भारत में तो आये दिन किसी न किसी कारण छुट्टियाँ आती ही रहती हैं। जी हां, रविवार की छुट्टी का इंतजार तो सबको रहता है। आज हम आपको इस छुट्टी का इतिहास बताने वाले हैं की क्यों होती है रविवार को छुट्टी। हिन्दू कैलेंडर या हिन्दू पंचांग के अनुसार सप्ताह की शुरूआत रविवार से ही होती है। यह दिन सूर्य देवता का दिन होता है। हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान् सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि सप्ताह के पहले दिन ऐसा करने से सारा सप्ताह मन शांत रहता है, सभी कार्य सफल होते हैं और किसी भी प्रकार की बाधा या परेशानी उत्पन्न नहीं होती। किसी भी व्यक्ति को अपनी ये परम्पराएँ निभाने में कोई परेशानी न हो। इसलिए पुरातन काल से ही रविवार को अवकाश मनाया जाता है।
हिन्दू पंचांग के विपरीत अंग्रेजी कैलंडर के अनुसार रविवार सप्ताह का अंतिम दिन माना जाता है। इसके पीछे का कारण यह है कि अंग्रेजों में यह मान्यता है की इस धरती का सृजन कार्य ईश्वर ने छ: दिनों में किया था। ऐसा माना जाता है कि छ: दिनों के बाद सातवें दिन ईश्वर ने विश्राम किया था। इस कारण रविवार को सप्ताह का अंतिम दिन मानकर इस दिन सभी को आराम करने के लिए अवकाश दिया जाता है। इसी कारण अंग्रेजी देशों में इसे वीकेंड का नाम भी दिया जाता है। भारत पर अंग्रेजों का शासन था और उनके जुल्म दिन-ब-दिन बढ़ रहे थे। इस समय सबसे ज्यादा दयनीय हालत थी तो मजदूरों की।
जिन्हें लगातार सात दिनों तक काम करना पड़ता था। इतना ही नहीं उन्हें खाने के लिए अर्धावकाश भी नहीं दिया जाता था। बात 1857ई. से 26 साल बाद की है जब मजदूरों के नेता श्री मेघाजी लोखंडे ने मजदूरों के हक में अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने सप्ताह में एक दिन छुट्टी के लिए अपना संघर्ष शुरू किया। छुट्टी के लिए उन्होंने यह तर्क दिया कि हर हिन्दुस्तानी सप्ताह के 4 दिन अपने मालिक के लिए व अपने परिवार के लिए काम करता है। उसे सप्ताह में एक दिन अपने देश व समाज की सेवा के लिए भी दिया जाना चाहिए। इससे वह अपने देश और समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य निभा सके।
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