देश के सबसे बड़े इंजीनियर का रेल किस्सा

M. Visvesvaraya

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या देश के बड़े इंजीनियर और जानकार रहे हैं। भारत में उनका जन्मदिन, 15 सितंबर अभियन्ता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है। वो मैसूर के 19वें दीवान थे जिनका कार्यकाल साल 1912 से 1918 के बीच रहा। उन्हें न सिर्फ़ 1955 में भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया बल्कि सार्वजनिक जीवन में योगदान के लिए किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश इंडियन एम्पायर के नाइट कमांडर से भी नवाजा। वो मांड्या जिÞले में बने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं और उन्होंने हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने का सिस्टम भी दिया।

शुरूआती पढ़ाई चिकबल्लापुर में करने के बाद वो बैंगलोर चले गए जहां से उन्होंने 1881 में बीए डिग्री हासिल की। इसके बाद पुणे गए जहां कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। दक्षिण भारत के मैसूर को एक विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल आॅयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक आॅफ मैसूर समेत कई संस्थान उनकी कोशिशों का नतीजा हैं। उनसे जुड़ा एक और किस्सा काफी मशहूर है। ब्रिटिश भारत में एक रेलगाड़ी चली जा रही थी जिसमें ज्यादातर अंग्रेज सवार थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था।

सांवले रंग और मंझले कद का वो मुसाफिर सादे कपड़ों में था और वहां बैठे अंग्रेज उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझकर मजाक उड़ा रहे थे। पर वो किसी पर ध्यान नहीं दे रहे थे। लेकिन अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार दौड़ती ट्रेन कुछ ही पलों में रुक गई। सभी यात्री चेन खींचने वालों को भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड आ गया और सवाल किया कि जंजीर किसने खींची। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, ‘मैंने।’ वजह पूछी तो उन्होंने बताया, ”मेरा अंदाजा है कि यहां से लगभग कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’ गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वो बोले, ‘गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और आवाज से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’ गार्ड उन्हें लेकर जब कुछ दूर पहुंचा तो देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं।

 

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