गांधी के तीन बंदरों की तरह-वक्त देखता नहीं, अनुमान लगाता है। वक्त बोलता नहीं, संदेश देता है। वक्त सुनता नहीं, महसूस करता है। आदमी तब सच बोलता है, जब किसी ओर से उसे छुपा नहीं सकता, पर वक्त सदैव ही सच को उद्घाटित कर देता है। एक बड़ा सच यह है कि कोरोना की तीसरी लहर की संभावनाओं से एक बार फिर जीवन पर खतरे मंडराने की आशंकाएं तीव्र हैं और बावजूद हम इसके प्रति लापरवाही बरत रहे हैं। भारत में कोरोना की दूसरी लहर उतार पर है लेकिन तीसरी लहर का खतरा है, उसके साथ डेल्टा और डेल्टा प्लस जीवाणु के फैलने का खतरा भी दिखाई पड़ने लगा है। डेल्टा प्लस जीवाणु काफी खतरनाक है। इसने अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में दुबारा कोहराम मचा दिया है। अभी दूसरी लहर का असर देश के 75 जिलों में 10 प्रतिशत और 92 जिलों में 5 प्रतिशत तक बना हुआ है। यदि लोगों ने सावधानी नहीं बरती तो अन्य सैंकड़ों जिलों में फैलते हुए इसे देर नहीं लगेगी।
भारत के विभिन्न प्रांतों में अभी तक वैसे तो नए जीवाणु के मरीज बहुत कम संख्या में पाए गए हैं लेकिन यदि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे सतर्क देशों में यह फैल सकता है तो भारत में तो इसके संक्रमण की गुंजाइश बहुत ज्यादा है। काल सिर्फ युग के साथ नहीं बदलता। दिनों के साथ बदलता है और कभी-कभी घंटों में भी। ऐसा ही योग दिवस के दिन अचानक देखने को मिला, जब देश भर में 80 लाख से अधिक टीके एक दिन में लग गए, यह अच्छा-सा लगने वाला रिकॉर्ड भी कई विरोधियों की नींद उड़ाने का कारण बन गया। इसी बीच जम्मू-कश्मीर के नेताओं से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैठक की, उधर पाकिस्तान ने ड्रोन से जम्मू-कश्मीर के हवाई अड्डा परिसर में एयरबेस पर हमला कर दिया। घाटी में चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ करने की संभावनाओं को तलाशने के लिये घाटी के प्रमुख राजनीतिक दलों को इसमें इस शर्त पर बुलाया गया था कि वे पाकिस्तान की वकालत का राग नहीं अलापेंगे।
लेकिन फारूख अब्दुल्ला प्रधानमंत्री के ‘दावतनामे’ को कबूल करने के साथ बोले कि हम उनसे अपनी बात कहेंगे, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने मीडिया के आगे ही अपने दिल की बात कह दी कि पाकिस्तान से सरकार बात करे। अब इस मीटिंग एवं घाटी के नेताओं की पाकिस्तानपरस्ती को लेकर मीडिया में गर्मागर्मा बहस हो रही है, ऐसा लग रहा है बिलों में दुबके सांप बाहर आते ही फुफकारने लगे हैं। इन राष्ट्र को आहत करने वाली स्थितियों के बीच किसान अभी भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं, वे कब क्या कर बैठेंगे, कहा नहीं जा सकता? लेकिन उनके कारण दिल्ली की जनता तो परेशान है। यह कैसा लोकतांत्रिक हठ है? लेकिन देश इन खबरों से पीड़ित एवं परेशान तो है। गांधी के स्वप्न को तोड़ने के प्रयत्न हो रहे हैं, गांधी के मूल्य टूट रहे हैं। पूरा देश आहत है। पीड़ा से, शर्म से।
आज के राजनैतिक दलों एवं उनके नेताओं का दुश्मन राष्ट्र, साम्प्रदायिक, असामाजिक और स्वार्थी तत्वों के साथ इस तरह का ताना-बाना हो गया है कि उससे निकलना मुश्किल हो गया है। सांप-छछूंदर की स्थिति है। न निकलते बनता है और न उगलते। विपक्षी राजनीतिज्ञ विश्वसनीय और नैतिक नहीं रहे जबकि सत्ता विश्वास एवं नैतिकता के बिना ठहरती नहीं। राजनीतिक दल जब अपना राष्ट्रीय दायित्व नैतिकतापूर्ण नहीं निभा सके, तब सृजनशील सामाजिक संस्थाओं का योगदान अधिक मूल्यवान साबित होता है। आवश्यकता है वे अपने सम्पूर्ण दायित्व के साथ आगे आयें। अंधेरे को कोसने से बेहतर है, हम एक मोमबत्ती जलाएं। अन्यथा वक्त आने पर, वक्त सबको सीख दे देगा।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, link din , YouTube पर फॉलो करें।