बीते दिनों देश में साजिश के तहत हुई हत्याओं की दो घटनाएं चिंता का विषय बनी हुई हैं। राजस्थान के उदयपुर और महाराष्टÑ के अमरावती में एक-एक युवक की हत्या को उनकी धार्मिक पहचान कर अंजाम दिया गया है। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वह एक धर्म विशेष के साथ जुड़े हुए थे। इसके अलावा बहुत से लोगों को प्रतिदिन धर्म के आधार पर धमकियां भी मिल रही हैं। यह घटना चक्कर आमजन के दिलों में दहशत पैदा करने वाला है। जो लोग सदियों से एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रह रहे थे, उनके लिए यह दहशत भरी परिस्थितियां सदमे वाली परिस्थितियां पैदा कर रही हैं। विचारों की आजादी का अपना महत्व है, फिर भी अगर किसी के विचार किसी के दिल को ठेस पहुंचाते हैं तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का विकल्प मौजूद है।
जब कोई व्यक्ति या संगठन ही किसी व्यक्ति को आरोपी बताकर उसकी हत्या कर देगा तो यह न्याय नहीं बल्कि आतंकवाद होगा। कानून को कोई भी व्यक्ति अपने हाथों में नहीं ले सकता। भले ही कोई भी व्यक्ति कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो। किसी धार्मिक सख्शियत का अपमान करने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। एक व्यक्ति सरेआम एक वीडियो में किसी नेता की हत्या करने वाले को अपना घर ईनाम में देने का ऐलान करता है। इस तरह से कोई भी मामला हल नहीं हो सकता। यूं भी धर्म सद्भावना सिखाते हैं। हिंसा के लिए किसी भी धर्म में कोई जगह नहीं है। धर्म गोष्ठी की शिक्षा देते हैं न कि आपस में टकराव की। हिंसा को अंजाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी आवश्यक है।
यूं भी जिस तरह यह घटनाएं धड़ाधड़ हुई हैं और जिस तरीके से इन घटनाओं को अंजाम दिया गया है, यह अपने आप में प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं बल्कि किसी साजिश का हिस्सा हो सकती हैं। हमलावरों के खिलाफ सख्त और तीव्रता से कानूनी कार्रवाई होनी बहुत जरूरी है। लेकिन इसके साथ ही समाज में धार्मिक सद्भावना को मजबूत करने के लिए मुहिम चलाई जानी चाहिए। नफरत के कहर को रोकने के लिए सरकारें स्थानीय स्तर पर लोक सदस्यता और सामाजिक धार्मिक संस्थाओं को धार्मिक सद्भावना बनाने के लिए आगे लेकर आएं। जिस धर्म के लोग किसी खास क्षेत्र में कम संख्या में रहते हैं, उनको समाज द्वारा भी विश्वास दिलाया जाए ताकि वह अपने आप को असुरक्षित, अकेले या बेगाने महसूस न करें। राजनेता बेवजह की बयानबाजी से अपने आपको दूर ही रखें ताकि सद्भावना व भाईचारा न बिगड़े।
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