अनेक बीमारियों की औषधियां भी हैं सब्जी मसाले

पाचन तंत्र को बनाते हैं मजबूत

मैसूर स्थित केन्द्रीय खाद्य तकनीक अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक डॉक्टर कृष्णापूरा श्रीनिवासन कहते हैं, ‘मसाले पाचन तंत्र को मजबूत करने के साथ-साथ पेट की बीमारियों में गुणकारी हैं और कुछ मसाले एंटीसेप्टिक यानि रोगाणु रोधक का काम भी करते हैं। जीरा, लौंग, अदरक, इलायची, सौंफ, अजवायन, हींग आदि मसाले केवल भोजन को स्वादिष्ट व गंधयुक्त ही नहीं बनाते बल्कि ये बहुत सी बीमारियों को दूर करके शरीर को स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट एवं सुन्दर भी बनाते हैं। इनमें से बहुत से मसाले ऐसे भी हैं जो रक्त में जमे ट्राईग्लिसराइड के जमाव को कम करके रक्त को पतला बनाए रखते हैं, जिससे रक्तचाप सामान्य बना रहकर रक्त परिभ्रमण करता रहे।

कुछ ऐसे भी मसाले होते हैं जो रक्त शर्करा का स्तर सामान्य बनाए रखने में सहायता करते हैं और कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायता करते हैं। मसालों में कुछ ऐसे भी होते हैं जो ग्जूयरा- थाइओएस-ट्रान्सफेरऐस इन्जाइम के सृजन में सहायता कर विषैले पदार्थों की विषाक्तता को नष्ट करने में सहायता करते हैं। नित्य प्रति इस्तेमाल करने वाले मसालों में कुछ मसाले ऐसे भी होते हैं, जो पौष्टिक पदार्थों से भी कहीं अधिक उपयोगी होते हैं और साथ ही बहुत सी जैविक क्रियाओं को सम्पन्न कराने में भी सहयोग देकर शरीर की रोगों से रक्षा भी करते हैं।

प्राचीन काल में खान-पान में मसालों का उपयोग अधिक मात्र में हुआ करता था, परन्तु जैसे-जैसे पाश्चात्य सभ्यता ने भारत में अपने पांव फैलाने शुरू किए, लोगों ने भी हल्दी, धनिया व मिर्च को छोड़कर बाकी सभी मसालों को त्यागना प्रारम्भ कर दिया। जैसे-जैसे लोग मसालों से दूर होते गए, अपने स्वास्थ्य के पीछे बीमारियों को आमंत्र्रित करने लगे। कुछ चिकित्सक मसालों का कम प्रयोग करने की सलाह देते हैं। यह एकदम सही है, परन्तु किसी भी चिकित्सक ने शायद यह सलाह न दी होगी कि जायफल, दालचीनी, सरसों, जीरा आदि बहुमूल्य घटकों का एकदम से त्याग करके सिर्फ हल्दी, धनिया और मिर्च का ही प्रयोग किया जाए।

कुछ मसालों में कुछ ऐसे तीखे, तेज गंध वाले, चरपरे रासायनिक पदार्थ भी पाये जाते हैं, जिसके उपयोग से भोजन सेवन कर पाना संभव नहीं होता। कुछ वाष्पशील तैलीय पदार्थ जो कीटनाशक, जीवनाशक तथा विषनाशक होते हैं, वे भी मसालों में पाये जाते हैं अत: मसालों के सीमित सेवन के लिए सलाह दी जाती है। भोजन के साथ खाये जाने वाले मसाले स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कितने लाभप्रद हैं, इसका विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। अपनी बीमारी के अनुकूल मसालों का प्रयोग कर लाभ उठाया जा सकता है-:

