भारत की चुनावी राजनीति बड़ी अजब गजब है। यहाँ कुछ परिवार आजादी के गर्भ से निकल कर आज तक चुनाव में गोता लगा रहे है। कई राजनीतिक नेता इस बार लोकसभा चुनाव में अपनी दूसरी पीढ़ी के साथ तीसरी पीढ़ी को एडजस्ट करने में लगे हैं। ऐसे नेताओं की दूसरी पीढ़ी पहले से राजनीति में सक्रिय है और इस बार तीसरी पीढ़ी भी सक्रिय राजनीति में आ जाएगी। कुछ ऐसे परिवार है जो आजादी के बाद राजनीति में सक्रीय हुए और पीढ़ी दर पीढ़ी शासन करने का सपना संजोये हुए है। इनकी चार चार पीढ़ियां चुनाव में सक्रिय है। राजनीति के वो परिवार जहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी सिर्फ राजनेता ही पैदा हो रहे हैं। देश में ऐसे परिवारों की भरमार है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वंशवाद का जिक्र कर रहे हैं। देश की राजनीति में गांधी परिवार पर अक्सर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक राजनीतिक घरानों पर नजर डालें, तो परिवारवाद की कमी नहीं है जो चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे है। देश में गांधी परिवार को छोड़कर 12 ऐसे राजनीतिक घराने हैं, जिनकी तीसरी पीढ़ी या तो राजनीति में उतर चुकी है या उतरने की तैयारी में है।
राष्ट्रीय राजनीति में गाँधी परिवार, कश्मीर में अब्दुल्ला, पंजाब में बादल परिवार, राजस्थान में मिर्धा परिवार , मदेरणा परिवार , हरियाणा में हुड्डा, बंशी लाल और चैटाला परिवार, यूपी में मुलायम यादव का परिवार, चरण सिंह परिवार कल्याण सिंह परिवार , हिमाचल में सुखराम परिवार मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार, महाराष्ट्र में ठाकरे , पवार, कर्णाटक में देवगौड़ा परिवार और तमिलनाडु में करूणानिधि का परिवार, उन राजनीतिक परिवारों में है जिनकी तीसरी या चैथी पीढ़ी चुनावी मैदान में शंखनाद कर रहे है। इनमें गाँधी परिवार सबसे बड़ा है जिसकी छठी पीढ़ी चुनाव मैदान में है। मोतीलाल ,जवाहर लाल नेहरू, इंदिरागांधी, राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी के बाद राहुल गाँधी तथा प्रियंका गाँधी ने मोर्चा संभाल लिया है।
सबसे पहले बात करें महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ताकतवर समझे जाने वाले ठाकरे परिवार की। इस परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में प्रवेश कर चुकी है। बाल ठाकरे के पोते और उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे राजनीति में एंट्री ले चुके हैं। शरद पवार की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में एंट्री के लिए तैयार है। उनके भतीजे अजीत पवार के बेटे पार्थ मवाल सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है।
दक्षिण की राजनीति में भी तीसरी पीढ़ी मैदान में उतरने की तैयारी में है। डीएमके की बागडोर करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में आई है तब से स्टालिन के बेटे उदयनिधि को राजनीतिक मंचों पर देखा जाता है। आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी तीसरी पीढ़ी एंट्री मार चुकी है। एनटीआर की तीसरी पीढ़ी के नेता नारा लोकेश 2017 में ही आंध्र प्रदेश की राजनीति में एंट्री कर चुके हैं। नारा लोकेश एनटीआर के दामाद चन्द्रबाबू नायडू का बेटे हैं। 2017 में वे अपने पिता की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे। अपने बेटे कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा अपने पोतों का राजनीतिक करियर बनाने में लगे हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे ताकतवर यादव फैमिली की तीसरी पीढ़ी की एंट्री हो चुकी है।
मैनपुरी से सांसद तेज प्रताप यादव मुलायम सिंह यादव की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। तेज प्रताप मुलायम सिंह यादव के सबसे बड़े भाई रतन सिंह के पोते हैं। मुलायम सिंह यादव हर साल तेज प्रताप के पिता रणवीर सिंह की याद में ही सैफई महोत्सव कराते हैं। तीसरी पीढ़ी के नेताओं में अगला नाम जयंत चैधरी का है। एसपी-बीएसपी गठबंधन में आरएलडी को शामिल कराने का श्रेय जयंत चैधरी को दिया जा रहा है. चैधरी चरण सिंह की तीसरी पीढ़ी के इस नेता की इन चुनावों में अग्नि परीक्षा है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में जयंत और उनके पिता अजीत सिंह दोनों चुनाव हार गए थे। उत्तराखंड की राजनीति में भी तीसरी पीढ़ी एंट्री ले चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा की भी राजनीति में एंट्री हो चुकी है। साकेत उत्तराखंड की पिछली विधानसभा में कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे। हालांकि बाद में कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। हेमवती नंदन बहुगुणा की तीसरी पीढ़ी उत्तराखंड में सक्रिय है, तो उनकी बेटी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।
जम्मू-कश्मीर की राजनीति भी परिवारवाद से आगे नहीं बढ़ पा रही। शेख अब्दुल्ला की तीसरी पीढ़ी के नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर की राजनीति में सक्रिय हैं। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भले ही मुफ्ती मोहम्मद सईद की दूसरी पीढ़ी हो, लेकिन यहां भी राजनीति की तीसरी पीढ़ी दस्तक दे रही है। महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती अक्सर मीडिया मे चर्चा का विषय रहती हैं और कई बार उन्हें गंभीर विषयों पर मां का पक्ष रखते भी देखा गया है हिमाचल में इस बार के विधानसभा चुनावों में सदर विधानसभा क्षेत्र से लोगों को कांग्रेस पार्टी की तरफ से नया चेहरा देखने को मिल सकता है और यह नया चेहरा होगा पूर्व केंद्रीय संचार राज्य मंत्री रहे पंडित सुखराम की तीसरी पीढ़ी का। पंडित सुखराम के बेटे कैबिनेट मंत्री अनिल शर्मा ने अपने बड़े बेटे आश्रय शर्मा को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
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