एक सुनार की दुकान थी। उस दुकान के सब लोग बड़े भक्त दिखते थे। गले में माला, माथे पर तिलक, हाथ में सुमिरनी, लोग विश्वास करके उन्हीं की दुकान में आते थे। वे सोचते थे कि ये परम- भक्त हैं, कभी ठग नहीं सकते। जब कोई सोना खरीदने पहुंचता तो सुनता कि कोई कारीगर, ‘केशव-केशव’ कह रहा है, दूसरा ‘गोपाल-गोपाल’ रट रहा है और कोई ‘हरि-हरि’ बोल रहा है। फिर कुछ देर में कोई हर-हर आदि कह रहा है। ईश्वर के इतने नाम एक साथ सुनकर खरीददार सहज ही सोचते थे, इस दुकान के सुनार बड़े अच्छे हैं। परन्तु इन सब बातों का अर्थ कुछ और ही था। जिसने ‘केशव-केशव’ कहा था, उसका मतलब यह पूछने का था कि ये कौन है? जिसने ‘गोपाल-गोपाल’ कहा था, उसका अर्थ यह है कि ये धनवान हैं, ये धनवान हैं। फिर आवाज आई ‘हरि-हरि’ इसका अर्थ है कि ‘क्या हम इनके धन का हरण करें?’ फिर आवाज आई, ‘हर-हर’ उसने इशारा किया कि हाँ हरण करो, ये धनवान है- ये धनवान है।
भगवान का भय
प्रत्येक मनुष्य में भगवान का भय होना चाहिए क्योंकि भय से भोगों का त्याग सहज हो जाता है। भोगों के त्याग से परमार्थ का मार्ग सुगम हो जाता है। भगवान प्रत्येक मनुष्य के शुभ और अशुभ कर्मों को देखते रहते हैं। जो मनुष्य भगवान का भय मानता है उसे वे निर्भय कर देते हैं। वास्तव में वह व्यक्ति बुद्धिमान है, जो भगवान के भय के कारण विषय-विकारों से और अशुभ-वासनाओं से दूर रहता है। प्रत्येक मनुष्य को एकान्त में बैठकर भगवान का भजन करना चाहिए। भगवान का भय और भगवान का भजन सारे पापों से बचाता है। जिस मनुष्य का मन जितना भोगों से दूर रहता है वह व्यक्ति उतना ही प्रभु के निकट है। जैसे रोगी, मृत्यु के भय से सारे भोगों को त्याग देता है, वैसे ही बुद्धिमान पुरुष नरक के भय से भोेगों का त्याग कर देता है। गुरु नानक जी ने कहा है, ‘जिना मन भय तिना मन भाव’।
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