बेपरवाह जी के इलाही वचन: यह डेरा किसी चंदे, फंड या धोखे की दौलत से नहीं बना

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सरसा। धन-धन संतों के न्यारे राम, अलमस्त मौला परम संत शाह मस्ताना जी बिलोचिस्तानी जी, जिन्होंने जंगल बीआबान में डेरा सच्चा सौदा स्थापित कर जंगल में मंगल किया। इसलिए इस न्यारे राम को कोई देखे तो पता चले कि संतों वाला राम क्या-क्या काम करता है।
परम पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘‘भाई! यह डेरा सच्चा सौदा प्रेम की दौलत से संतों के राम ने खुद बनाया है। प्रेम की वह दौलत अंदर से आई है। यह डेरा किसी चंदे, फंड या धोखे की दौलत से नहीं बना है। यह डेरा अपनी दौलत से ही बना है, पराई दौलत से नहीं बना। दूसरे पराई दौलत से बनाते हैं।’’
ऐ इन्सान! तू अपने अंदर वाला सच्चा मंदिर (ह्रदय मंदिर) भी देख, जिस परमेश्वर ने खुद बनाया है और जिसमें कि वो खुद बैठा है।
तेरे पूजन को भगवान बना
मन मंदिर आलीशान।
संत महात्मा फरमाते हैं, ऐ इन्सान! तू अपने अंदर वाले सच्चे ठाकुर को भी देख जो हर समय तेरी इंतजार में बैठा है कि मेरा बच्चा कब विषय-वासनाओं की नींद से जागे और मुझे बुलाए। वो ठाकुर हर वक्त तुझे अंदर से आवाज देता और बुलाता है।
ठाकुर हमरा सद बोलंता।।
ऐ इन्सान! वो सच्चा सरोवर (मान सरोवर) जहां काग (कौए) भी हंस बनते हैं, यानि वो सच्चा तीर्थ तेरे अंदर है। अंदर वाले सच्चे तीर्थ पर स्नान करने से मन व आत्मा पर चढ़ी हुई जन्मों-जन्मों के कर्मों की मैल धोई जाती है। मन व आत्मा साफ, शुद्ध व पवित्र होते हैं और प्रभु-परमेश्वर का मिलाप होता है।
ऐ इन्सान! बाहर के छत्तीस प्रकार के अमृत जैसे पदार्थों को खा, पीकर तृप्त नहीं हुआ। अब तू जरा अपने अंदर वाला सच्चा अमृत (नाम-शब्द धुनकार का मीठा रस) भी चखकर देख। तेरी जन्म-मरण की भूख-प्यास उतर जाए और तू सदा के लिए तृृप्त हो जाए।

आगे फिर फरमाते हैं, ‘ऐ इन्सान! तूने अब तक बाहर की ही सब चीजें देखी हैं। अब जरा अंदर की भी चीजें देख कि मालिक प्रभु ने तेरे अंदर क्या-क्या मशीेनें लगा रखी हैं। तू देख! तेरे शरीर में रोटी-पानी, टट्टी-पेशाब आदि का क्या-क्या इंतजाम कर रखा है और तुम्हारे को कितने नौकर-चाकर दे रखे हैं जो तेरे हाजमा और सफाई इत्यादि का इंतजाम कर रहे हैं। इसलिए तेरा फर्ज है कि तू उस मालिक-प्रभु का शुक्राना कर, वरना कल यह शरीर आग में चला जाएगा और तुझको शर्मिंदा होना पड़ेगा और जो तुमको लेने आएंगे (मौत के फरिश्ते) वो तुमको खूब पीटेंगे कि तूने अपने अंदर वाले मालिक-प्रभु और उसकी मशीनरी को न देखा। उसके द्वारा किए गए इंतजामात की कोई कदर नहीं की। वेद-शास्त्र और रूहानी संत-फकीरों ने तुमको बोला भी कि तेरा मालिक-परमेश्वर तेरे अंदर है। जिस तरह तिलों में तेल, लकड़ी में आग, मेहंदी में रंग, फूलों में खुशबू और धरती में पानी है लेकिन तुमने उस मालिक बेपरवाह और उसकी मशीनरी को देखने की जरा भी परवाह नहीं की। इस प्रकार उस मालिक की तरफ से तुम्हें माफी नहीं होगी और भारी दंड भुगतना पड़Þेगा।

जैसे अगर तुम किसी बड़े अफसर की बेइज्जती या बेअदबी करोगे और उससे बख्शवाना चाहोगे तो वो ना बख्शेगा। इसलिए ऐ इन्सान! तू कुछ होश कर। वरना इस मिट्टी के तन ने एक न एक दिन आग में चले जाना है या मिट्टी में दफना दिया जाना है, तू इसे पालता ही रह जाएगा और बदले में दु:ख ही उठाता रह जाएगा। पता नहीं! परमेश्वर तुमको क्या सजा देवे। तू अपना यह कीमती समय (मनुष्य जन्म) शरीर को पालने, निंदा चुगली सुनने व करने तथा माया को इक्ट्ठी करने में और सारी रात सोने में ही ना गुजार बल्कि मरने के बाद के सफर की भी चिंता कर और उसके लिए तैयारी व कुछ बंदोबस्त कर। यानि परमेश्वर को याद कर और रूहानी संत-फकीरों से मिलकर सच्चे संत-सतगुरू की शरण में आकर उनसे मालिक के सच्चे नाम की दीक्षा प्राप्त कर नाम का सुमिरन कर। यही इस जन्म का महत्व और सच्चा लाभ व सच्चा उद्देश्य है।
परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपने एक शब्द के द्वारा फरमाते हैं:-
इस जन्म में ये दो काम करो,
इक नाम जपो और प्रेम करो।
किसी जीव का दिल ना दुखाना कभी,
मौत याद रखो, मालिक से डरो।

 

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