सतगुरु की प्रीत ही सच्ची

True love only of Satguru

सरसा (सकब)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जब तक इन्सान मुर्शिदे-कामिल की शरण में नहीं आता, उसे यह मालूम नहीं होता कि सच्ची प्रीत किसकी है। इन्सान बहुत से यार, दोस्त, मित्र बनाता है, रिश्ते-नाते जोड़ता है लेकिन जब कोई मुश्किल आती है, तब मालूम पड़ता है कि सारे ही रास्ता छोड़ गए। उस समय कोई हमराही बनता है तो वो है ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम।

पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि अगर आपने सतगुरु, अल्लाह को अपना बना रखा है तो वो आपके अंग-संग धुनकारें देता है और आप कभी अकेले नहीं होंगे। इसलिए सच्चा मीत, सच्चा मित्र जो दोनों जहान में साथी है, वो सतगुरु, ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब है। अगर प्यार या वैराग्य करना है तो सतगुरु, मौला के वैराग्य में आओ। उसकी याद में तड़प कर तो देखो, वो क्या नहीं कर सकता।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान धन-दौलत, नौकरी, बेटा-बेटी, बहन-भाई के लिए आंसू बहाता है। यही आंसू कभी उस अल्लाह, राम के लिए बहाकर देखो तो एक-एक आंसू हीरे-मोती, जवाहरात बन जाएगा लेकिन हैरानी की बात यही है कि लोग मालिक के लिए नहीं बल्कि दुनियावी साजो-सामान के लिए पागल हो जाते हैं और वो पागलपन बता देता है कि आप किसमें, कितनी हद तक खोए हुए हैं। जिसे आदमी अपना पक्का साथी समझता है वो पता नहीं कब साथ छोड़ जाए। इसलिए अगर साथी ही बनाना है तो उस दोनों जहान के मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु, राम को बनाइए।

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