Saras Fair: अद्भूत हैं ये सजावटी तोप, बक्सा और संदूकें

Saras Fair

सरस मेला: लकड़ी पर नक्काशी में तीन पीढ़ियों से लगे हैं वहीद और नफीसा

  • खरीददारी को भारी संख्या में उमड़े रहे पर्यटक (Saras Fair)

  • राष्टपति से सम्मानित हो चुके हैं ये कलाकार

यमुनानगर (सच कहूँ/लाजपत राय)। ‘‘अगर आपको अपनी कला और खुद पर दृढ़ विश्वास है तो कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।’’ सहारनपुर जिले की तहसील नकुड़ के गांव जूडी निवासी निवासी वहीद अहमद व इनकी बहन नफीसा बेगम पर ये लाइनें बिल्कुल स्टीक बैठती हैं। लकड़ी पर नक्काशी के हुनर में इन कलाकारों ने कड़ी मेहनत से इस कद्र विशेषज्ञता हासिल की कि वे न सिर्फ देश बल्कि विदेशों तक में मशहूर हो गए। (Saras Fair) सरस मेले में इनकी स्टाल नंबर 7 पर सजावटी तोप, बक्सा एवं संदूक, कोर्नर स्टूल, चौंकी, फलावर पोट, लकड़ी का हांडी सैट आदि सामान को देखने और खरीदने उमड़ रहे पर्यटकों से इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

हर कोई बरबस ही इनकी सुंदरता को निहारता नजर आता है

स्टाल पर लकड़ी की दराज वाली अलमारी, छोटी-बड़ी फोल्डिंग चेयरस, 4 व 6 कुर्सियों का डाईनिंग टेबल, गोल व चौरस मेज, ट्रे, लकड़ी के फूड गिफ्ट आईटम, हाथ की छड़ी व अन्य दैनिक उपयोग में आने वाला सामान इनकी कलाकारी का अद्भूत दृश्य है।  वर्ष 2007 में तत्कालीन महामहिम राष्टपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित वहीद अहमद ने सच कहूँ से बातचीत में बताया कि लकड़ी की सुंदर दैनिक उपयोग की चीजों को अपने हाथों से नक्काशी कर तैयार करने के लिए उन्हें दिल्ली के अशोका होटल में राष्टपति अवार्ड से नवाजा जा चुका है।

हुनर से जुड़ी हैं तीन पीढ़ियां

  • उन्होंने बताया कि उनकी तीन पीढ़िय़ा इस कार्य में लगी हुई हैं ।
  • यह कार्य उनके दादा दिलावर अहमद ने गांव जूडी से किया था।
  • बाद में पिता शरीफ अहमद भी इस कार्य में लीन रहे।
  • वर्ष 1947 में अपने कार्य को बढ़ाने के लिए उन्होंने गांव जूड़ी छोड़ दिया ।

-और अब परिवार सहित सहारनपुर शहर के जाटों नगर में रहकर यह कार्य आगे बढ़ा रहे हैं और लकड़ी की सुंदर नकाशी से निर्मित दैनिक प्रयोग की चीजों को बेचकर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं और उनकी बहन नफीसा बेगम भी इसी कार्य में उनके साथ ही परिवार में रहती है।

बेटियों की शिक्षा पर जोर

वहीद अहमद ने बताया कि वह अपनी आय को अधिकतर हिस्सा अपनी बेटियों की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं और दोनों बेटियों ने एम.ए. तक की शिक्षा ग्रहण कर ली है। उन्होंने बताया कि सहारनपुर के जिला के ही गांव उनाली के उनके शिष्य मौहम्द इमरान भी 2007 से ही इस कार्य में राष्टÑपति अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं और वह भी लकड़ी पर नक्काशी का कार्य करते हैं।

विदेशों तक जमाई धाक

वहीद अहमद ने मासिक आमदनी के बारे में पूछे जाने पर बताया कि वह प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपए कमा लेते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उनके चार अन्य भाई स्व. शहीद अहमद, रहीश अहमद, इकबाल अहमद, महबूब अहमद का परिवार भी इसी लकड़ी पर नक्काशी से निर्मित दैनिक प्रयोग की चीजों को बनाने व इन्हें विभिन्न शहरों, राज्यों व विदेशों में बेचने के कार्य में लगा हुआ है।

  • बता दें कि सरस मेला लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है।
  • यह मेला प्रतिदिन प्रात: 11 बजे से शुरू होकर रात्रि 10 बजे तक चल रहा है।
  • सरस मेले में अलग-अलग राज्यों के हस्त शिल्पकारों द्वारा हस्त निर्मित उत्पादों के 215 से भी अधिक स्टाल लगे हैं।

 

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