पंजाब, हरियाणा की राजनीति फिर से पुराने अंदाज में नजर आ रही है। किसी सार्थक परिवर्तन के प्रयास नहीं किए जा रहे। सत्तापक्ष व विरोधी पार्टियां रैलियों की भीड़ को ही अपना आधार मान रही हैं। गत रविवार पंजाब राजनीतिक रैलियों का गढ़ बनकर रह गया। सत्तापक्ष कांग्रेस ने किलियांवाली जिला श्री मुक्तसर साहब व विपक्ष अकाली दल ने मुख्यमंत्री के जिला पटियाला में रैली की।
उधर हरियाणा में इनैलो ने गोहाना में रैली की। कल को प्रधानमंत्री नरिन्दर मोदी गढ़ी सांपला रोहतक में रैली के लिए आ रहे हैं। पंजाब-हरियाणा की इन रैलियों के साथ राज्यों का कोई विकास नहीं होना बल्कि यह सरकारी खजाने पर बोझ ही बनेंगी।
हजारों सुरक्षा कर्मचारियों की तैनाती के लिए करोड़ों रुपए का बिल बनता है। आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब का किलियांवाली रैली में कांग्रेस कह रही है कि सरकार का खजाना खाली है। अब यदि खजाना खाली है और किसानों को कर्ज माफी के लिए अभी मोटी राशि दी जानी है तब रैलियां से खजाने पर और बोझ डालने की भला क्या जरूरत है। यूं भी कांग्रेस के कुछ विधायकों की यह दलील सही भी है कि रैली करना सरकार का काम नहीं, विपक्ष का काम है। सरकार में आई पार्टी को तो काम करना चाहिए।
शिरोमणी अकाली दल ने पटियाला रैली के द्वारा अपनी ताकत को परखा है। इस रैली में पंजाब के ठोस मुद्दों की बात नहीं हुई, बल्कि इसमें एक-दूसरे पर कीचड़ ही उछाला गया है। अकाली दल की रैली के केवल पंथिक मुद्दे पर सीमित रह जाने पर यह सवाल उठता है केवल पार्टी के प्रतिष्ठा के लिए इतने बड़े इक्ट्ठ के लिए ताकत झोंकना कोई अच्छा संदेश नहीं।
कांग्रेस ने पंजाब के नशा, बेरोजगारी व अन्य मुद्दों की अपेक्षा अकाली दल को पंथिक मुद्दों पर घेरने की ज्यादा कोशिश की है। दोनों रैलियों से इस धारणा को फिर बल मिलता कि राजनैतिक पार्टियां धर्म का पत्ता त्यागने के लिए तैयार नहीं। यूं भी अकाली दल प्रधान सुखबीर बादल ने रैली के द्वारा यह जरूर साबित कर दिया है कि कुछ नेताओं की नाराजगियों से पार्टी की मजबूती पर कोई प्रभाव नहीं दिखा।
रैली के इक्ट्ठ ने अकाली दल को राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर दर्शाया है और आम आदमी पार्टी फिर हंसी का पात्र बन गई। यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि आगामी लोक सभा चुनाव में मुख्य टक्कर कांग्रेस व अकाली दल में ही होगी।
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