Surajkund Mela 2025: मेले में ‘आपणा घर’ को देखने उमड़ रहे पर्यटक! युवा ही नहीं, हर आयु वर्ग को खूब भा रही हरियाणवी पगड़ी

Surajkund Mela 2025
Surajkund Mela 2025: मेले में ‘आपणा घर’ को देखने उमड़ रहे पर्यटक! युवा ही नहीं, हर आयु वर्ग को खूब भा रही हरियाणवी पगड़ी

विरासत के निदेशक महा सिंह पूनिया के प्रयासों की हो रही भरपूर सराहना

38th International Surajkund Crafts Mela: सूरजकुंड, फरीदाबाद (सच कहूँ/राजेन्द्र दहिया)। 38वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में ‘आपणा घर’ में लगी विरासत प्रदर्शनी में हरियाणवी पगड़ी पर्यटकों को खूब पसंद आ रही है। पगड़ी बंधवाने के लिए होड़ सी लगी है। हरियाणा के ‘आपणा घर’ में विरासत की ओर से लगाई गई पारंपरिक परिधानों की प्रदर्शनी में ‘पगड़ी बंधाओ, फोटो खिंचाओ’ बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। Surajkund Mela 2025

जानकारी देते हुए हरियाणवी संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास में जुटे एवं विरासत के निदेशक डॉ. महा सिंह पूनिया ने बताया कि हरियाणा की पगड़ी को अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेला-2025 में खूब लोकप्रियता हासिल हो रही है। पर्यटक पगड़ी बांधकर हरियाणवी झरोखें से सेल्फी, हरियाणवी दरवाजों के साथ सेल्फी, चारपाई व आपणा घर के दरवाजों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। मेले में इस माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक पगड़ी खूब लोकप्रियता हासिल कर रही है। पर्यटक ‘आपणा घर’ के लिए डॉ. महा सिंह पूनिया के प्रयासों की दिल खोलकर प्रशंसा कर रहे हैं।

रोजाना एक हजार से ज्यादा लोग बंधवा रहे पगड़ी | Surajkund Mela 2025

आपणा घर के बाहर हरियाणवी पगड़ी बांध रहे मनोज कालड़ा ने बताया कि प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोग शान से हरियाणवी पगड़ी बंधवाकर मेले का भ्रमण कर रहे हैं। युवाओं में भी दिनभर पगड़ी बंधवाने की होड़ लगी रहती है। कुरूक्षेत्र से मेला देखने आए युवा अंकित ने बताया कि उनके दादा पगड़ी बांधते थे। उन्हें भी पगड़ी बांधने का बहुत चाव है। फिलहाल मेला परिसर में आपणा घर में सजी विरासत प्रदर्शनी हर पर्यटक को हरियाणवी संस्कृति का संदेश दे रही है।
ओडिशा के कलाकारों ने पेश किया नृत्य और सेना पराक्रम का अद्भुत नज़ारा

सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला की हर संध्या शानदार अनुभव दे रही है। जहां हर रोज देश-विदेश के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा दी जा रही प्रस्तुतियां दर्शकों को खूब लुभा रही हैं। इसी कड़ी में वीरवार सायं बड़ी चौपाल पर सांस्कृतिक संध्या में इस बार के मेले के थीम स्टेट ओडिसा के कलाकारों ने नृत्य और सेना पराक्रम का अद्भुत नज़ारा पेश कर दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी।

ओडिसा कलाकारों के समूह ने बड़ी चौपाल के मंच पर तलवारबाजी से साहसी सेना के पराक्रम को दर्शाया। इनकी प्रस्तुति इतनी बेहतरीन रही कि पंडाल में सभी लोगों ने तालियों से इनका अभिवादन किया। इनके अलावा ओडिसा के शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुतियों को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया। महिला कलाकारों के सामूहिक नृत्य ने सभी को ओडिशा की संस्कृति से रूबरू करवाया। इन नृत्यों में संबलपुरी और गोटीपुआ नृत्य की प्रस्तुति काफी शानदार रही। बड़ी चौपाल पर आयोजित सांस्कृतिक संध्या में ओडिसा के कलाकारों ने देर रात तक समा बांधे रखा। इस अवसर पर काफी संख्या में पर्यटक मौजूद रहे।

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बड़ी चौपाल की सांस्कृतिक संध्या में उमड़ रहे पर्यटक | Surajkund Mela 2025

पूनिया ने बताया कि लोकजीवन में पगड़ी की विशेष महत्ता है। पगड़ी की परम्परा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पगड़ी जहां एक ओर लोक सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा नाता है। हरियाणा के खादर, बांगर, बागड़, अहीरवाल, बृज, मेवात, कौरवी क्षेत्र सभी क्षेत्रों में पगड़ी की विविधता देखने को मिलती है। प्राचीन काल में सिर को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाता था। पगड़ी को सिर पर धारण किया जाता है। इसलिए इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला।

पगड़ी को लोकजीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खण्डवा, खण्डका्र आदि नामों से जाना जाता है। जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से भी जाना जाता है। वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी सिरोधार्य है। यदि पगड़ी के अतीत के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परंपरा रही है। Surajkund Mela 2025

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