Chandrayaan-3 LIVE Updates: विक्रम लैंडर ऐतिहासिक दूरी तय करते हुए चांद से मात्र 25 किमी की दूरी पर है, वहीं दूसरी ओर रूस के लूना-25 के मून मिशन की बात करें तो उसमें तकनीकी खराबी के चलते मिशन से भटकने की सूचना है। लूना-25 अपने मिशन से गायब हो चुका है। रूसी एजेंसी द्वारा उससे संपर्क स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत के चंद्रयान-3 की चांद की सतह पर ऐतिहासिक लैंडिंग के मात्र 3 दिन ही शेष हैं। विक्रम लैंडर (Vikram Lander) ने अपनी ऊंचाई के साथ-साथ गति भी धीमी कर ली है। चंद्रयान-3 एक-एक करके अपने सभी अहम पड़ाव पार करता जा रहा है और अपनी मंजिल तय करने से मात्र 25 किमी दूर है। ऐसे में चंद्रयान-3 रूस के लूना-25 से पहले लैंडिंग कर सकेगा।
इसरो ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि देर रात 1 बजकर 50 मिनट पर विक्रम लैंडर ने सफलतम डी-बूस्टिंग के जरिए चंद्रयान-3 की रफ्तार और धीमी करने में कामयाबी हासिल की है। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल को छोड़कर दूसरा रास्ता पकड़ चुका था। इसी रास्ते पर वह चांद के बिल्कुल नजदीक पहुंच चुका है। अब मॉड्यूल को आंतरिक जांच से गुजरने के लिए लैंडिंग स्थल पर सूर्योदय का इंतजार करना होगा। उम्मीद जताई जा रही है कि 23 अगस्त की शाम को वह चांद की सतह पर लैंड कर जाएगा। Chandrayaan-3 LIVE Updates
इसरो की ताजा जानकारी के अनुसार अभी चंद्रमा पर रात है और 23 अगस्त को वहां सूर्य उदय होगा। चंद्रयान-3 को अब बस चंद्रमा की सतह पर सूर्य के उदय होने का इंतजार है। क्योंकि विक्रम लैंडर सूरज की रोशनी और ताकत का इस्तेमाल करके अपना मिशन कामयाब करेगा। इसी बीच एक चीज समझना बेहद जरूरी हो गया है कि किसी भी स्पेसक्राफ्ट के लिए चांद पर उतरा अत्यंत मुश्किलों भरा है और हजारों चुनौतियों से परिपूर्ण भी। बताया जा रहा है कि चंद्रमा की सतह आसमान है और वहां पर गड्ढों, पत्थरों के अलावा कुछ भी नहीं है।
इस तरह की सतह पर लैंडिंग करना बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। इसरो के अनुसार चांद पर लैंडिंग के अंतिम कुछ किमी पहले की अपेक्षा अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि उस वक्त अंतरिक्षयान के थ्रस्ट से गैस निकलती है। इस गैस की वजह से चांद की सतह पर बड़ी मात्रा में धूल उड़ती है जो आॅनबोर्ड कंप्यूटर और सेंसर्स को नुकसान पहुंचा सकती है या दिग भ्रमित कर सकती है। साथ ही चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के लिए बहुत ज्यादा र्इंधन की आवश्यकता पड़ती है जिसके जरिए सामने की दिशा में जोर लगाकर चंद्रयान की नीचे उतरने की स्पीड कम की जाती है और ऐसे में इतने र्इंधन के साथ उड़ान भरना खतरे से खाली नहीं हो सकता। और तो और चंद्रमा पर पृथ्वी के मुकाबले वातावरण 8 गुना पतला होने के कारण पैराशूट से भी किसी अंतरिक्ष यान को उतारना खतरों से भरा है।
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