International Translation Day: हर साल 30 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया जाता है। 24 सितंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 30 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया था। यह दिवस बाइबल के प्रसिद्ध एवं प्राचीनतम अनुवादक एवं संरक्षक संत जेरोम की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिवस के माध्यम से सभी देशों की भाषाओं में हो रहे अनुवाद कार्यों एवं अनुवादकों, भाषांतरकारों, दुभाषियों तथा भाषा एवं अनुवाद (Languages Translation) के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिका को महत्व देना और दुनिया भर के अनुवाद समुदाय के बीच एकता को बढ़ाना है। International Translation Day
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ऐतिहासिक रूप से देखें तो हमें ज्ञात होता है कि अनुवाद का उद्गम धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों के प्रचार-प्रसार से हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे अनुवाद न सिर्फ धार्मिक क्षेत्र बल्कि सभ्यता, संस्कृति, संचार, वाणिज्य, व्यवसाय, अंतर सांस्कृतिक संवाद, पर्यटन, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट आदि के लिए अपरिहार्य बन गया। भाषा मनुष्य के विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है और इसके लिए हमें एक से अधिक भाषाओं की जरूरत पड़ती है। और इन भाषाओं के बीच सेतु बनाने का काम अनुवाद ही करता है। Languages Translation
आज जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां हम अनुवाद के आग्रही न हों
आज जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां पर हम चिंतन और व्यवहार के स्तर पर अनुवाद के आग्रही न हों। भारत में अनुवाद की परंपरा पुरानी है किंतु अनुवाद को जो महत्व 21वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में प्राप्त हुआ वह पहले नहीं हुआ था। सन 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात देश की आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन आया। विश्व के अन्य देशों के साथ भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक समीकरण बदले। राजनीतिक और आर्थिक कारणों के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास भी इस युग की प्रमुख घटना है, जिसके फलस्वरूप विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों में संपर्क की स्थिति उभर कर सामने आयी।
आज विश्व के अधिकांश बड़े देशों में एक प्रमुख भाषा के साथ-साथ अन्य कई भाषाएं भी गौण भाषा के रूप में समान्तर चल रही हैं। अतएव एक ही भौगोलिक सीमा की राजनीतिक, प्रशासनिक इकाई के अंतर्गत भाषायी बहुसंख्यक भी रहते हैं और भाषायी अल्पसंख्यक भी। इसलिए विभिन्न भाषाभाषियों के बीच उन्हीं की अपनी भाषा में संपर्क स्थापित कर लोकतंत्र में सबकी हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सकती है। वस्तुत: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बढ़ती हुई आदान-प्रदान की अनिवार्यता ने अनुवादक एवं अनुवाद कार्य के महत्व को बढ़ा दिया है।
अनुवाद का महत्व प्राचीन काल से ही स्वीकृत है
चूंकि हमारे देश में अनुवाद का महत्व प्राचीन काल से ही स्वीकृत है। प्रो. जी. गोपीनाथन ने ठीक ही कहा है कि अनुवाद आज व्यक्ति की सामाजिक आवश्यकता बन गया है। आज के सिमटते हुए संसार में संप्रेषण माध्यम के रूप में अनुवाद भी अपना निश्चित योगदान दे रहा है। भारत जैसे बहुभाषी देश में अनुवाद की उपादेयता स्वयंसिद्ध है। भारत के विभिन्न प्रदेशों के साहित्य में निहित मूलभूत एकता के स्वरूप को निखारने के लिए अनुवाद ही एकमात्र अचूक साधन है। इस तरह अनुवाद द्वारा मानव की एकता को रोकने वाली भौगोलिक और भाषायी दीवारों को ढहाकर विश्व मैत्री को और सुदृढ़ बना सकते हैं।
आजकल विशिष्ट अनुशासन के रूप में अनुवाद विषय के अध्ययन की आवश्यकता और उपादेयता पर विशेष बल दिया जा रहा है। विभिन्न विश्वविद्यालय अब इसे विषय के रूप में पढ़ा रहे हैं, इससे निश्चय ही अनुवाद के स्तर में बढ़ोतरी होगी। आजकल मशीनी अनुवाद पर भी कार्य हो रहे हैं। इनमें कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है। लेकिन इस क्षेत्र में अभी काफी कार्य किया जाना शेष है। International Translation Day
देवेन्द्रराज सुथार (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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