कर्जमाफी के अलावा कृषि की कोई सुध नहीं

Uddhav Thackeray

महाराष्ट की उद्धव ठाकरे सरकार ने किसानों के 2 लाख रुपए तक की कर्ज माफी की घोषणा की है। इससे पूर्व पंजाब, राजस्थान, कर्नाटक व मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया है। कर्ज में फंसे किसानों को राहत देना जरूरी है लेकिन कृषि समस्याओं का समाधान निकालने का यत्न कहीं भी नहीं हो रहा। कर्ज माफी के बाद भी किसानों की आत्महत्याओं का रुझान जारी है। विभिन्न राज्यों में कर्जमाफी लागू होने के बावजूद किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। दरअसल कृषि क्षेत्र को केवल राजनीतिक नजर से देखा जा रहा है।

किसान वर्ग एक बड़ा वोट बैंक है। राजनीतिक पार्टियां सत्ता में आने के लिए होशियारी से किसानों के मुद्दे पर हर बार दांव खेलतीं हैं और इसके बलबूते पर सत्ता में आती हैं। कृषि के हालात यह हैं कि फसलों के भाव पर आई लागत को भी किसान मुश्किल से पूरा कर पाता है। सभी पार्टियां कर्जमाफी के मुद्दे का सार्वजनिक कार्यक्रमों में जोर-शोर से प्रचार करती हैं लेकिन कर्ज माफी के बाद फसलों का जो बुरा हाल मंडियों में होता है, उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जो बासमती चावल 4000-4500 तक बिक जाती थी पंजाब में उसे इस बार 2500 रुपये में भी खरीदने वाला नहीं था।

बासमती निर्यात को उत्साहित करने के लिए भी आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। किसानों को निराशा ही हाथ लगी। बासमती के भाव में उछाल तब आया जब किसान फसल बेचकर घरों को लौट गए। कपास का भाव भी कई वर्षों से 5000 से 5200 पर अटका हुआ है जबकि डीजल खाद व कीटनाशकों की कीमतों में इजाफा हुआ है। यही हाल राजस्थान में सरसों व चने का हो रहा है।

जिस राज्य में विधान सभा चुनाव होते हैं वहां सरकार तय रेट के मुताबिक फसल खरीद लेती है जबकि रही दूसरे राज्यों में वही फसल कम रेटों पर खरीदी जाती है। एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर राजनीतिक पार्टियां जी-जान से जुटी हुई हैं लेकिन कृषि संंकट के मुद्दों पर कभी चर्चा तक नहीं। दरअसल कृषि के लिए नए तरीके से रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है। फिलहाल फसलों का न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित की आवश्यकता है।

 

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