मिर्च (Chilli)का प्रयोग:-

कच्ची मिर्च हरे रंग की तथा पकने पर लाल रंग वाली हो जाती हैं। एक मध्यम आकार की मिर्च खाने से 50 प्रतिशत विटामिन ‘ए’ की पूर्ति हो जाती है। इसमें ‘कैप्सीकाम एल्कलायड’ नामक पदार्थ पाया जाता है, जो अनाक्सीकारक होने के कारण ध्वंसात्मक मुक्त अभिकारकों से शारीरिक कोषों को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। यह रक्त को जमने से रोकता है, जिससे हृदयाघात या मस्तिष्कघात होने की संभावना टल जाती है। इसके बुरादे को वैसलीन में मिलाकर लगाने से दर्द या सूजन कम होती है। कुछ जलन तो अवश्य होती है परन्तु सूजन तुरन्त ही दूर करती है।

धनिया (Coriander) का प्रयोग:-

धनिये के अंदर सुगन्ध ‘गामाटर पीनिओल’ नामक पदार्थ के कारण होती है। इसे जीवाणुनाशक माना जाता है। यह शरीर में ग्ल्यूटाथाइओन एस-ट्रासन्सफरेज इंजाइम को बनाने में सहायता करता है जिससे पेट की अनेक बीमारियां शांत रहती हैं।

मेथी (Fenugreek) का प्रयोग:-

यह एक प्रकार के शाकीय पौधे का बीज होता है। इसमें पाया जाने वाला पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर को कम (सामान्य) बनाकर रखता है और बढ़ने नहीं देता। लगभग 8 ग्राम पिसी हुई मेथी को पानी के साथ निगलने से रक्त शर्करा स्तर सामान्य बना रहता है।

काली मिर्च (Black pepper) का प्रयोग:-

लाल मिर्च के समान ही सभी तत्व इसमें पाए जाते हैं। ‘पाइपरीन’ नामक एक असरकारी तत्व इसमें पाया जाता है, जो चयापचय क्रि याओं को सम्पन्न कराकर पाचन तंत्र की बीमारियों को नियंत्रण में रखा करता है। अपने जलन के गुणों के कारण से मस्तिष्क को पीड़ानायक रसायन एन्जोराफिम को श्रावित करने पर मजबूर करती है।

हींग (Asafoetida) का प्रयोग:-

यह पाचक, उष्ण, तीक्ष्ण होने के साथ भूख को बढ़ाती है तथा कीटनाशक, कृमिनाशक होने के साथ-साथ यौवन को ज्वार पर चढ़ाने वाली वस्तु होती है। ‘रेसिन’ नामक पदार्थ के कारण हींग में एक तेज खुशबू होती है।

अजवायन (Parsley) का प्रयोग:-

इसमें ‘थायमोल’ नामक पदार्थ के कारण तेज गंध होती है। यह जीवाणुनाशक व कृमिनाशक होता है। भूख व पचन पाचन शक्ति को बढ़ाकर पेट के अनेक विकारों से रक्षा करती है। इसमें कैल्शियम अधिक मात्र होने के कारण अस्थियों के लिए यह अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। इसका प्रयोग दाल, रायता, कढ़ी आदि के छोंकने में किया जाता है।

दालचीनी (Cinnamon) का प्रयोग:-

इसमें अल्पमात्र में एक प्रकार का तेल पाया जाता है, जो जीवाणु व फफूंदनाशक होता है। गठिया के दर्द में भी इसका प्रयोग (गठिया पर मलने से) किया जाता है। इसकी पत्ती तेजपत्ता पचन-पाचन के सभी रोगों के लिए उत्तम मानी जाती है।

सोंठ (Dry gourd) (अदरक) का प्रयोग:-

अदरक का उपयोग भोजन के अनेक प्रकार के व्यंजनों में प्राचीन समय से ही होता आ रहा है। गैस बनना, बदहजमी, कफ, जुकाम आदि को नष्ट करने में यह अद्भुत क्षमता रखता है। अदरक के सूखे प्रकार को सोंठ कहा जाता है। इसका प्रयोग सब्जी के मसाले में और चटनी बनाने में किया जाता है।

जायफल (Nutmeg) का प्रयोग:-

यह बहुत ही खुशबूदार बीज होता है। इसमें ‘आइसोइयूजिनॉल’ नामक पदार्थ होता है जो जीवाणु व कीटनाशक होता है। इस बीज का ऊपरी खोल जावित्री कहलाता है। इसके प्रयोग से क्षयरोग के कीटाणु तक नष्ट हो जाते हैं।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।