मजबूती का संकेत है उपचुनावों में मिली जीत

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Elections: पंजाब में सितंबर में होंगे पंचायती चुनाव, सरकार तैयार

सामान्यत: उपचुनाव परिणामों को वर्तमान और भावी राजनीति के महत्वपूर्ण संकेत के रूप में नहीं लिया जाता रहा। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति बदली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के चुनावी उत्थान के बाद से जिस तरह का राजनीतिक वातावरण बना है उसमें हर चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है। विश्लेषकों ने जिस तरह भाजपा के कहीं उपचुनाव हारने को उसके अंत की शुरूआत का संकेतक बताना शुरू किया उससे भी यह स्थिति पैदा हुई है। छ: राज्यों के सात विधानसभा उपचुनाव के परिणाम का विश्लेषण आपके दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। सात में से चार स्थान भाजपा ने जीते और यह उसके जनाधार के मजबूत बने रहने का द्योतक है। पहले उसके पास तीन स्थान थे।

कांग्रेस हरियाणा और तेलंगाना की अपनी सीटें गंवा बैठी, तो इसके राजनीतिक मायने हैं और वे निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं, तो इन परिणामों से भविष्य की राजनीति की क्या तस्वीर निकलती है? कुल मिलाकर इन परिणामों के निहितार्थ यही हैं कि सभी पार्टियों के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा अंतर नहीं आया है। भाजपा अपने इन्हीं जनाधार की बदौलत लोकसभा चुनाव में 303 सीटें पाने में सफल हुई थी। जाहिर है, इन परिणामों के आधार पर 2024 की दृष्टि से भाजपा के लिए किसी भी तरह निराशाजनक निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता। लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के दुर्दिन कायम हैं और भाजपा की विजय श्रृंखला बनी हुई है। इन परिणामों के आधार पर वहां से भाजपा के नुक्सान की कतई संभावना नहीं व्यक्त की जा सकती। इसी तरह बिहार में जद- यूके अलग होने से भाजपा के नुक्सान की संभावना भी तत्काल शत प्रतिशत स्थापित नहीं होती।

इसका मतलब हुआ कि आगामी चुनाव में दोनों का गठबंधन रहेगा और यह शक्तिशाली होगा। दक्षिण के तेलंगाना में भाजपा ने 2019 में 4 लोकसभा सीटें जीतीं थीं। वर्तमान चुनाव में टीआरएस को जिस तरह भाजपा ने टक्कर दी है उससे अभी यह मानना कठिन है कि उसका जनाधार घट गया होगा। हालांकि इस समय टीआरएस भाजपा और कांग्रेस दोनों को तोड़ने में लगी है। उसमें थोड़ी सफलता उसे मिल रही है। इन परिणामों में सबसे बुरी दशा कांग्रेस की रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तेलंगाना में काफी समय रही। परिणाम बताता है कि इससे उसके जनाधार में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई। कम से कम इन परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि 2024 में कांग्रेस 2019 से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी।

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