संगरूर। (सच कहूँ/गुरप्रीत सिंह) संगरूर शहर में बेसहारा पशुओं की संख्या में बेहताशा विस्तार हो गया है, जिससे सड़क हादसों में भी लगातार विस्तार हो रहा है। संगरूर में हर रोज औसतन एक हादसा इन पशुओं के कारण घट रहा है लेकिन हैरानी की बात यह है कि प्रशासन द्वारा इनके हल के बारे में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। इन पशुओं का शिकार होकर लोग बड़ी संख्या में मौत के शिकार हो रहे हैं और कई लोगों तो अस्पतालों के लाखों के बिल भरने पड़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संगरूर में कई घर इन पशुओं के कारण बर्बाद हो चुके हैं और कई महंगे इलाज के कारण कर्ज की मार नीचे भी दब चुके हैं।
संगरूर के नौजवान रुपिन्दर धीमान ने बताया कि कुछ समय पहले वह बेसहारा पशुओं की टक्कर से मारे गए एक युवक के घर दुख सांझा करने के लिए गया लेकिन मृतक के छोटे-छोटे बच्चों की दयनीय हालत को देखकर उससे रहा नहीं गया और उसने अपने स्तर ही संगरूर में बेसहारा पशुओं को पड़कने की मुहिम छेड़ दी और उसने अपने सहयोगियोंं के साथ मिलकर शहर में से सैंकड़ों पशु बाहर कर दिए और कुछ समय बीतने के बाद हालात फिर वैसे ही हो गए हैं।
समाज सेवी राज कुमार शर्मा ने कहा कि संगरूर बेसहारा पशुओं का गढ़ बन चुका है। हर कोने पर 15-15 का झुंड दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्था द्वारा पिछले समय में सैकड़ों की गिनती में इन बेसहारा पशुओं को झनेड़ी की गौशाला में छोड़ा गया था और हमनें फिर डीसी से इस मसले के हल के बारे में बात की तो उन्होंने हल निकालने की जगह हमें ही रिफ्लैकटर दे दिए कि आप इन पशुओं के गलों में रिफ्लैकटर बांध दो। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार खास सरकार बन चुकी है, जब भी हम स्थानीय विधायिका के पास जाते हैं तो हमारी वहां कोई सुनवाई नहीं होती। सुबह स्कूल जाते समय बच्चों को बहुत ही सावधानी से लेकर जाना पड़ता है क्योंकि ऐसी वीडियो सामने आ चुकी हैं, जिनमें इन पशुओं ने बच्चों को अपना शिकार बना लिया।
समाज सेवी मनी कथूरिया ने कहा कि बेसहारा पशुओं की समस्या इतनी बड़ी हो गई है कि हमारे आसपास इन पशुओं के कारण हो रहे हादसों के बारे में सोशल मीडिया से पता चलता है। इस मामले पर प्रशासन कुंभकरनी की नींद सो रहा है। जब आम लोगों को सोशल मीडिया द्वारा पता चल जाता है तो प्रशासनिक अधिकारियों को इतनी बड़ी समस्स्या नजर क्यों नहीं आ रही? उन्होंने कहा कि सरकार को बिजली बिलों और गाड़ियों खरीद-बेच और गौसैस दिया जा रहा है, वह पैसा कहां जा रहा है, इन पशुओं की संभाल क्यों नहीं की जा रही। हम मांग करते हैं कि लोगों को बताया जाए कि यह पैसा कहां लग रहा है। मनी कथूरिया ने कहा कि रात के समय जब हम घरों से बाहर निकलते हैं तो इन पशुओं के झुंड देखकर यह महसूस होता है कि हम पशुओं के शहर में लावारस घूम रहे हैं।
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