विश्वभर के डॉक्टरों ने कोरोना के दौर में शाकाहारी भोजन को ही उत्तम स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ माना है। फल-फूल, सब्जी, विभिन्न प्रकार की दालें, बीज एवं दूध से बने पदार्थों आदि से मिलकर बना हुआ संतुलित आहार भोजन में कोई भी जहरीले तत्व नहीं पैदा करता एवं कोरोना के वायरस से लड़ने में सक्षम बनाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जब कोई जानवर मारा जाता है तो वह मृत-पदार्थ बनता है। यह बात सब्जी के साथ लागू नहीं होती। यदि किसी सब्जी को आधा काट दिया जाए और आधा काटकर जमीन में गाड़ दिया जाए तो वह पुन: सब्जी के पेड़ के रूप में उत्पन्न हो जाएगी। क्योंकि वह एक जीवित पदार्थ है। लेकिन यह बात एक भेड़, मेमने या मुरगे के लिए नहीं कही जा सकती।
अन्य विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह इतना भयभीत हो जाता है कि भय से उत्पन्न जहरीले तत्व उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे जहरीले तत्व मांस के रूप में उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं और ऐसे लोग कोरोना के भय से अधिक ग्रस्त होते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। हमारा शरीर उन जहरीले तत्वों को पूर्णतया निकालने में सामर्थ्यवान नहीं हैं। नतीजा यह होता है कि उच्च रक्तचाप, दिल व गुरदे आदि की बीमारी मांसाहारियों को जल्दी आक्रांत करती है। इसलिए कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाने के लिये यह नितांत आवश्यक है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हम पूर्णतया शाकाहारी रहें। प्रकृति ने मनुष्य को स्वभाव से ही शाकाहारी बनाया है। कोई भी श्रमजीवी मांसाहार नहीं करता, चाहे वह घोड़ा हो या ऊँट, बैल हो या हाथी। फिर मनुष्य ही अपने स्वभाव के विपरीत मांसाहार कर संसार भर की बीमारियां, विकृतियां एवं कोरोना महामारी को पनपने का खतरा क्यों मोल ले रहा है?
मियामी यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर एवं ‘फिलॉस्फर एंड द वुल्फ’ और ‘एनिमल्स लाइक अस’ जैसी पुस्तकों के लेखक मार्क रौलैंड्स चेतना और पशु अधिकारों संबंधी अपने शोध के माध्यम से दुनिया को चेताया है कि मांसाहार कोरोना महामारी से भी अधिक बुरे नतीजे ला सकता है। वे कहते है कि मुझे लगता है, लोगों को समझाने की जरूरत है कि मांसाहार से उन्होंने अपना कितना नुकसान कर लिया है। यह न केवल हृदय संबंधी बीमारियां, कैंसर, डायबिटीज और मोटापा बढ़ा रहा है बल्कि पर्यावरण संबंधी कई समस्याएं भी पैदा कर रहा है, जिन्हें हम महसूस कर रहे हैं। मांसाहार के कारण बड़े पैमाने पर जंगल काटे जा रहे हैं और पृथ्वी के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। तभी कोरोना के कहर के बीच इंसान के खुशहाल जीवन एवं निरोगता के लिये खानपान में बदलाव की स्वर दुनियाभर में सुनाई दे रहे हैं। मांसाहार को लेकर भी नजरिया बदल रहा है, मांसाहार के बुरे नतीजों को लेकर दुनिया चिन्ताग्रस्त एवं सावधान हुई है। ऐसा प्रतीत होता है शाकाहार का प्रचलन तेजी से बढ़ेगा क्योंकि कोविड-19 वायरस भी, जो अभी पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका है, पिछली शताब्दी में फैली कई महामारियों की तरह इसी मांसाहार की आदत की ही देन है। आप किसी के साथ गलत करेंगे तो कोई आपके साथ भी बुरा करेगा। मांसाहार एक बुरी आदत है जिसका बुरा नतीजा ही निकलता है।
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