मौजूदा समय में हमारा पर्यावरण जिन प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है, उसमें अथाह रुप से विद्यमान जल संपदा की मात्रा तथा गुणवत्ता में निरंतर ह्रास का होना भी प्रमुखता से शामिल है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन, नगरीकरण-औद्योगीकरण की तीव्र रफ्तार, तालाबों-झीलों का अतिक्रमण, बढ़ता प्रदूषण, बढ़ती आबादी तथा जल संरक्षण के प्रति जागरुकता के अभाव ने पूरी दुनिया में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को गहरे तौर पर प्रभावित किया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा, जारी की गई विश्व जल विकास रिपोर्ट-2018 के मुताबिक, दुनिया के 3.6 अरब लोग हर साल कम से कम एक महीने पानी के लिए तरस जाते हैं। रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि पानी की किल्लत झेल रहे लोगों की संख्या 2050 तक 5.7 अरब तक पहुंच सकती है। गौरतलब है कि वर्तमान समय में विश्व की कुल आबादी लगभग 8 अरब है, जिसके वर्ष 2050 तक 9.8 अरब पहुंचने का अनुमान है। वहीं, चीन के बाद सर्वाधिक जनसंख्या वाले तथा विश्व जनसंख्या में 17.5 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले भारत की स्थिति यह है कि यहां की एक चौथाई आबादी पेयजल संबंधी समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र की उक्त रिपोर्ट वैश्विक मानव समाज के लिए चेतावनी के साथ संभलने का अवसर भी लेकर आई है।
जल किल्लत से निपटने के लिए जल संरक्षण के अल्पकालीन और दीर्घकालीन उपायों पर ध्यान देकर सूखा व अकाल जैसी आपदाओं को रोकना एक अवसर है, जबकि निष्क्रिय समाज के लिए यह रिपोर्ट किसी चेतावनी से कम नहीं है। दरअसल, जल संरक्षण के प्रति लापरवाही और सततपोषणीय उपभोग के अभाव में भारत सहित दुनिया का एक बड़ा हिस्सा जल से जुड़ी विभिन्न संकटों का सामना कर रही है। मौजूदा जल संकट उस मानव समाज का लिए चेतावनी है, जो ना तो जल संरक्षण पर जोर देता है और ना ही भूजल पुनर्भरण का ख्याल ही रखता है। पानी की समस्या की वजह से आए दिन भारत में भी भयावह हालात दिखाई देते हैं। दरअसल पेयजल जैसी बुनियादी आवश्यकता का मानवीय पहुंच से दूर होना, प्राकृतिक कारकों के साथ-साथ जल की निर्ममतापूर्वक बबार्दी की तरफ ध्यान आकर्षित करती हैं।
विडंबना यह है कि शहरों में जहां फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरुरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है, वहीं गांवों में सिंचाई की स्प्रिंकलर तथा ड्रिप विधियों के नहीं अपनाने तथा जागरुकता की कमी की वजह से लोग पानी का मोल नहीं समझ रहे हैं। जल जीवन की प्राथमिक जरुरत है। जल के बिना बेहतर कल की कल्पना नहीं की जा सकती। हालांकि, दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 28 जुलाई, 2010 को पानी को ‘मानवाधिकार’ घोषित किया था, लेकिन विडंबना यह है कि स्वच्छ पेयजल के अभाव तथा दूषित जल के सेवन से दुनियाभर में रोजाना 2300 लोगों की मृत्यु हो रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया की ग्रामीण आबादी के 82 फीसदी हिस्से को साफ पानी मयस्सर नहीं होता है, जबकि 18 फीसदी शहरी आबादी साफ पानी से महरुम है। प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस, फ्लूराइड आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल का सेवन है। दुनियाभर में गहराते जल संकट को देखते हुए, वैज्ञानिकों का एक तबका अभी से ही मान रहा है कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए ही होगा, क्योंकि वर्तमान समय में विश्व के अनेक देश पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। संकट की यही स्थिति, दो देशों, दो राज्यों या दो पक्षों के बीच एक-दूसरे से टकराव का कारण बन रही हैं। इधर, सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल-विवाद पर फैसला देते हुए कहा है कि दो राज्यों से होकर गुजरने वाली नदी ‘राष्ट्रीय संपत्ति’ होती है और कोई भी एक राज्य नदी पर अपना मालिकाना दावा नहीं कर सकता। अदालत की यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में कावेरी, नर्मदा, यमुना, सोन, कृष्णा, गोदावरी, सतलज रावी, बराक और व्यास जैसी नदियां दो या उससे अधिक राज्यों के बीच विवाद की विषय रही हैं।
स्वच्छ पेयजल की प्राप्ति हमारा संवैधानिक अधिकार है। ‘सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य'(1991) मामले में अहम सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार में प्रदूषण मुक्त पानी और हवा का अधिकार शामिल है। ‘लेकिन यह तभी संभव है, जब हर स्तर पर जल संरक्षण के सार्थक प्रयास हों। जल संरक्षण के वो तमाम तरीके जो केवल कागजों पर ही सिमट कर रह गए हैं, उन्हें धरातल पर उतारने की दरकार है। तमिलनाडु पहला भारतीय राज्य है, जहां वर्षाजल संचयन को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन अन्य राज्य इसके प्रति गंभीर नहीं हैं। राजस्थान में आज भी परंपरागत तरीके से नाड़ी, तालाब, जोहड़, बन्धा, सागर, समंद एवं सरोवर बनाकर जल संग्रहण किया जाता है, लेकिन कई राज्यों में जल संरक्षण व संग्रहण के पुरानी किंतु नायाब विधियां समय के साथ भूला दी गई हैं। जहां, लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे अबाध व बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही इसके प्रति बेपरवाह नजर आते हैं। गर्मी के दिनों में जल संकट की खबरें लोगों को काफी पीड़ा प्रदान करती हैं और हालात यह हो जाता है कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहा होता है। सिर्फ यही नहीं, मानव के साथ-साथ पशु-पक्षियों के लिए भी वैसा समय काफी कष्टकर हो जाता है।
दुख तो इस बात का भी है कि पानी का महत्व हम तभी समझते हैं, जब लंबे समय तक पानी की सप्लाई नहीं होती या 15 से 20 रुपये देकर एक बोतल पानी लेने की जरुरत पड़ती है। पैसा खर्च कर पानी पीते समय, उसकी एक-एक बूंद कीमती लगती है, लेकिन फिर यह वैचारिकी तब धूमिल पड़ने लगती है, जब पुन: हमें बड़ी मात्रा में पानी मिलने लगता है। सवाल यह है कि जल संरक्षण के प्रति हम गंभीर क्यों नहीं हैं?हालांकि, देश में गर्मी के आगमन के साथ ही जल संरक्षण पर विमर्श का दौर भी शुरू हो जाता है लेकिन, जिस रफ्तार से सूरज की तपिश खत्म होती है, उसी रफ्तार में लोग बहुमूल्य जल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूलना भी शुरू कर देते हैं। दुनिया को जल संकट से उबारने के लिए, संरक्षण के आसान तरीकों को अपनाना जरुरी है, ताकि पेयजल किल्लत, सूखा और अकाल जैसी आपदाओं से मानवता की रक्षा हो सके।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।