सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ.गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जब अंत:करण से सतगुरू की खुशियां आती हैं तो अपने आप ही कदम थिरकने लगते हैं। चेहरों पर नूर आ जाता है, अंदर सरूर आ जाता है। मुर्शिद-ए-कामिल दाता रहबर का प्यार हर किसी पर घनघोर घटा बनकर छा जाता है। वो बरसात होती है कि आदमी से न कहते बनता है, न लिखते बनता है, आत्मिक आनंद से वो मालामाल हो जाता है। लिख बोलकर मालिक के परोपकारों को नहीं बता पाता। आप जी फरमाते हैं कि सतगुरू, मालिक की दया मेहर पूरी दुनिया पर बरस रही है, बरसेगी ताकि हर इन्सान रहमत होने पर बुराइयां छोड़ दे, नेकी भलाई से जुड़ जाए और मालिक की दया-मेहर के काबिल बनता चला जाए।
तन-मन-धन से दीन-दुखियों की मदद करो
ये अपने आप में अजूबा है कि इस घोर कलियुग में लोग गम, चिंता, परेशानियों में डूबे हैं। लोगों के पास किसी के लिए फुर्सत नहीं है। लेकिन सच्चे दाता रहबर के चेताए सेवादार दीन-दुखियों की मदद के लिए रक्तदान, मरणोपरांत शरीरदान, नेत्रदान, जीते-जी गुर्दादान कर रहे हैं। जोकि अपने आप में अजूबा है। ऐसी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। पर सच्चे दाता रहबर गुरू जब मिल जाए और जब वो दया मेहर करते हैं तो इन्सान की सोच में परिर्वतन आ जाते हैं। फिर इन्सान गम, दु:ख, दर्द, चिंताओं से निजात पा जाता है और दूसरों की मदद के लिए हर समय तैयार रहता है।
ऐसे मुर्शिद शाह मस्ताना जी, शाह सतनाम जी दाता रहबर को लाखों सजदे, लाखों नमस्कार। उन्हीं की कृपा से आज पूरी दुनिया में इन्सानियत की जोत जग रही है। साध-संगत को इन मानवता भलाई कार्यों में हिम्मत से आगे बढ़ना चाहिए और मालिक के गुणगान गाते रहना चाहिए। आप जी ने फरमाया कि रूहानियत इतनी गहरी होती है कि कोई इसका अंत नहीं पा सकता। इसलिए वचनों पर अमल करते जाओ, तन-मन-धन से दीन-दुखियों की मदद करते जाओ ताकि मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल आप बन जाएं।
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