वाशिंगटन (एजेंसी)। अफगानिस्तान में तालिबान का राज आ चुका है बस कुछ ही दिनों में सरकार भी बना लेगा, लेकिन जिस तरह अमेरिका सेना की वापसी हुई और वहां के आम लोग तालिबान खौफ के साये में जीने को मजबूर हो रहे हैं। पूरी दुनिया तालिबान के आतंक से चिंतित भी है और अफगानिस्तान में रहे रहे अफगानी की सुरक्षा को लेकर कई अहम बैठक भी हो रही है। इस बीच संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद् में एक प्रस्ताव पास हुआ है।
इस प्रस्ताव में कोई भी देश दूसरे देश के खिलाफ जमीन का इस्तेमाल नहीं करवा सकता। इस प्रस्ताव को लेकर भारत की सक्रिय भूमिका थी, जो तालिबान राज आने के बाद अफगान धरती के गलत इस्तेमाल को लेकर चिंतित था। हालांकि इस प्रस्ताव पर वोटिंग से चीन और रूस गायब रहे, जो तालिबान का खुला समर्थन कर रहे हैं। यहीं नहीं भारत के कट्टर प्रतिद्वंदी चीन ने कहा कि आखिर इस प्रस्ताव की जरूरत क्या है और यदि लाना भी है तो फिर इतनी जल्दी क्यों है। इस दौरान चीन ने यह भी कहा कि वैश्विक समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए और उन्हें गाइड करना चाहिए।
क्या है मामला
गौरतलब हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान भारत ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को खत्म करने की जरूरत बताई है। हालांकि सुरक्षा परिषद की बैठक के दौरान रूस और चीन का रवैया हैरान करने वाला था। तालिबान के जिस राज से पूरी दुनिया आशंकित है, उसे दोनों ही देश खुला समर्थन करते दिखे हैं। यही नहीं रूस ने कहा कि इस प्रस्ताव से अफगानिस्तान पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वहां की सरकार तक संसाधनों की पहुंच नहीं होगी। इससे अफगानिस्तान का विकास प्रभावित हो सकता है।
अल कायदा ने अलापा कश्मीर का राग
दुनिया भर में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन अल कायदा ने मंगलवार को अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह साबित करता है कि ‘जिहाद ही एकमात्र रास्ता है जो जीत और सशक्तीकरण की ओर ले जाता है’ लेकिन इसी दौरान उसने यह राग अलापा कि वह इसी तरह कश्मीर को भी ‘इस्लाम के दुश्मनों’ से आजाद कराने की दुआ करता है।
तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले अल कायदा ने कहा कि अफगानिस्तान ‘निस्संदेह सल्तनतों का कब्रिस्तान और इस्लाम का एक अभेद्य किला था’। संगठन ने अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से वापसी पूरी करने के बाद जारी एक बयान में कहा, ‘अमेरिकियों की हार के साथ, यह तीसरी बार है कि अफगानिस्तान ने दो सदियों से भी कम समय के भीतर एक हमलावर साम्राज्यवादी ताकत को सफलतापूर्वक पराजित और निष्कासित कर दिया है।
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