अमेरिका और ईरान के बीच तनाव निरंतर बढ़ता जा रहा है। गत दिवस सउदी अरब के दो तेल टैंकरों पर हमला हुआ। सऊदी अरब ईरान का कट्टर विरोधी है इसीलिए उपरोक्त हमले के लिए अमेरिका ईरान की तरफ संकेत कर रहा है। अमेरिका को पहले ही संदेह था कि समुद्री यातायात पर हमला हो सकता है। दरअसल सउदी अरब अपना तेल अमेरिका को भेजता है और उसका कट्टर विरोधी ईरान सउदी अरब के तेल टैंकरों पर हमला कर अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के खिलाफ रोष प्रकट कर रहा है। यह घटनाएं न केवल अमन शांति के लिए बल्कि व्यापार के लिए भी खतरनाक हैं।
अमेरिका परमाणु हथियारों के नाम पर ईरान के खिलाफ प्रतिबंद्ध लगा चुका है जिससे ईरान की आर्थिकता पर बुरा प्रभाव पड़ना लाजिमी है। यदि यह प्रतिबंद्ध लंबे समय तक चला तो ईरान में हालात खराब हो सकते हैं जो आगे जाकर युद्ध का रूप धारण कर सकते हैं। यह टकराव तेल की कीमतों में भी उछाल ला सकते हैं। तेल उत्पादन व ढुलाई रुकने के साथ तेल आयात करने वाले देशों में तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे विकासशील देशों के प्रोजैकट रुक सकते हैं। दरअसल तेल पैदा करने वाले देशों के बारे में अमेरिका, रूस व चीन की नीतियों पर ही सवाल उठ रहे हैं। अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों ने इन देशों को अपनी मुट्ठी में रखने के लिए वहां की राजनीति में ऐसी सेंध लगाई है कि लगभग हर तेल उत्पादक देश में दो राजनीतिक ताकतें बड़ी सेना के रूप में लड़ाई लड़ रही हैं। अमेरिका को परमाणु हथियारों के नाम पर दूसरे देशों पर अपनी नेतागीरी दिखाने की कूटनीति को छोड़ना होगा।
यदि यही हाल रहा तो विश्व युद्ध के खतरे की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। अमेरिका का विरोधी उत्तरी कोरिया भी रोजाना नई मिसाईलों की परीक्षण कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प की नीतियां व तेवर अमेरिका के लिए नुकसानदेय सिद्ध हुए हैं। वे पिछले चार दशकों में हुए राष्ट्रपतियों में से सबसे अधिक विवादित राष्ट्रपति हैं। अमन-शांति को बहाल रखना जरूरी है, लेकिन केवल जिद्द के लिए युद्ध फाल्तू व मानवता के खिलाफ जुर्म है।
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