भूख से सालाना तीन हजार बच्चे तोड़ देते हैं दम

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भूख से 3 बच्चियों की मौत पर सियासत शुरू

देश की राजधानी दिल्ली के मंडावली इलाके में भूख से 3 बच्चियों की मौत पर सियासत शुरू हो गई है। इस बीच दिल्ली सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं। दिल्ली सरकार का कहना है यह परिवार दो दिन पहले ही मंडावली में एक मकान में रह रहे किराएदार के यहां मेहमान बनकर आया था। घटना के पहले से ही बच्चियों के मजदूर पिता काम पर गए थे जो लौटे नहीं हैं, मां भी पहले से मानसिक बीमार हैं। बहरहाल सच्चाई तो जाँच के बाद ही उजागर होगी मगर नेताओं ने राजनीति की बिसात पर अपनी रोटियां सेंकनी शुरू कर दी है। सच तो यह है भारत ने तरक्की की राह पर लंबा सफर तय तो कर लिया लेकिन लोगों की भूख मिटाने में उसे अब तक कामयाबी नहीं मिली। हर दिन दो वक्त की रोटी से महरूम लोगों की तादाद में कोई कमी नहीं आई है।गरीबी, भूख, भुखमरी और बिमारी का चोली दामन का साथ है।

भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 19.07 करोड़

सयुंक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 19.07 करोड़ है। यह आंकड़ा दुनिया में सर्वाधिक है। देश में 15 से 49 वर्ष की 51.4 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। पांच वर्ष से कम उम्र के 38.4 फीसदी बच्चे अपनी आयु के मुताबिक कम लंबाई हैं। इक्कीस फीसदी का वजन अत्यधिक कम है। भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना तीन हजार बच्चे दम तोड़ देते हैं।

119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 100वें पायदान

भारत में खाद्यान वितरण प्रणाली में सुधार और मोदी सरकार के जनकल्याण के दावों के बावजूद 2016 की तुलना में वर्ष 2017 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स- जीएचआई) में भारत तीन पायदान नीचे उतर गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भूख एक गंभीर समस्या है और इस वर्ष 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 100वें पायदान पर आगया है। वर्ष 2016 में भारत इस सूचकांक में 97वें स्थान पर था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में भूख से मरने वालों की संख्या घटने की बजाए और तेजी से बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 सालों में भारत के खाना बर्बादी करने के आकड़ों में तो कोई फर्क नहीं पड़ा है। लेकिन कुपोषण की वजह से होने वाले बच्चों की मौत के आकड़ों में मामूली सुधार जरूर देखने को मिला है। नेपाल, पाकिस्तान के अलावा भारत इस मामले में सभी ब्रिक्स देशों में सबसे नीचे स्थान पर है।

विश्वभर में हर 8 में से 1 व्यक्ति भूख के साथ जी रहा है

  • भूख और कुपोषण की मार सबसे कमजोर पर भारी पड़ती हैं ।
  • दुनिया में 60 प्रतिशत महिलाएं भूख का शिकार हैं ।
  • गरीब देशों में 10 में से 4 बच्चे अपने शरीर और दिमाग से कुपोषित हैं ।
  • दुनिया में प्रतिदिन 24 हजार लोग किसी बीमारी से नहीं, बल्कि भूख से मरते हैं।
  • इस संख्या का एक तिहाई हिस्सा भारत में आता है।
  • भूख से मरने वाले इन 24 हजार में से 18 हजार बच्चे हैं
  • हर साल गेहूं सड़ने से करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान होता है।

जब तक अमीरी और गरीबी की खाई नहीं मिटेगी तब तक यूँ ही जारी रहेगा

दुनियां से जब तक अमीरी और गरीबी की खाई नहीं मिटेगी तब तक भूख के खिलाफ संघर्ष यूँ ही जारी रहेगा। चाहे जितना चेतना और जागरूकता के गीत गालों कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अब तो यह मानने वालों की तादाद कम नहीं है कि जब तक धरती और आसमान रहेगा तब तक आदमजात अमीरी और गरीबी नामक दो वर्गों में बंटा रहेगा। शोषक और शोषित की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी मगर भूख और गरीबी का तांडव कायम रहेगा। अमीरी और गरीबी का अंतर कम जरूर हो सकता है मगर इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। प्रत्येक संपन्न देश और व्यक्ति को संकल्पबद्धता के साथ गरीब की रोजी और रोटी का माकूल प्रबंध करना होगा।

बाल मुकुन्द ओझा

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