कर्नाटक विधान परिषद में कांग्रेस के विधान परिषद् (Legislative Council) सदस्यों ने डिप्टी स्पीकर के साथ की धक्कामुक्की व बदतमीजी बेहद शर्मनाक है। विरोध प्रकट करने वाले सदस्य उपसभापति के आसन तक पहुंच गए और खींचकर कुर्सी से नीचे उतार दिया। विधान परिषद् का दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा कि यह घटनाक्रम किसी संवैधानिक संस्था के भीतर हुआ है। स्पीकर जैसे पद का अपमान करना शर्मनाक है। भले ही मुद्दा कोई भी हो, विरोधी पार्टियों के लिए विरोध करने की भी एक सीमा होती है। पवित्र सदन में दुर्व्यवहार करना उचित नहीं।
वैसे यह कोई नई घटना नहीं, इससे पहले भी संसद व विधान सभाओं में विरोधी पार्टियों के नेता बिलों की कॉपियां फाड़कर व कुर्सियांं पर चढ़कर हंगामा करते हुए देखे गए हैं। यहां तक की पेपर फाड़कर स्पीकर पर भी फेंकते देखे गए हैं। कई जगहों पर सदस्यों ने माईक्रोफोन तोड़कर भी एक दूसरे पर फेंके हैं, लेकिन कर्नाटक की घटना ने सभी हदें पार कर दी। यह केवल कर्नाटक का ही मामला नहीं बल्कि पूरे देश का मामला है। देश के किसी एक राज्य में जब कोई घटना घटती है तब देखादेखी अन्य राज्यों के विधायक भी ऐसे तौर-तरीकों को अपनाने लगते हैं।
संसद व विधान सभाएं/परिषदें लोकतंत्र के मंदिर हैं जहां लोगों के चुने हुए नुमाइदों ने अपने क्षेत्र के विकास की बात करनी होती है, जब यही नुमायंदे ऐसे स्थानों पर दुर्व्यवहार करते हैं तब यह वोटरों के साथ अन्याय है। चिंताजनक बात यह है कि सार्थक बहस करनी सपने वाली बात हो गई है, सदन में सभी सदस्यों को सार्थक बहस करने का अधिकार है। जनप्रतिनिधियों के ऐसे व्यवहार से आम नागरिकों का राजनीति के प्रति विश्वास घट रहा है।
लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चैटर्जी ने अपने कार्यकाल में यह बात बेहद पीड़ा के साथ कही थी कि ईश्वर करे कि हंगामा करने वाले प्रतिनिधी दोबारा न चुने जाएं। उन्होंने राइट टू रीकाल का मुद्दा भी उठाया था। हैरानी इस बात की भी है कि जब कोई पार्टी सत्ता में होती है तब वह विरोधी दल को मर्यादा का पाठ पढ़ाती है लेकिन जब वही विपक्ष में आ जाती है तो वही मर्यादा को भंग करती है। यह चलन संवैधानिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक व चिंतनीय है। बेहतर यही होगा कि वोटर ही जागरूक होकर अपने जनप्रतिनिधी का सही चुनाव करे।
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