सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जहां तक इन्सान की निगाह देखती है, वहां वो परमपिता परमात्मा रहता है और जहां निगाह नहीं जाती, वहां भी वो हमेशा होता है। इन्सान की आंखें वो नहीं देख पाती, जो मालिक ने सब कुछ बनाया है। मालिक को देखना तो दूर की बात है, मालिक की सृष्टि में सूक्ष्म जीव हैं, कारण जीव हैं, जल्दी से आदमी खुली आंखों से उन्हें भी नहीं देख पाता। अस्थूल काय, जिसमें मनुष्य, पशु, पक्षी के शरीर आते हैं, जिनको इन्सान देखता रहता है और इसी को सारी दुनिया माने बैठा है।
या फिर लोगों के दिलो-दिमाग में त्रिलोकी के बारे में होता है, आसमान है, धरती है और पाताल है, ये तीन लोक हैं, ये त्रिलोकी है! ये गलत है, यह सही नहीं है। त्रिलोकी इसको नहीं कहा जाता, बल्कि त्रिलोकी जहां अस्थूल काय यानि जो शरीर दिखते हों, सूक्ष्म काय यानि जो शरीर नहीं दिखते, कारण काय यानि जो देवी-देवताओं के शरीर होते हैं, ये तीन तरह के शरीर जहां रहते हैं, उन्हें त्रिलोकी कहा जाता है। तो ऐसी सैकड़ों त्रिलोकियां हैं, जो हर जगह खंडोंं, ब्रह्मंडों में मालिक ने बना रखी हैं। सुमिरन, भक्ति के द्वारा जब आत्मिक शक्तियां बढ़ती हैं, आत्मा ऊपर उठने लगती है तो वो मालिक के नजारे नजर आने लगते हैं, मालिक की दया-मेहर, रहमत बरसने लगती है और इन्सान आगे बढ़ता जाता है, तो यूं नहीं लगता कि आत्मा आगे बढ़ रही है,
बल्कि ऐसा लगता है कि इन्सान आगे बढ़ रहा है। तब मालिक रहमत करें, तो वो त्रिलोकियों को भी दिखा देता है।
आप जी फरमाते हैं कि आदमी को सुमिरन करना चाहिए और बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए। यार, दोस्त, मित्र वही होता है, जो आपका भला करता है। जो आपको बहला-फुसला कर राम-नाम से दूर ले जाए, दलदल में फंसाए, बेपरवाह जी फरमाया करते कि ऐसे दोस्त हों, तो दुश्मनों की जरूरत नहीं होती, क्योंकि वो ही ऐसी दुश्मनी करते हैं, जैसे मन है। मन आदमी के साथ रहता है, पता नहीं चलने देता लेकिन दोस्त बनकर धोखा देता है।
इन्सान को कहता है कि वो काम कर ले, कोई हर्ज नहीं। ऐसा कहता रहता है, लेकिन इन्सान को सुखी नहीं होने देता। इन्सान को काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया रूपी दलदल में फंसा देता है, उनमें डुबो देता है। उसी तरह मनमते लोग होते हैं, जो इन्सान को गुमराह करते हैं। आदमी की अक्ल निकाल लेते हैं और आदमी को ऐसे लगता है कि जो हो रहा है, सही हो रहा है। कई बार मन उचाट हो जाता है और कहते हैं कि ‘बिगड़ा मन गुरू का न पीर का।’ जब मन बिगड़ जाता है, तो किसी गुरू, पीर-फकीर की बात को नहीं मानता। तो मन को रोकने के लिए एकमात्र उपाय सुमिरन, से ही है। मन काबू में आ सकता है, अगर आप सेवा, सुमिरन, परमार्थ करो और मनमते लोगों का संग छोड़ दो।
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