हिन्दुस्तान की राजनीति (Politics) ने अब एक नई राह पकड़ ली है। असहिष्णुता (Intolerance) की राह, नफरत व बदलाखोरी की राह। राजनीति में सिद्धांत, उसूल, मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं। सिद्धांत केवल एक बचा है वो है साम, दाम, दंड भेद से सत्ता प्राप्त करना। आज विपक्ष का काम केवल विरोध करना और सत्ता पक्ष का काम येन प्रकारेण विरोध को कुचलना। इसी कशमकश में समय बीत जाता है। संसद में स्वस्थ बहस अब बीते जमाने की बात हो गई है। किसी बिल को पारित करते वक्त उसके नफा-नुकसान पर जो चर्चा होनी चाहिए वह चर्चा न होकर व्यक्तिगत कटाक्ष ही अब चर्चा का विषय बन गया है और इसी शोरगुल में बिना किसी चर्चा के बिल पास हो जाते हैं और कानून का रूप ले लेते हैं। यह प्रथा देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। देश की नई बनी संसद पर अब कोहराम मचा हुआ है।
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विपक्षी पार्टियों का कहना है कि संसद की नई इमारत प्रधानमंत्री (PM) नरेन्द्र मोदी का महिमामंडित करने के लिए बनाई गई, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। एक तरफ देश कोरोना काल में आर्थिक संकट से गुजर रहा था वहीं दूसरी ओर संसद की नई ईमारत का शिलान्यास हो रहा था। अब संसद के नए भवन के उद्घाटन की बारी है। 28 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नई संसद का उद्घाटन करेंगे। इसके विरोध में कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने मोर्चा खोल दिया है। 19 राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री द्वारा नई संसद के उद्घाटन कार्यक्रम का संयुक्त रूप से बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। इन राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री द्वारा नई संसद के उद्घाटन पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि संसद का प्रमुख राष्ट्रपति होता है, अत: संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए।
विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यपालिका का प्रमुख होता है, विधायिका का नहीं। माकपा (CPM) महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि संसद के शिलान्यास और उद्घाटन दोनों अवसरों पर महामहिम राष्ट्रपति को दूर रखना बिल्कुल ही न्यायोचित नहीं है। दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि संसद देश के गौरव की प्रतीक है, जिसमें हमने सभी को निमंत्रण दिया है। इस गौरवशाली क्षण पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। विपक्षी पार्टियों का विवाद खड़ा करने की आदत बन गई है। राष्ट्रपति देश के प्रमुख होते हैं, तो प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं।
भाजपा (BJP) नेता हरदीप पुरी का कहना है कि राष्ट्रपति किसी भी सदन के सदस्य नहीं होते, ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन करना बिल्कुल न्यायसंगत है। इस प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप एक सीमा तक तो सही होते हैं लेकिन जहां देश की प्रतिष्ठा का सवाल हो तो तमाम राजनीतिक पार्टियों को अपने मतभेद भुलाकर एकजुटता दिखानी चाहिए। सत्तारूढ़ दल को भी विपक्षी पार्टियों के तर्कसंगत सुझाव को मानन चाहिए और विपक्षी दलों को भी केवल विरोध के नाम पर विरोध नहीं करना चाहिए।