाद के वित्त पोषण, योजना और आतंकवादी गतिविधियों में सहायता देने का कार्य करता था साथ ही वह हथियारों की आपूर्ति भी करता था। भारत के लिए इसका क्या महत्व है? भारत के लिए यह एक कूटनयिक जीत है। कुछ लोग यह कहेंगे कि यह एक प्रतीकात्मक जीत है क्योंकि पाकिस्तान के लिए अजहर मसूद का महत्व कम हो गया है। वह बीमार ओर अप्रभावी है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अकबरद्दीन ने कहा है कि हमारे लिए यह एक महत्वपूर्ण परणिाम है जिसका प्रयास हम वर्षों से कर रहे हैं। फ्रांस का कहना था यह फ्रांस के अनेक वर्षों के प्रयासों का फल है। फ्रांस भारत, ब्राजील और जापान को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता दिलाने के पक्ष में है। भारत इसे अपनी कूटनयिक जीत कह सकता है क्योंकि वह तीन बडे स्थायी सदस्यों तथा 10 गैर-अस्थायी सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहा है। भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वर्तमान अध्यक्ष इंडोनेशिया का भी समर्थन मिला

जिन्हें 2018 में भारत ने भी समर्थन दिया था। सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ने एक 1 मई तक इस निर्णय को लागू करने का निर्णय दिया था क्योकि अन्य सदस्यों ने चीन को तकनीकी रोक हटाने के लिए 23 अप्रैल का समय दिया था अन्यथा अमरीका 1267 समिति के प्रस्ताव को नजरंदाज कर एक अलग प्रस्ताव पेश कर देता। इसीलिए चीन इस दबाव में झुका और उसने केवल इस बात पर बल दिया कि वह इस प्रस्ताव में पुलवामा हमले का उल्लेख हटा दे। 1267 समिति के निर्णय से पाकिस्तान पर अब सबकी नजर रहेगी। अंतर्राष्ट्रीय जगत अब उसे आतंकवादिदयों के ठिकाने के रूप में देखेगा।

पाकिस्तान ने 1267 समिति के निर्णय की उपेक्षा करते हुए दावा कि या उसने अजहर मसूद के विरुद्ध अनेक कदम उठाए हैं। इसके बाद अब सब देशों का ध्यान पाकिस्तान में रह रहे 138 अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों पर है। इसके अलावा आतंकवाद के वित्त पोषण पर निगरानी रखने वाला वित्तीय कार्य बल अब पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करेगा और इसका पाकिस्तान को बडा खामियाजा भुगतना पडेगा। इस प्रकरण में चीन की अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता कम हुई है। उसे एक गलत कदम के समर्थक के रूप में देखा गया हालांकि वह पाकिस्तान को भारत के मुकाबले खड़ा करना चाहता है।

चीन चाहता है कि भारत आगे न बढ़े ताकि एशिया और अन्य स्थानों में चीन की दादागिरी पर कोई प्रश्न न उठा सके। इसमें अमरीका की महत्वपर्णू भूमिका रही है। वह भारत को अपने पक्ष में रखना चाहता था और चीन को घेरना चाहता था। अमरीका चाहता है कि भारत चीन की अंतर्राष्ट्रीय महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगाने में उसकी सहायता करे। अमरीका ने पुलवामा हमले के बाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया ह्यह्यसुरक्षा परिषद पुलवामा हमले की निंदा करती है

और सभी राष्ट्रों से आग्रह करती है कि वह भारत के साथ सहयोग करे तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरों का मुकाबला करे। अमरीका इस बात पर 23 तारीख की अंतिम समय सीमा पर अडा हुआ था और 1 मई के प्ररकण ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि अमरीका अभी भी विश्व की एकमात्र महाशक्ति है और चीन को वहां तक पहंचने में बहुत समय लगेगा। इस वर्ष मार्च में अमरीका के कहने पर सुरक्षा परिषद के तीन सदस्यों ने 1267 समिति में प्रस्ताव पेश किया। जिसके तहत 1999 में अल कायदा पर प्रतिबंध लगाए गए थे।

इस समति में 15 सदस्य है। जिनमें सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य भी शामिल है। और यह समति आम सहमति के आधार पर निर्णय लेती है। कोई भी सदस्य निर्णय पर रोक लगा सकता है और इस प्रक्रिया का लाभ उठाकर चीन इस पर निर्णय नहंी होने दे रहा था। एक बार लगायी गयी रोक छह माह तक मान्य होती है। भारत को यह समझना होगा कि मसूद अजहर को सुरक्षा पषिद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में चीन द्वारा अडचन पैदा करने से यह स्पष्ट हो गया है कि चीन और पाकिस्तान के बीच अपवित्र सांठगांठ है और भारत उसका मित्र नहंी है। इसके अलावा चीन भारत के बडे भूभाग पर अपना दावा भी करता है। अब मसूद प्रकरण से यह भी स्पष्ट हो गया है कि चीन की तानाशाही महत्वाकांक्षा और उसके राजनीति के मॉडल से चिंतित अन्य देश भारत को समर्थन दे सकते हैं।

सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने 1267 प्रस्ताव को स्वीकृति दिलाने में श्रीलंका में भीषण आतंकवादी हमले में भी मदद की। मेरा मानना है कि इस हमले के बाद भारत को श्रीलंका की हर संभव सहायता करनी चाहिए। भारत संपूर्ण विश्व में आतंकवाद का विरोध कर रहा है इसलिए अपने पडोसी देशों में भी उसे इसका मुकाबला करना चाहिए। दूसरी ओर चीन आतंकवाद के पक्ष में खडा दिखायी देता है। इससे भारत सहित अन्य देश उससे अलग थलग हो जाएंगे। कुछ विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि क्या इस मामले में चीन के साथ कोई लेनदेन किया गया है जिसका पता 23 मई को नई सरकार बनने के बाद ही चलेगा। इन अटकलों को दूर रखते हुए विश्व समुदाय चाहता है कि एशिया में एक मुख्य शक्ति के रूप में चीन का स्थान भारत ले। विश्व समुदाय ने 50 के दशक में भारत को यह अवसर दिया था जिसे उसने खो दिया। क्या अब भारत इस अवसर का लाभ उठाएगा?

डॉ. डीके गिरी