सच्चे सतगुरु जी ने शिष्य को बख्शा नया जीवन

Shah Satnam Ji Maharaj
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज

गांव मलकपुरा जिला सरसा, से प्रेमी लेखराम कुल मालिक की अपार महिमा का एक वृत्तान्त इस प्रकार बयान करता है:-

प्रेमी बताता है कि सन् 1964 में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज उसके गांव मलकपुरा में जब दूसरी बार सत्संग करने पधारे, तो प्रेमी ने पहले से ही निश्चित किए फै सले के अनुसार अपने छोटे लड़के को दरबार में साधु रख लेने के लिए प्रार्थना कर दी। पूजनीय परम पिता जी का उतारा भी प्रेमी लेखराम के घर पर ही था, क्योंकि वह दरबार का एक पुराना सत्संगी व सेवादार प्रेमी है। प्रेमी के दो ही लड़के हैं। बड़े का नाम पृथ्वीराम है, जो उस समय आठवीं कक्षा में पढ़ता था और छोटा लड़का चौथी में था।

यह भी पढ़ें:– फिर हर शै होगी खुशी की…

प्रेमी ने अपने घर में कुछ दिन पहले ही विचार पक्का कर लिया था कि वह अपने छोटे लड़के को दरबार में साधु रखने के लिए पूजनीय परम पिता जी के पावन चरण कमलों में प्रार्थना करेगा और बड़ा लड़का घर का कारोबार संभाल लेगा। इस प्रकार घर की जिम्मेवारियों से फारिग होकर वह खुद भी दरबार में रहकर सेवा व भजन-सुमिरन करेगा। इसी उद्देश्य से उसने पूजनीय परम पिता जी की हजूरी में उक्त प्रार्थना की थी। कुल मालिक तो आगे-पीछे की सब जानते हैं अपने जीव के लिए क्या ठीक है क्या गलत है, आज सब बातें मालिक के सामने होती हैं, क्योंकि वह दोनों जहानों के मालिक व पालक हैं। संत-जन फिर भी जीव को दिलासा देते हैं।

पूजनीय शहनशाह जी ने मुस्कुराते हुए फरमाया, ‘‘भाई! काम करने वाले को तो घर पर रखते हो और दूध पीने वाले बच्चे को दरबार में साधु बनाते हो।’’ भाव बड़ा लड़का तो उम्र के अनुसार कुछ समझदार है और थोड़ा-बहुत काम (सेवा) आदि करने योग्य है। उसे छोड़कर वह अपने छोटे लड़के को दरबार में साधु बनाना चाहता था, जो उस समय केवल 10 वर्ष का ही था। शहनशाह जी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए और फिर अपने पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘‘लेखराम! तेरी हाजिरी मंजूर है। दोनों

लड़के तू अपने घर ही रख, तेरा घर भी तो साध संगत का डेरा ही है। दोनों यहीं पर ही सेवा करेंगे।’’ थोड़ी देर रुकने के बाद सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘‘भाई! छोटा लड़का ही तुम्हारा काम करेगा, बड़ा तो दूसरों का मोहताज (दूसरों पर निर्भर) रहेगा। लेखराम तू फिक्र न कर, तुझे बहुत ही जल्दी तेरी कबीलदारी तथा जिम्मेदारियों से फारिग कर लेंगे।’’ भविष्य में किसी के साथ क्या होना है, किसी को कुछ भी मालूम नहीं होता, क्योंकि प्रभु ने विधान ही ऐसा बनाया है।

संत-वचन तो टल ही नहीं सकता, चाहे खंड-ब्रह्मण्ड सब उल्ट-पुल्ट हो जाएं, क्योंकि पूर्ण संत-महात्माओं के वचन तो सत्य ही रहते हैं। प्रेमी लेखराम का बड़ा लड़का, जो कॉलेज में पढ़ने के लिए किसी दूसरे शहर में गया हुआ था। बीए की डिग्री लेकर जब अपने घर पहुंचा तो कुछ ही दिनों बाद अचानक उसकी आंखों की ज्योति जाती रही। जिससे वह दूसरों का मोहताज बनकर रह गया, क्योंकि कुल मालिक का वचन था कि वह तो दूसरों पर ही निर्भर रहेगा। सचमुच! वह दूसरों पर ही निर्भर हो गया।

शुरू-शुरू में तो प्रेमी ने एक-दो डॉक्टरों की सलाह ली, पर किसी की समझ में नहीं आया तो वह अपने उस लड़के को लेकर यहां दरबार में पूजनीय परम पिता जी की पावन हजूरी में पेश हो गया। फल तो जीव के अपने ही किए कर्मों का होता है, परंतु पूरा सतगुरु अपने सत्संगी के किसी भी भारी से भारी कष्ट को थोड़े में ही भुगतवा देता है। पूरे सतगुरु की सबसे बड़ी यह महानता है कि जीव को उसके कष्ट का अनुभव भी नहीं होने देता, भाव उसे दु:ख महसूस तक भी नहीं होने देता। दयालु कुल मालिक ने प्रेमी की प्रार्थना सुनी और हुक्म फरमाया, ‘‘भाई लेखराम! बच्चे का किसी अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाओ।

फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है।’’ प्रेमी को इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि उसके लड़के का बाल भी बांका नहीं हो सकता, परंतु उसके कर्मों में जो थोड़ी-बहुत तकलीफ थी, अथवा किसी से लेन-देन का जो हिसाब-किताब था, वह तो कुल मालिक ने किसी ने किसी बहाने पूरा करवाना ही था। अपने सतगुरु कुल मालिक के हुक्मानुसार उसने अपने लड़के का अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाया। वह उसे यूपी स्टेट के सीतापुर शहर के आंखों के एक बड़े अस्पताल में भी लेकर गया था। यहां पर उसका कई महीने लगातार इलाज चलता रहा।

लड़के की आंखों में करीब डॉक्टरों ने साढ़े तीन सौ टीके लगा दिए थे परंतु फिर भी प्रेमी को वहां से निराश ही वापिस लौटना पड़ा, क्योंकि लड़के की आंखों की स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी हुई थी। इसके बाद उसने लड़के को और भी कई डॉक्टरों के पास दिखाया, परंतु सभी ने यही जवाब दिया कि इसकी आंखों की ज्योति जाती रही है, अब वापिस नहीं आ सकती। अंत में वह थक-हारकर फिर पूजनीय परम पिता जी के पास दरबार में आ गया और कुल मालिक के चरणों में बैठकर अपनी बेबसी व मजबूरी प्रार्थना के रूप में प्रकट की।

रहमतों के भंडार, दया के पुंज सतगुरु पूजनीय परम पिता जी ने प्रेमी को धैर्य बंधाया और फरमाया, ‘‘भाई लेखराम! कोई बात नहीं यदि उन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है तो क्या हुआ! आपके असली डॉक्टर बेपरवाह सतगुरु शहनशाह पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज तुम्हे कभी जवाब नहीं देगें।’’ इसके साथ ही सर्व-सामर्थ दातार जी ने प्रेमी को आंखों में डालने वाली दवाई की एक शीशी (आई ड्रोप्स) देते हुए हुक्म फरमाया, ‘‘भाई! यह दवाई हर रोज लड़के की आंखों में डाल दिया करो और आंखों पर रंगदार चश्मा लगाकर रखा करो। अब तुम्हें कहीं और जाने की जरूरत नहीं है, कुल मालिक बेपरवाह मस्ताना जी की मेहर से लड़के की आंखें जल्दी ही ठीक हो जाएंगी, घबराने की कोई बात नहीं है।’’

प्रेमी लेखराम के यह प्रार्थना करने पर कि उसका लड़का पृथ्वीराम कोई काम-धंधा अथवा नौकरी आदि तो नहीं कर सकता, तो इस संबंध में पूजनीय शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘भाई! इसे नौकरी की क्या जरूरत है? इसके आगे तो कई-कई नौकर काम किया करेंगे।’’ पूजनीय परम पिता जी के हुक्म से रोजाना दवाई डालने तथा आंखों पर रंगदार चश्मा लगाए रखने से उसकी आंखें कुछ दिनों में ही ठीक हो गर्इं। कुछ दिनों बाद उसने फरीदाबाद शहर में एक फैक्ट्री लगा ली। पूजनीय परम पिता जी वाली दो जहान के हुक्मानुसार वह तो केवल फैक्ट्री की देखभाल करता है। बाकी सारा काम तो उसके नौकर ही करते हैं। मालिक स्वयं सर्व-सामर्थ है और सबकुछ उसके हुक्म में ही है।

प्रेमी लेखराम की जो आतंरिक इच्छा थी वह घर-परिवार की जिम्मेदारियों से फारिग होकर सतगुरु जी के दरबार में ही सेवा करे। मालिक जी ने स्वयं अपनी दया-मेहर से वैसा ही साधन बना दिया। पूजनीय परम पिता जी के हुक्म से देखते ही देखते उसका छोटा लड़का इतना जवान व समझदार हो गया कि उसने घर परिवार व खेत आदि की सारी जिम्मेदारी खुद संभाल ली। कुल मालिक ने अपनी कृपा से प्रेमी लेखराम को उसके परिवार की जिम्मेदारियों से बहुत जल्दी आजाद करवा दिया और अपने दरबार का पक्का सेवादार (साधु) बना लिया। अब वह मालिक के हुक्म में रहकर सच्ची हार्दिक भावना से दरबार की सेवा करता है और बाकी का समय भजन-सुमिरन में लगाकर अपने जीवन को सफल बना रहा है।