पूज्य हजूर पिता संंंंत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंंंह जी इन्सां फरमाते हैं कि ज्यादातर दुनियावी मोहब्बत की नींव स्वार्थ पर टिकी हुई है। जब तक स्वार्थ-सिद्धि होती है, मतलब हल होता है तो आपस में प्यार है और जैसे ही स्वार्थ-सिद्धि बंद होती है तो वो प्यार जो सालों से बना होता है पल में टूट जाता है।
दुनियावी प्यार कच्चे धागे की मानिंद है और मालिक का प्यार एक ऐसा तार है जो कितना भी उसे कोई खींचे न वह टूटता है, न कोई बल पड़Þता है और वो ही दोनों जहानों का सच्चा साथी है। बाकि इस संसार में जब तक यह शरीर है और शरीर में आत्मा है, संगी-साथी मिल जाएंगे लेकिन जैसे ही यह शरीर किसी काम का न रहा तो जो आपको अपना कहते हैं वो सब मुंह फेर लेंगे।
मालिक का प्यार ही एक ऐसा है जो कभी किसी को छोड़ता नहीं है। इंसान से चाहे कोई भी गलती हो जाती है और वो तौबा कर लेता है तो अल्लाह, राम का ही प्यार है जो उसे खुशियों से मालामाल कर देता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि आज के इस घोर कलयुग में चारों तरफ गर्ज, स्वार्थ, बुराइयां, एक दूसरे की टांग खिंचाई,पार्टी बाजी का बोलबाला है। इन सबसे आत्मा तड़प जाती है। ऐसा करने वालों को क्या मिलता है, क्या उनको खुशियां हासिल होती हैं जो किसी को गिराना चाहते हैं। क्यों किसी की निंदा-चुगली करते हैं?
अपने आपको बड़ा साबित करने के लिए यदि आप ऐसा करते रहेंगे तो आप अपनी नजरों में भी एक दिन गिर जाएंगे। इसलिए अपने चरित्र को ऊंचा रखिए, इस तरह का न बनाइये कि लोग आपका मजाक उड़ाएं। यदि आप किसी का बुरा सोच रहे हैं या किसी को उकसा रहे हैं तो वह आग आपके घर-परिवार में ही जाएगी, दूसरे के घर में नहीं। जो आदमी कौन, कैसा है के चक्कर में नहीं पड़ता वो ही अपना और घर-परिवार का ही नहीं कुलोें का भी उद्धार कर लेता है।
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