मैंने सन् 1976 में नाम-दान प्राप्त किया तथा लगभग 6 वर्षों तक पूरे विश्वास के साथ सत्संग सुनता रहा व सेवा-सुमिरन करता रहा, जिससे मुझे अपार खुशियां मिली। अचानक मैं मन के धक्के चढ़कर फिर से उन्हीं बुरे कर्मों में फंस गया। सेवा व सुमिरन सबकुछ भूल गया। बुरे कार्यों की वजह से मैं दु:खी व परेशान रहने लगा। मैं सख्त बीमार हो गया और मुझे संगरूर के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा था। मैं इतना कमजोर हो गया कि चल-फिर भी नहीं सकता था। परिवार के सदस्यों को भी मेरे बचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। सारे परिवार ने सुमिरन करना शुरू कर दिया। उसी समय पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने साक्षात् दर्शन दिये और मैंने ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। पूजनीय परम पिता जी ने पावन वचन फरमाए, ‘‘बेटा, घबरा मत, ठीक हो जाएगा। यह तो तेरे कर्मों का चक्कर था।’’ मैंने हाथ जोड़कर पूजनीय परम पिता जी से अपने किए गए बुरे कर्मों की क्षमा मांगी। उसी समय से मैं अपने आप को स्वस्थ महसूस करने लगा। दिन-प्रतिदिन मेरी हालत में सुधार होता गया और मैं जल्दी ही स्वस्थ होकर अपने घर चला गया। कुछ दिनों बाद मैं परिवार सहित आश्रम में आया और पूजनीय परम पिता जी से माफी मांगी। पूजनीय परम पिता जी ने क्षमादान देकर मुझे कर्मों के भार से मुक्त कर दिया।
श्री हरबंस लाल, बुढ़लाडा (पंजाब)
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