उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक लड़की के साथ सामूहिक दुराचार और हत्या के मामले ने समाज को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। इससे खौफनाक और संवेदनहीनता का मामला तब सामने आया जब लड़की की मृत देह का अंतिम संस्कार भी पुलिस ने आधी रात को खेतों में ही कर दिया। पीड़ित परिवार पुलिस पर दोष लगा रहा है कि पारिवारिक सदस्यों को मृतका का मुंह भी नहीं दिखाया गया। पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। व्यवस्था अभी दबंग व बुरे का अंतर ढूंढने में लगी है। जातपात की जकड़ बहुत मजबूत बनी हुई है। अपराध करने का एक ही ढ़ंग बन गया है कि सबूत मिटाने के लिए हत्या कर दो और अपराधियों को भी यही डर था कि पीड़िता के बच जाने पर वह उनकी पोल खोल देगी। फिरौतियों के लिए बच्चे अगवा करने के मामलों में भी तो यही होता है ।
अपहरणकर्त्ता बच्चों के आसपास के या जानकार ही होते हैं। बच्चों को समझ होती है और वह दोषियों का नाम ले सकते हैं, जिस कारण अपहरणकर्त्ता उनको मौत की नींद सुला देते हैं। एक अपराध की सजा से बचने के लिए दूसरा अपराध किया जाता है। पुलिस की कार्यवाही भी फिल्मी कहानियों की तरह चलती है। पुलिस बहुत बार समाज की आंखों में धूल झोंकने के लिए और कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी करने का तरीका ऐसे अजमाती जैसे सब सच जान लिया है, परंतु पुलिस के सच अदालतों में अक्सर ही खुल जाते हैं। ऊपरी पहुँच वाले अपराधी अपनी मुसीबत टालने के लिए पुलिस का सहारा लेते हैं, जिस पुलिस ने अपराधियों को सजा दिलवानी होती है वही पुलिस अपराधियों का बचाव करने के लिए बहुत बार पीड़ित पक्ष के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार करती है।
नि:संदेह सख़्त से सख़्त कानून बन गए हैं लेकिन पुलिस के काम करने के तरीकों में अभी भी सुधार नहीं हो सका है। अपराध का संबंध अपराधियों की मानसिकता के साथ होता है जिसे रोकना सामाजिक बदलावों की दरकार है परन्तु वर्तमान दौर में अपराधियों को दोष मुक्त साबित करवाना और पीड़ित की जुबान बंद करना कबीलाई युग का प्रमाण है। समाज को वहशियत से आजादी सिर्फ कानूनों से नहीं बल्कि व्यवस्था में समानता, सच्चाई और इंसानियत के संस्कार भरे जाने से ही मिल सकती है। बड़े अपराधी आजाद घूमते हैं और बेकसूरों को व्यवस्था की विडंबना की तपिश सहनी पड़ती है। हाथरस का मामला महिलाओं पर अत्याचार के साथ-साथ पुलिस की ओर से अपराधियों पर मेहरबानी का एक और काला अध्याय बन गया है।
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