पूरे देश से प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि इसमें से 15,384 टन (60 प्रतिशत) कचरे का ही प्रतिदिन एकत्रण और पुनर्चक्रण हो पा रहा है। बाकी 40 फीसदी प्लास्टिक कचरे का अधिकांश हिस्सा जो एकत्र नहीं हो पाता है, वह नाले नालियों सहित अन्य माध्यम से जलाशयों तक पहुंच जाता है और जो कचरा एकत्र हो जाता है, वह भी गैरशोधित रूप में डंपिंग ग्राउंड में पड़े रह कर आसापास की जमीन का प्रदूषण बढ़ाता है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संसद में पेश प्लास्टिक कचरे के शोधन से जुड़े आंकड़ों में यह बात सामने आयी है। प्लास्टिक आज के दौर की सर्वाधिक सर्वव्यापी और जरूरी वस्तु है। प्लास्टिक हमारे दिनचर्या में यूं बस गया है कि उसके बगैर हम जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे। सुबह से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक अगर हम अपनी दिनचर्या पर ध्यान से गौर करेगे तो पाएंगे कि प्लास्टिक ने किसी न किसी रूप में हमें हर पल घेर कर रखा है।
टूथब्रश से सुबह ब्रश करना हो या आॅफिस में दिन भर कम्प्यूटर पर काम, बाजार से कोई सामान लाना हो या टिफिन और वॉटर बॉटल में खाना और पानी लेकर चलना। प्लास्टिक हर जगह है, हर समय है। आज के वक्त में किसी भी ऐसे घर, संस्थान या दफ्तर की कल्पना करना मुश्किल है जो प्लास्टिक रहित हो। गांवों में भी शादी-ब्याह में प्रयुक्त होने वाले मिट्टी के बरतन और पत्तलों की जगह आज प्लास्टिक के उत्पादों ने ले ली है।
लगभग हर उत्पाद की पैकेजिंग में प्लास्टिक प्रयुक्त हो रहा है।बाजार से कोई भी वस्तु खरीदने जाते शायद ही किसी व्यक्ति के पास अपना थैला होता है। सब्जियों से लेकर दूसरे उपयोग का कोई भी छोटा-मोटा सामान लाने के लिए लोग बिना किसी संकोच के प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल करते हैं। विडंबना यह है कि जहां भी लोग पिकनिक के लिए जाते हैं, यहां तक कि जंगलों, पर्वतों की चोटियों, रिवर राफ्टिंग कैंपों और नदियों के किनारों तक पर प्लास्टिक का कचरा छोड़ आते हैं।
शहरों में जगह- जगह सड़कों किनारे व गंदगीयुक्त कीचड़ में भी प्लास्टिक की थैलिया तैरती नजर आती है, जिससे पानी में विघटन के कारण ये दुर्गंध भी पैदा कर रही हैं। जिस प्लास्टिक ने हमारे जीवन को आसान और सुविधाजनक बनाया, वही आज हमारे लिए धीमा जहर बनता जा रहा है। प्लास्टिक जमीन, पानी और हवा तीनों को प्रभावित कर रहा है। सदियों तक नष्ट न होने वाला प्लास्टिक भूजल को प्रदूषित कर रहा है। प्लास्टिक के बहुत सूक्ष्म टुकड़े उसमें मिलकर उसे दूषित कर देते हैं।
बोतलबंद पानी बेचने वाली कंपनियां इसी भूजल का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन उनकी प्रॉसेसिंग में वे सूक्ष्म कण खत्म नहीं हो पाते। यहीं नहीं माइक्रो प्लास्टिक हमारे नलों में आने वाले पानी या सांस ली जाने वाली हवा में भी पाए गए हैं। प्लास्टिक में कुछ जहरीले रसायनों जैसे स्टाइरीन डिमर बिस्फेनाल ए और पालीस्टेरेन के उप उत्पाद उपस्थित होते है। ये उत्पाद प्रति दिन पीने वाले पानी की गुणवत्ता खराब कर रहे है। गर्म होने पर प्लास्टिक जहरीली ग्रीनहाउस गैस का कारण भी बना हुआ है।प्लास्टिक बैग के कारण संपूर्ण पर्यावरण का चक्र प्रभावित हो रहा है और यह कचरा प्रबंधन की राह में भी बड़ी बाधा है। प्लास्टिक का कचरा आज हमारी गलियों, नालों और नदियों को जाम कर रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक जितना प्लास्टिक प्रदूषण जमीन पर है उससे कहीं ज्यादा समुद्र के अंदर है जो जलीय जीवों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। कभी ये जीव इन प्लास्टिक में उलझ कर फंसे रह जाते हैं तो कभी मुंह के जरिए वो इनके पेट में पहुंच जाता है।दुनिया के लगभग 90% समुद्री जीव-जंतु एवं पक्षी किसी-न-किसी रूप में अपने शरीर में प्लास्टिक ले रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक सालाना एक लाख से अधिक जलीय जीव प्लास्टिक प्रदूषण से मर रहे हैं। केवल उत्तरी प्रशांत महासागर में ही मछलियां 12,000 से 24,000 टन प्लास्टिक निगल जाती हैं, जिससे आंतों में घाव से लेकर उनकी मृत्यु तक हो जाती है। समुद्रों में प्लास्टिक प्रदूषण यदि इसी गति से बढ़ता रहा तो 2050 तक वहां सागर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा।
शहर और गाव की गलियों से लेकर खेतों तक में मुसीबत बन चुका प्लास्टिक कचरा 10 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। वहीं 2022 तक भारतीय प्लास्टिक उद्योग प्लास्टिक उत्पादन को दोगुना करने के प्रयास में है। ऐसे में आने वाले वक्त में प्लास्टिक कचरे का सही से निस्तारण, पुनर्चक्रण और शोधन नहीं किया गया तो यह कचरा भविष्य में देश के लिये ‘‘विषैला टाइम बम’’ साबित हो सकता है।
कैलाश बिश्नोई
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