सोशल मीडिया का नकारात्मक नहीं सकारात्मक प्रयोग हो

बुल्ली बाई प्रकरण ने हमारे जीवन, समाज और संस्कृति की पोल खोली है। इस सिलसिले में अभी तक गिरफ्तार सभी लोग युवा या किशोर हैं, जिनमें एक लड़की भी है। यह बात चौंकाती है। इन युवाओं की दृष्टि और विचारों का पता बाद में लगेगा, पर इसमें दो राय नहीं कि जहरीली-संस्कृति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका की अनदेखी करना घातक होगा। इसके पहले जुलाई 2021 में सुल्ली डील्स नाम से गिटहब पर ऐसा ही एक कारनामा किसी ने किया था, जिसमें पकड़-धकड़ नहीं हुई। वजह यह भी थी कि गिटहब अमेरिका से संचालित होता है। विविधता हमारी पहचान है, जिसका सबसे बड़ा मूल्य सहिष्णुता है। यह बात समझने और समझाने की है, पर सोशल मीडिया ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया है।

बुल्ली मामले ने सोशल मीडिया की जहरीली भूमिका के अलावा सामाजिक रीति-नीति पर रोशनी भी डाली है। स्टैटिस्टा डॉट कॉम के अनुसार दुनियाभर में 3.6 अरब से ज्यादा लोग हर रोज औसतन 145 मिनट यानी सवा दो घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। कुछ दशक पहले तक लोग अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़ने में जितना समय देते थे, उससे कहीं ज्यादा समय अब लोग सोशल मीडिया को दे रहे हैं। यह मीडिया जानकारियां देने, प्रेरित करने और सद्भावना बढ़ाने का काम करता है, वहीं नफरत का जहर उगलने और फेक न्यूज देने का काम भी कर रहा है। बुल्ली बाई विवाद के दौरान गिटहब का नाम बार-बार आया है।

पिछले साल सुल्ली डील्स का जिक्र जब हुआ था, तब भी इसका नाम आया था। बुल्ली बाई एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है, जो आॅनलाइन नीलामी को सिम्युलेट करती है। यानी नीलामी जैसी परिस्थितियां बनाती है। यह नीलामी वस्तुत: फर्जी है। इसमें इस्तेमाल हुए ‘बुल्ली और सुल्ली’ शब्द अपमानजनक हैं। गिटहब कोड रिपोजिÞटरी और सॉफ्टवेयर कोलैबरेशन प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल डेवलपर, स्टार्टअप, बल्कि कई बार बड़ी टेक्नोलॉजी कम्पनियां भी करती हैं, ताकि किसी एप को विकसित करने में कोडिंग से जुड़े लोगों की मदद ली जा सके। कोड रिपोजिÞटरी से आशय है, वह स्थान जहाँ लोग अपने कोड रख देते हैं, ताकि जो दूसरे लोग किसी सॉफ्टवेयर का विकास कर रहे हैं, वे उसका लाभ उठा सकें।

यानी ज्ञान को बांटने का यह तरीका है। शिक्षा, सूचना और विकास के लिए इंटरनेट जरूरी है, पर वह माध्यम है लक्ष्य नहीं। उसकी नकारात्मक भूमिका है। दुनिया के हर नागरिक का अपना एजेंडा है। उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला अलग संसार है। सोशल मीडिया सिर्फ औजार है। उनमें तमाम कचरा पड़ा है, जिसके लिए जिम्मेदार वे लोग हैं, जिनकी दिलचस्पी नकारात्मक बातों में है। वे अपराधी हैं जो उन्माद पैदा करना चाहते हैं। उनकी अफवाहों से प्रेरित उन्मादी भीड़ भी अपराधी है। सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल तभी संभव है, जब नकारात्मकता की इस खेती पर रोक लगेगी।

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