राष्ट्रपति चुनावों में जीत के बड़े दावों के बावजूद डोनाल्ड ट्रम्प पिछड़ गए हैं और बायडेन ने बाजी मारते प्रतीत हो रहे हैं। वास्तव में ट्रम्प पर स्थानीय मुद्दे ही भारी पड़ गए हैं। आतंकवाद विरोधी विचारों व रणनीति के कारण डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी विशेष पहचान हासिल की थी। मध्य पूर्व एशिया में उनकी पकड़ मजबूत बन गई थी परन्तु अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के मुताबिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विश्व भाईचारा कायम नहीं कर सके। चाहे जॉर्ज फ्लॉविड की मौत ने ट्रम्प के खिलाफ अश्वेतों में रोष की एक बड़ी लहर पनपी थी परंतु वास्तव में ट्रम्प का रवैया पिछले चार सालों से प्रवासियों को उनसे दूर कर रहा था।
प्रतिदिन ही किसी न किसी भारतीय मूल के व्यक्ति पर हमले की घटनाओं के कारण ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ प्रवासियों में असुरक्षा की भावना पैदा हो चुकी है। इसके बावजूद ट्रम्प ने प्रवासियों की नाराजगी को नजरअन्दाज कर अमरीकी वाद की सुर ऊपर रखी। वीजा प्रणाली में सख़्त नियम जोड़ने के समय-समय पर किए गए ऐलानों के साथ भी ट्रम्प की छवि धूमिल हुई। अपने कार्यकाल के अन्तिम वर्ष में ट्रम्प द्वारा डैमेज कंट्रोल करने के प्रयास किए गए। खासकर भारतीय मूल के लोगों को रिझाने के प्रयास किये गए परंतु इस दरमियान जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या ने सारा खेल बिगाड़ दिया।
नि:संदेह ट्रम्प आतंकवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों के लिए याद रखे जाएंगे परंतु उनके फैसलों के साथ विश्व एकता और सद्भावना की लहर मजबूत नहीं हो सकी। यह कहना वाजिब रहेगा कि नसलवाद या मूलवाद के मुद्दे पर अब अमेरिका चुनाव जीतना आसान नहीं रहा। अमेरिकियों ने बायडेन को भारी समर्थन देकर अमेरिका के विशाल दृष्टिकोण व विश्व भाईचारे को आगे रखा है। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भारत के लिए दोनों हाथों में लड्डू होने वाली ही बात है। यदि ट्रम्प भारत के समर्थक थे तो डैमक्रोटिक बायडेन भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं। उनकी तरफ से पहली बार भारतीय मूल की कमला हेरिस को उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना भी यह साबित करता है कि अमेरिका अश्वेत लोगों का भी उतना है जितना की श्वेत लोगों का।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।