वित्त वर्ष 2020-21 का आम बजट 1 फरवरी को आने जा रहा है। सरकार सुस्ती में फंसी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए आगामी बजट में पूँजीगत व्यय पर जोर दे सकती है, जिससे मांग में वृद्धि हो सके। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की अर्थव्यवस्था की नॉमिनल वृद्धि दर 13 प्रतिशत रहने की संभावना है।
ऐसे में गणनाओं से पता चलता है कि आगामी बजट में सकल कर राजस्व भी 23.65 लाख करोड़ रूपया रहने की संभावना है। यह इस साल के अनुमानित कर राजस्व से करीब 23 प्रतिशत ज्यादा होगा। महामारी के कारण केंद्र का सकल कर राजस्व 2020-21 में 19.24 लाख करोड़ रुपए के करीब रहने का अनुमान है, जो इसके पहले के वित्त वर्ष की तुलना में 4.23 प्रतिशत कम है और बजट पेश करते समय लगाए गए राजस्व अनुमान की तुलना में 26% कम है। सकल कर राजस्व में आयकर, कॉरपोरेशन कर, वस्तु एवं सेवा कर(जीएसटी) और सीमा एवं उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी को शामिल किया गया है। इस तरह राजस्व संग्रह में सुधार आने , केंद्रीय योजनाओं तथा केंद्र प्रायोजित योजनाओं को युक्तिसंगत बनाने से 2021-22 में बुनियादी ढ़ाँचे पर अधिक परिव्यय और संपत्ति सृजन के लिए रास्ता तैयार हो सकेगा।
2020-21 की पहली तिमाही में पूँजीगत व्यय में 27 फीसदी की गिरावट आने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बार-बार कहा था कि सरकार राजकोषीय घाटे की चिंता किए बगैर खर्च बढ़ाने के लिए संकल्पित है। इसी अनुरूप पिछले वर्ष सलाना आधार पर अक्टूबर में 130 फीसदी और नवंबर में 249 फीसदी की वृद्धि दिखी भी। पूँजीगत व्यय का आर्थिक वृद्धि और विकास पर कई गुना सकारात्मक असर देखा गया है। आगामी बजट में पूँजीगत व्यय फोकस क्षेत्र में रहना चाहिए। पूँजीगत खर्च पर जोर देने के लिए हालिया प्रोत्साहन पैकेजों में सरकार ने कुछ विशेष घोषणाएँ की। बुनियादी ढ़ाँचे से संबंधित गतिविधियों पर खर्च में स्पष्ट तौर पर वृद्धि की जा सकती है, क्योंकि पूँजीगत व्यय ही अर्थव्यवस्था को गतिशील बना सकता है और रोजगार सृजन में सहायक हो सकता है। दूसरी ओर राजस्व खर्च जिसमें निश्चित देयताएं या वेतन और पेंशनों जैसे चालू परिचालन खर्च शामिल होते हैं। इसमें अप्रैल से नवंबर की अवधि में 3.6 फीसदी का इजाफा हुआ है।
कर राजस्व में भारी कमी आने के बावजूद वित्त मंत्रालय ने अक्टूबर में सड़क, रक्षा, बुनियादी ढ़ाँचा, जल आपूर्ति, शहरी विकास और घरेलू स्तर पर उत्पादित पूँजीगत उपकरणों के लिए अतिरिक्त 25,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया था। यह रकम पिछले वर्ष के बजट में आवंटित 4.13 लाख करोड़ रुपए के अलावा दी गई थी। पहली तिमाही में देशव्यापी लॉकडाउन लगाए जाने से राजकोषीय घाटा जुलाई में ही बजट लक्ष्य के पार चला गया था। ज्ञात हो, वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 8 माह में ही राजकोषीय घाटा वर्ष के बजट अनुमान से 135 प्रतिशत से ऊपर पहुँच गया था।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 7 से 9 प्रतिशत के बीच रह सकता है, जो पहले 3.5 फीसदी पर रहने का अनुमान था। वर्ष 2021-22 में जीडीपी के करीब 5 फीसदी राजकोषीय घाटे का अनुमान जताया है। केंद्र ने राज्यों को 1200 करोड़ रुपए का 50 वर्ष तक ब्याज मुक्त ऋण मुहैया कराया है, जिसे वे पूरी तरह से नई या पूँजीगत परियोजनाओं पर खर्च कर सकते हैं। राज्य ठेकेदारों और आपूर्तिकतार्ओं के बिलों का भुगतान कर सकते हैं। लेकिन समूची रकम का भुगतान 31 मार्च से पहले करना होगा। साथ ही कारोबार को सुगम बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि इस दिशा में काफी कुछ अभी तक कागजों तक ही सीमित है। सरकार को कारोबारियों को विकास के साझेदार के तौर पर देखना चाहिए।
