उड़द की खेती

प्रोटीन और फासफोरस एसिड का उच्च स्त्रोत

उड़द (URAD) भारत की महत्तवपूर्ण दाल वाली फसल है, प्रोटीन और फासफोरस एसिड का उच्च स्त्रोत है। यह नाश्ते के लिए जरूरी सामग्री है। भारत में उड़द मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगाई जाती है। पंजाब में यह 2.2 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल (2012-13) में उगाई जाती है।

मिट्टी :

नमक वाली, खारी मिट्टी, जलजमाव वाली मिट्टी भी इसके लिए उपयुक्त नहीं होती। अच्छी वृद्धि के लिए कठोर दोमट या भारी मिट्टी जो पानी को सोख सके, की आवश्यकता होती है।

जलवायु तापमान :

15-30 डिग्री सेल्सियस
वर्षा : 50-75 सेमी.
बुआई के समय तापमान :
25-35 डिग्री सेल्सियस
कटाई के समय तापमान :
18-25 डिग्री सेल्सियस

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

माश 338: यह उड़द (URAD) छोटे कद की और कम समय लेने वाली फसल है जो कि खरीफ की ऋतु में उगाई जाती है। यह किस्म 90 दिनों में पक जाती है। प्रत्येक फली में 6-7 दाने होते हैं।

यह किस्म चितकबरा विषाणु रोग और पत्तों के धब्बों की बीमारी को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 3.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

माश 114: यह उड़द (URAD) छोटे कद की और कम समय लेने वाली फसल है जो कि खरीफ की ऋतु में उगाई जाती है। यह किस्म 85 दिनों में पकती है और प्रत्येक फली में 6-7 दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 3.7 क्विंटल प्रति एकड़ है।

माश 218: यह उड़द (URAD) किस्म गर्मी की ऋतु में उगाई जाती है और कम समय वाली है। यह 76 दिनों में पकती है। इसके दाने मोटे और काले होते हैं और हर फली में 6 दाने होते हैं।

इसकी औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ है।

माश 414: यह उड़द (URAD) किस्म गर्मी की ऋतु और कम समय लेने वाली है। यह 73 दिनों में पकती है। दाने मोटे, काले और प्रत्येक फली में 6-7 दाने होते हैं।

इसकी औसतन पैदावार 4.3 क्विंटल प्रति एकड़ है।

माश 1008: यह उड़द (URAD) किस्म गर्मी ऋतु की मुख्य फसल है और 73 दिनों में पकती है यह किस्म चितकबरा रोग विषाणु रोग और पत्तों के धब्बों की बीमारी को सहने योग्य है।

प्रत्येक फली में 6-7 दाने होते हैं। इसकी पैदावार 4.6 क्विंटल प्रति एकड़ है।

जमीन की तैयारी

जमीन को भुरभुरा बनाने के लिए 2 से 3 बार जोताई करें। प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। खेत को नदीन रहित रखें।

बिजाई का समय

खरीफ की फसल के लिए बिजाई का सही समय जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई का पहला सप्ताह है। अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों के लिए इसकी बिजाई 15 से 25 जुलाई तक की जाती है।

फासला

खरीफ की फसल के लिए पंक्तियों में 30 सैं.मी. और पौधों में 10 सैं.मी. का फासला रखें। रबी की फसल के लिए पंक्तियों में 22.5 सैं.मी. और पौधों में 4-5 सैं.मी. का फासला रखें।

बीज की गहराई

बीज को 4-6 सैं.मी. गहरा बोयें। पहाड़ी इलाकों में बोयी फसल की गुणवत्ता अच्छी होती है।

बिजाई का ढंग

बिजाई के लिए केरा या पोरा ढंग अपनाएं या इसकी बिजाई, बिजाई वाली मशीन से करें।

बीज की मात्रा

खरीफ में बिजाई के लिए 7-8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें जबकि गर्मियों में बिजाई के लिए 19-20 किलो मोटे बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार

बिजाई से पहले बीज को कप्तान या थीरम या मैनकोजेब या कार्बेनडाजिम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें और बाद में छांव में सुखाएं। रसायनों के बाद बीज को राइजोबियम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

बिजाई के समय नाइट्रोजन 5 किलो (11 किलो यूरिया), फासफोरस 10 किलो(60 किलो सिंगल सुपर फासफेट) की मात्रा प्रति एकड़ में डालें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीनों से बचाने के लिए एक या दो बार गोडाई करें और पहली गोडाई बिजाई के 1 महीना बाद करें। नदीनों के लिए बिजाई से दो दिनों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ 100-200 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।

सिंचाई

उड़द को खरीफ की फसल के तौर पर उगाया जाता है। यदि जरूरत पड़े तो जलवायु के हालातों के आधार पर सिंचाई करें।

बीमारियां और रोकथाम

पीला चितकबरा रोग : यह विषाणु रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है। पत्तों के ऊपर पीले और हरे रंग की धारियां पड़ जाती हैं और फलियां नहीं बनती। इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें।

सफेद मक्खी को रोकने के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम, ट्राइजोफॉस 300 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें और यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

पत्तों पर धब्बे : इस बीमारी को रोकने के लिए बीज का कप्तान या थीरम से उपचार करें और सहनेयोग्य किस्मों का प्रयोग करें। यदि खेत में इसका नुकसान दिखे तो जिनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम को प्रति एकड़ स्प्रे करें और 10 दिनों के अंतराल पर दो या तीन स्प्रे करें।

हानिकारक कीट और रोकथाम

रस चूसने वाले कीड़े (तेला, चेपा, सफेद मक्खी) : यदि इन कीटों द्वारा नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 375 मि.ली. या डाइमैथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सी डेमेटान मिथाइल 250 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।

सफेद मक्खी के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइजोफॉस 600 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

तंबाकू सुंडी : यदि खेत में इसका हमला दिखे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1.5 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

बालों वाली सुंडी : कम हमले की सूरत में सुंडियों को इकट्ठा करके कैरोसीन वाले पानी में डालकर नष्ट करें। यदि हमला बढ़ जाये तो क्विनलफॉस 400 मि.ली. या डाइक्लोरवॉस 200 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

फली छेदक : यह खतरनाक कीड़ा है और भारी नुकसान करता है। इसका हमला होने पर इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। दो हफ्तों के बाद दोबारा स्प्रे करें।

जूं : नुकसान होने की सूरत में डाइमैथोएट 30 ई सी 150 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।

ब्लिस्टर बीटल : ये कीड़े फूल निकलने के समय हमला करते हैं और फूलों पर नई टहनियों को खाकर दाने बनने से रोकते हैं। यदि इसका नुकसान दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें। जरूरत पड़ने पर पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

फसल की कटाई

पत्तों के गिरने और फलियों का रंग सफेद होने पर कटाई करें। फसल को द्राती से काटें और सूखने के लिए खेत में बिछा दें। गहाई करके दानों को फलियों से अलग करें।

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