दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन चुनाव की मतगणना में दिल्ली राज्य चुनाव आयोग की अधिकृत ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल नहीं किया। मतगणना में जिन मशीनों का प्रयोग किया गया वह किसी निजी कंपनी से कालेज प्रशासन द्वारा मंगाई गईं थी। यह खुलासा तब हुआ जब कांग्रेस की ओर से राज्य चुनाव आयोग को गड़बड़ी के संबंध में लिखित शिकायत की। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने तत्काल खंडन किया। आयोग ने कह दिया कि डूसू चुनाव से उनका कोई हस्पक्षेप नहीं। साथ ही चुनाव में जिन मशीनों का इस्तेमाल हुआ उनसे आयोग का कोई लेना देना नहीं। उन्होंने न अपनी मशीनें भेजी और न ही उनका परिवेक्षक दल वहां गया। आयोग के इस खुलासे के बाद प्रायोजित फजीर्वाड़े की खबर आग की तरह फैल गई। दरअसल इतने बड़े फजीर्वाड़े की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। चुनाव आयोग के नाम से भी भला कोई जालसाजी कर सकता है, तो किसी से क्या कोई उम्मीद करेगा।
अपनी पूर्णरूपी सत्यता को लेकर चुनाव आयोग की अलग पहचान है। चुनाव आयोग पर लोगों का आज भी अटूट विश्वास है। लेकिन उनके नाम से भी अब हूबहू फजीवाड़ा होने लगा। जालसाजी का पता तब चला जब डूसू चुनाव में महत्वपूर्ण पदों पर पहले कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआई के उम्मीदवार आगे चल रहे थे। लेकिन उसके बाद मतगणना रोक दी गई। इस पर जीतने वाले उम्मीदवारों को कुछ शक हुआ। तभी एक घंटे बाद दोबारा मतगणना शुरू हुई तो स्थिति पूरी तरह से बदल गई। आगे चलने वाले उम्मीदवार पीछे हो गए। भाजपा समर्पित छात्र संगठन एबीवीपी के उम्मीदवारों ने बढ़त बना ली। ये देख एनएसयूआई उम्मीदवारों ने जमकर हंगामा करना शुरू कर दिया। भारी हंगामे को देख मतगणना फिर से रोक दी गई। चार-पांच घंटे तक बवाल होता रहा।
दिल्ली विश्वविधालय छात्र संगठन का परिणाम वैसे शाम पांच बजे तक घोषित होना था। पर, गड़बड़ी के आरोप के चलते नही हो सका। रात आठ बजे फिर से गिनती शुरू हुई, करीब डेढ़ घंटे बाद रिजल्ट घोषित कर दिया गया। परिणाम वही आया जिसकी सबने उम्मीद की थी, रिजल्ट एबीवीपी के पक्ष में दशार्या गया। विरोध में एनएसयूआई के छात्र कुर्सियां हवा में उछालने लगे। तोड़फोड़ शुरू कर दी। पुलिस ने मोर्चा संभाल कर किसी तरह माहौल को शांत किया। लेकिन इतनी देर में फजीर्वाड़े की खबर डूसू दीवारों के बाहर भी आ गईं। चैनलों की पहली हेडलाइन बन गईं।
सुबह होते ही मामले की तस्वीर साफ करते हुए चुनाव आयोग ने सच्चाई से पर्दा हटा दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि डूसू चुनाव में जिन वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हुआ है उनकी आपूर्ति राज्य चुनाव आयोग ने नहीं बल्कि निजी कंपनी इलेक्ट्रोनिक कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा की गई थी। अपनी जान बचाने के लिए आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन (डूसू) चुनाव में मतगणना के दौरान ईवीएम ने जो किरकिरी कराई उसे आयोग ने गंभीरता से लिया है। आयोग ने इस बाबत ईवीएम बनाने वाली कंपनियों आनन-फानन में चिट्ठी लिखकर पूरे मामले पर सफाई मांगी है।
भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रोनिक कारपोरेशन आॅफ इंडिया को सख्त निर्देश भी दिए हैं। आयोग के अंडर सेक्रेटरी के दफ्तर से भेजी गई चिट्ठी में आयोग ने दोनों निमार्ता कंपनियों को सख्त हिदायत दी है कि निर्वाचन आयोग और राज्य चुनाव आयोग के लिए बनाई जाने वाली मशीनों के मॉडल, रंग और अन्य डिजायन बिल्कुल अलग होने चाहिए। उनकी मशीनों से मेल नहीं खाना चाहिए। खैर, इस घटना ने छात्र संगठनों के चुनावों पर सवाल खड़ा कर दिया। ऐसे चुनावों की जरूरतों को लोग नकारने लगे। दिल्ली विश्वविधालय की घटना के बाद समाज में आवाज उठने लगी है कि स्कूल-कालेज तालीम ग्रहण करने की जहग ही रहें, राजनीति का अखाड़ा न बनें। कम उम्र में बच्चे अगर फजीवाड़ा करने लगेंगे तो उनका भविष्य किस दिशा में जाएगा, इसकी तस्वीर डूसू चुनाव की कलाकारी ने पेश कर दी है। डूसू प्रशासन ने अपनी मनमर्जी से चुनाव कराया, खुद मशीनें खरीदी और मनचाहे उम्मीदवारों को विजय बनाया। सवाल उठता है डूसू प्रशासन को यह सब करने की क्या जरूरत पड़ी। ऐसा करने के लिए क्या उन्हें किसी ने निर्देश दिए थे? कौन हैं इस पूरे खेल के पीछे? डूसू घटना के बाद केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर एक सवाल उठ रहा है। विशेषकर चुनाव आयोग को अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए ईवीएम मशीनों को किसी और को बेचने के लिए निर्माण करने वाली कंपनियों को प्रतिबंधित करना चाहिए। ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे कंपनियां आयोग के अलावा किसी को ईवीएम मशीनें न बेचें। रमेश ठाकुर
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