बोले: इससे अच्छा तो दिहाड़ी कर लेते, कम से कम समय पर पैसे तो मिल जाते (Natural Disaster on Narma)
सच कहूँ/राजू ओढां। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी रोग तो कभी समय पर बीज, खाद व पानी न मिलने के कारण धरतीपुत्रों को समय-समय पर परेशानियों से जूझना पड़ता है। लेकिन इस बार प्रकृति ने ऐसी चपेट मारी है कि किसानों की हालत दयनीय हो गई है। इस समय किसान भले ही नरमें की चुगाई में लगे हुए हैं लेकिन मन ही मन में यही जोड़-तोड़ चल रही है कि आखिर क्या बचेगा और कैसे लेनदेन हो पाएगा। स्थिति ये है कि किसान का कर्ज मुक्त करना तो दूर परिवार का पेट पालना भी दुश्वार साबित हो रहा है।
बरसात व उखेड़ा रोग ने की उम्मीदें धुमिल
इस बारे जब कुछ किसानों के खेतों में जाकर वस्तुस्थिति से अवगत हुआ गया तो किसानों ने बुझे मन से अपनी हालत ब्यान करते हुए कहा कि खरीफ की फसल में मुनाफा तो दूर लागत खर्च भी पूरा नहीं होता प्रतीत हो रहा। नुहियांवाली के किसान डॉ. जगदीश सहारण, लीलाधर जोशी, सुरजभान नेहरा, दलीप नेहरा, रामेश्वर कटारिया व आशाराम नेहरा ने बताया कि इस बार भीषण गर्मी के बावजूद भी नरमेंं की फसल ठीक थी।
लेकिन अंतिम पड़ाव पर हुई बरसात ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया तो वहीं उखेड़ा रोग ने कोढ में खाज का कार्य करते हुए किसानों को दोहरी चपेट मार दी। किसानों ने दु:खी मन से कहा कि इससे अच्छा तो मजदूरी ही कर लेते। क म से कम मजदूरी के पैसे तो समय पर हाथ में आ जाते। किसानों ने बताया कि काश ये बरसात अगर अगस्त माह में हो जाती तो किसानों की हालत ये न होती।
स्पैशल गिरदावरी करवाए सरकार
देश का पेट पालने वाले अन्नदाता के समक्ष आज स्वंय का पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है। कुछ तो प्रकृति ने किसानों को चपेट मार दी और रही सही कमी सरकारी की नीतियों ने पूरी कर दी। स्थिति ये है कि जलभराव के बाद उखेड़ा रोग के चलते खेतों में फसलें बूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। हमारी सरकार से मांग है कि स्पैशल गिरदावरी करवाकर किसानों को मुआवजा दिया जाए।
-प्रहलाद सिंंह भारूखेड़ा, प्रदेशाध्यक्ष (हरियाणा किसान मंच)
बरसात से टिंडे गले, उखेड़ा बना कोढ में खाज
सितंबर माह में हुई बरसात फसलों के लिए आफत साबित हुई। खेतों में जलभराव होने के कारण जहां टिंडे गल गए तो वहीं उखेड़ा रोग कोढ में खाज साबित हुआ। स्थिति ये है कि नरमें की फसल उखेड़ा रोग से पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। किसानों को इस सीजन में हर बार प्रवासी मजदूरों की कमी खलती है लेकिन इस बार फसल नष्ट होने के चलते किसान अपने परिवार के साथ जैसे-तैसे स्वंय ही काम चला रहा है। किसानों के अनुसार उन्होंने फसल की जितनी उम्मीद जताई थी उससे चौथे हिस्से की भी फसल नहीं होगी।
खेतोंं में भले ही फसल बेहद कमजोर है लेकिन मजदूरों ने अपनी मजदूरी में ईजाफा किया है। किसान मजदूरों के समक्ष खराब फसल का हवाला दे रहे हैंं तो वहीं मजदूर अपने खर्च का। विगत वर्ष प्रवासी मजदूरों ने करीब साढ़े रूपये 600 प्रति क्विंटल के हिसाब से चुगाई मांगी थी। तो वहीं इस बार मजदूर 700 रूपये तक चुगाई मांग रहे हैं। इसके अलावा उनका किराया-भाड़ा व चाय-पानी का खर्च अलग है।
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