वित्त मंत्री के अनुसार पहले से काफी अलग बजट होगा: देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार बजट में और अधिक संरक्षणवादी रूख भी अपना सकती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस बजट को पहले से ही काफी अलग बजट घोषित कर चुकी हैं। ऐसे में एक संभावना यह भी है कि सरकार घरेलू उद्योगों को संरक्षित करने, स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए पहले की ही तरह शुल्कों में और अधिक वृद्धि कर सकती है और इसके साथ ही अपने खजाने को मजबूत कर सकती है, क्योंकि कोविड-19 के कारण उसके राजस्वों पर असर पड़ा है।
लेकिन वहीं कई विशेषज्ञों ने सरकार को चेताया है कि आगामी बजट में सीमा शुल्क में वृद्धि जैसे कदम उठाकर आत्मकेंद्रित होने के बजाए उसे बुनियादी ढ़ाँचे को मजबूत करना चाहिए, जिससे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिले। उद्योगों को संरक्षित करने के लिए जरूरी नहीं है कि हर बार संरक्षणवादी उपाय ही किए जाएं। भारत काफी मात्रा में दूसरे देशों से कच्चे माल का आयात करता है, जिससे अंतिम उत्पादों का विनिर्माण प्रतिस्पर्धी होता है। ऐसे में सरकार को इनवर्टेड ड्यूटी से बचनी चाहिए।
निष्कर्ष: ऋणात्मक विकास दर से जूझ रही अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए वास्तव में इस वर्ष नए तरीके के बजट की आवश्यकता है। इस बजट में पूँजीगत व्यय में अप्रत्याशित वृद्धि करनी ही होगी। कोविड काल के पूर्व से ही भारतीय अर्थव्यवस्था माँग मेंं भारी कमी से जूझ रहा है। माँग में वृद्धि के लिए आवश्यक है कि सरकार आधारभूत संरचना पर खर्च में वृद्धि करे। उदाहरण के लिए सरकार अगर इस समय बड़े पैमाने पर हाइवे का निर्माण करेगी, तो कम से कम 400 उद्योगों में माँग पैदा होगी। इससे अर्थव्यवस्था में गति आ सकती है। इसके अतिरिक्त सरकार को समाज के निचले तबके को सीधे प्रत्यक्ष सहायता में और वृद्धि करनी चाहिए।
सरकार को बजट में पूर्ण ध्यान माँग पक्ष में ही करना चाहिए, आपूर्ति पक्ष में नहीं। उदाहरण के लिए पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने आपूर्ति पक्ष में सहयोग करते हुए कारपोरेट को टैक्स में 1 लाख 45 हजार करोड़ की छूट दी थी। इसका कोई विशेष परिणाम नहीं निकला, क्योंकि समस्या आपूर्ति पक्ष में नहीं अपितु माँग पक्ष में थी। सरकार अगर इसी राशि का प्रयोग आयकर को कम करने या समाज के वंचित तबके को प्रत्यक्ष सहायता राशि देने में करती, तो अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती थी।
इसलिए इस बजट में भी सरकार को आयकर के दरों को और भी कम करना चाहिए। पेंशनधारियों को भी कर लाभांश में वृद्धि करनी चाहिए। पेंशन फंड नियामक संस्था पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण ने भी बजट पूर्व वित्त मंत्रालय से मांग की है कि आगामी बजट में नई पेंशन प्रणाली के तहत आयकर छूट लेने की सीमा को मौजूदा 50, 000 रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए करने की मांग की है। राजस्व संग्रह में वृद्धि के अनुमानों के बीच पूँजीगत व्यय में वृद्धि सरकार के लिए अधिक मुश्किल भी नहीं होगा। पूँजीगत व्यय में वृद्धि और आत्मनिर्भर भारत योजनाओं से जहाँ अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, वहीं रोजगार सृजन के अवसरों में भी वृद्धि होगी।