डेरा सच्चा सौदा के नाम है रक्तदान के क्षेत्र में 4 गिनिज वर्ल्ड रिकार्ड
ओढां (सच कहूँ/राजूू)। आज विश्व रक्तदाता दिवस है। रक्तदान की बात हो और डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियोंं का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता। चलते फिरते ‘ट्रयू ब्लड पंप’ के नाम से विख्यात डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी अपने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए रक्तदान करने से पीछे नहीं हटते।
डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों ने विकट परिस्थितियों में रक्तदान कर ये साबित किया कि वे रक्त के अभाव किसी की जिंदगी नहीं जाने देंगे। डेरा सच्चा सौदा दुनिया को नियमित रक्तदान के प्रति वर्षों से जागरूक करता आ रहा है। समय-समय पर भारतीय सेना के साथ-साथ पत्रकारों, पुलिस कर्मियों, थैलेसीमिया व एड्स रोगियों के अलावा देश और दुनियाभर में जरूरतमंद लोगों को रक्त की आपूर्ति करने में विश्वविख्यात डेरा सच्चा सौदा द्वारा अब तक लाखों यूनिट रक्तदान किया जा चुका है।
बापू मग्घर सिंह जी इंटरनेशनल ब्लड बैंक ने दी सराहनीय सेवाएं
डेरा सच्चा सौदा के नाम रक्तदान के क्षेत्र में 4 गिनिज वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज हैं। डेरा अनुयायियों में रक्तदान के प्रति ऐसा जज्बा है कि वे शादी, सालगिरह या जन्मदिन सहित सुअवसरों पर तो रक्तदान करते ही हैं बल्कि किसी की याद में भी रक्तदान करना नहीं भूलते। यहां पर जिक्रयोग है कि डेंगू व कोरोना के भयानक दौर में शाह सतनाम स्पेशेलिटी अस्पताल सरसा में स्थित पूज्य बापू मग्घर सिंह जी इंटरनेशनल ब्लड बैंक ने सराहनीय सेवाएं दी थीं।
जिसके चलते लोगों ने डेरा सच्चा सौदा की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहा था कि अगर डेरा सच्चा सौदा न होता तो रक्त के अभाव में पता नहीं कितने लोगों को अपनी जाने गंवानी पड़ती। डेरा अनुयायियों ने दुनियाभर के ब्लड बैंकोंं में पीड़ितों के लिए रक्तदान कर सच्चे इन्सां होने का फर्ज निभाया था और निभा भी रहे हैं। इस बारे जब कुछ रक्तदाताओं से बात की गई तो उन्होंने एक स्वर में कहा कि पूज्य गुरु जी की प्रेरणा से वे आखिरी दम तक रक्तदान करते रहेंगे।
श्री गुरुसर मोडिया में लगाया गया रक्तदान शिविर
मेरी उम्र 44 वर्ष है। मैं अपने जीवन में 40 बार रक्तदान कर चुका हूं। मुझे ये प्रेरणा पूज्य गुरु जी से मिली। पहले रक्तदान करने से मुझे डर लगता था। पूज्य बापू मग्घर सिंह जी की स्मृति में गांव श्री गुरुसर मोडिया में रक्तदान शिविर लगाया गया था। उस वक्त मैंने प्रथम बार रक्तदान किया था। वहां मेरा सारा डर दूर हो गया। उसके बाद से मैं नियमित रूप से रक्तदान कर रहा हूं। भविष्य में भी मैं रक्तदान करता रहूंगा। मैं तो यही कहता हूं कि रक्तदान से बड़ा कोई दान नहीं। इसलिए रक्तदान करते रहें।
-संजय इन्सां (नागोकी)।
मेरी उम्र 63 वर्ष की हो गई है। मैं अपने जीवन में 54 बार रक्तदान कर चुका हूं। मैंने पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा से 1988 में प्रथम बार लुधियाना में दुर्घटना में घायल व्यक्ति के लिए रक्तदान किया था। ‘तब से मैं नियमित रूप से रक्तदान करता आ रहा हूं। रक्तदान से न केवल हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है तो वहीं हमारी रक्त की बूंदे किसी की जिंदगी भी बचाती हैं। रक्तदान का ये जज्बा हमारे गुरु जी ने हममे भरा है।
-जयकिशन इन्सां (सहारनी)।
मेरी उम्र 47 वर्ष है। मैं अब तक करीब 32 बार रक्तदान कर चुका हूं। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए हमारा पूरा परिवार रक्तदान करता आ रहा है। मुझे जब भी रक्तदान की इच्छा होती है या जब भी कभी रक्तदान शिविर लगता है तो मैं रक्तदान करने जाता हूं। मुझे रक्तदान करते देख सबसे पहले मेरी पत्नी ने और फिर मेरी बेटी ने भी रक्तदान करना शुरू कर दिया। मैं आखिरी सांस तक रक्तदान करता रहूंगा।
-लक्ष्मण इन्सां (भंगू)।
मेरी उम्र 61 वर्ष है। मैं शाह सतनाम जी धाम में शाही कैंटीन का सेवादार हूं। मैं अब तक 45 बार रक्तदान कर चुका हूं। आखिरी दम तक भी रक्तदान करते रहने का इरादा। ये जज्बा मेरे सतगुुरु ने मेरे अंदर भरा है। मैं शिविर के अलावा आपातकालीन मरीजों के लिए भी रक्तदान करता रहता हूं। नियमित रक्तदान करने से मेरी हृदय से संबंधित बीमारी भी दूर हो गई। मैं तो सभी से यही कहता हूं कि जीवन में रक्तदान करते रहिए और लोगों की दुआएं लेते रहिए।
हरिचंद इन्सां (बप्पां)।
मेरी उम्र करीब 34 वर्ष है। पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए मैं अब तक करीब 30 बार रक्तदान कर चुका हूं। इसके अलावा मैं भविष्य में भी निरंतर रक्तदान करता रहूंगा। हमारे रक्त की कुछ बूंदे अगर किसी का जीवन बचा सकती है तो इससे बड़ा पून्य क्या होगा। मैं आभारी हूं पूज्य गुरु जी का जिन्होंने हमारे अंदर रक्तदान का जज्बा भरा।
बंटी इन्सां (मंडी कालांवाली)।
मेरी उम्र 53 वर्ष है। मैं अब तक करीब 32 बार रक्तदान कर चुका हूं। पूज्य गुरु जी के वचनों पर चलते हुए मैंने रक्तदान करने का प्रण लिया था। मेरे अलावा मेरा परिवार भी रक्तदान करता रहता है। रक्तदान करने से छोटी-मोटी बीमारियां तो दूर होती ही है बल्कि जो आत्मिक संतुुष्टि मिलती है वो बयां नहीं की जा सकती। रक्तदान कर इंसानियत की सेवा करते रहिए। पूज्य गुरु जी ने रक्तदान को महादान बताया है।
जगदीश इन्सां (मंडी कालांवाली)।
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