Stock Market: ये है शेयर बाजार में ज्यादा पैसा डालने का नतीजा, बैंक भी बदहाल, रोजगार में भी टोटा..

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Stock Market: ये है शेयर बाजार में ज्यादा पैसा डालने का नतीजा, बैंक भी बदहाल, रोजगार में भी टोटा..

Stock Market: भारत देश कि अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बडी अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं, लेकिन इसमें रोजगार पैदा करना एक बहुत बड़ी चुनौती भी हैं, सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक खर्च से ग्रोथ रेट को बल मिला हैं, लेकिन प्राइवेट इन्वेस्टमेंट में कमी और बैंक डिपॉजिट में धीमी ग्रोथ से आर्थिक संतुलन बिगड़ रहा हैं। बैंक कर्ज तभी दे पाएंगे, जब उनके पास कर्ज बांटने जितना पैसा रखा हों, लेकिन डिपॉजिट की कमी और लोन बांटने के अनियंत्रित नियमों ने आर्थिक विकास को धीमा कर दिया हैं, इन सब के बीच, घरों की बचत का निवेश शेयर मार्केट और पूंजी बाजार में बढ़ रहा हैं। ऐसे में समझने की जरूरत हैं कि ये पूरा घटनाक्रम भारत के आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता हैं।

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जानकारी के अनुसार इस घटनाक्रम को लयबद्ध किया गया हैं, वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, युवाओं में बेरोजगारी दर 12 प्रतिशत तक पहुंच गई हैं, वहीं निजी निवेश में भी कमी देखी गई हैं, इस निवेश को निजी स्थायी पूंजी निर्माण से मापा जाता हैं, वित्त वर्ष 2024 की चौधी तिमाही में यह निवेश घटकर 6.46 प्रतिशत पर आ गया हैं, जो पिछली तिमाही में 9.7 प्रतिशत था। वहीं आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 में बताया गया हैं कि वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2023 के बीच, कुल GFCF में नॉन-फाइनेंशियल निजी कंपनियों की हिस्सेदारी केवल 0.8 प्रतिशत बढ़ी इस सर्वेक्षण ने स्पष्ट किया हैं, कि अब निजी क्षेत्र को आगे बढ़कर अर्थव्यवस्था की बागडोर संभालने की जरूरत हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि निजी क्षेत्र में निवेश की कमी का एक मुख्य कारण बैंकों की निजी क्षेत्र को कर्ज देकर जोखिम लेने की घटती क्षमता हैं, यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति हैं, क्योंकि एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में कर्ज की सालाना वृद्धि दर घटकर 14 प्रतिशत पर आ का अनुमान हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 16 प्रतिशत थी।

डिपॉजिट संकट हैं भारी | Stock Market

भारत जैसी अर्थव्यवस्था में ग्रोथ को बनाए रखने में बैंक क्रेडिट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी हैं कि बैंक डिपॉजिट भी उसी दर से बढ़े, फिलहाल बैंकों के सामने डिपॉजिट की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं, जिससे उनका कर्ज देने की क्षमता प्रभावित हो रही हैं, इस डिपॉजिट-क्रेडिट के अंतर ने बीते 2 दशकों का सबसे खराब डिपॉजिट संकट पैदा कर दिया हैं, एचडीएफसी बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 2 सालों में डिपॉडिट वृद्धि औसतन 11.1 प्रतिशत रही, जबकि कर्ज वृद्धि 16.8 प्रतिशत रही, इससे पहल 2018-2019,2011-2013 और 2004-2007 में कभी ऐसी ही स्थिति देखी गई थी, जब सेंट्रल बैंक द्वारा ब्याज दरें बढाई गई थी।

बैंकों में जमा नहीं हैं तो कहां हैं? Stock Market

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी जुलाई में डिपॉजिट की धीमी वृद्धि पर चिंता जताई थी, उन्होंने कहा था कि बैंकों पर पारंपरिक रूप से भरोसा करने वाले परिवार और उपभोक्ता अब अपनी बचत पूंजी बाजार और अन्य वित्तीय माध्यमों में लगा रहे हैं, एचडीएफसी बैंक की क्रॉस-कंट्री रिपोर्ट के अनुसार भारत का वर्तमान प्रति व्यक्ति आय का स्तर अन्य एशियाई देशों जैसे थाईलैंड, मलेशिया और चीन की तुलना में क्रेडिट-जीडीपी अनुपात में कम हैं।

वहीं बैंकों की डिपॉजिट ग्रोथ में गिरावट का एक और कारण यह भी हैं कि घरेलू बचत पूंजी बाजारों की ओर बढ़ रही हैं, कोविड़-19 महामारी के बाद से भारतीय पूंजी बाजारों ने बड़ी वृद्धि देखी हैं, हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया हैं कि सिर्फ घरेलू बचत का पूंजी बाजार की ओर बढ़ान बैकों में डिपॉजिट मे कमी का कारण ही नहीं हैं, बल्कि यह डिपॉजिट ओवरऑल संरचना को प्रभावित करता हैं।

HDFS बैंक की रिपोर्ट में यह भी बताया गया हैं कि चुनावों के नजदीक सरकारी खर्चों में कमी से जिपॉजिट संकट और गहरा हो गया है, सरकार का खर्च कम होने के कारण RBI में सरकारी नकदी का संतुलन बढ़ गया हैं, जो जनवरी 2024 में 4.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था और मई 2024 में यह 4 लाख करोड से ऊपर थां। वहीं एसएंडपी ग्लोबल ने कहा है कि निजी निवेश के साइकल को गति मिलने के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं, सरकार द्वार इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और हाउसिंग सेक्टर के पुनरुद्धार ने स्टील और सीमेंट जैसे संबंधित क्षेत्रों में निजी निवेश को आकर्षित किया गया हैं, हालांकि अभी व्यापक स्तर पर रिकवरी नहीं पाई गई हैं।