विश्व दृष्टि दिवस इस वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जारहा है। आज जैसी लाइफ स्टाइल आम लोगों ने अपना रखी है वह आँखों के रखरखाव की दृष्टि से कतई सही नहीं कही जा सकती। सुबह आँख खोलते ही हम सबसे पहले मोबाइल को हाथ में पकड़ते है। डिजिटल क्रांति का यह अविष्कार हमारी जिंदगी में घुलमिल गया है। सुबह आँख धोना या नित्यक्रम से निवृत होना तो अब दूर की बात हो गयी है। वर्किंग लेडी हो या घरेलु महिला, अपने बच्चे के हाथ में स्मार्ट मोबाइल पकड़ा कर अपने घर के काम धंधे को निपटाने में जुट जाती है और बच्चा चुपचाप मोबाइल की दुनियां में खो जाता है।
किशोर और युवा भी सबसे पहले मोबाइल की और लपकते है और अपनी पसंद के मुताबिक खेल या अन्य चीजें देखनी शुरू कर देते है। अब हमारी आंखें कैसे दुरस्त रहेगी, यह सोचने की बात है। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी हम स्वयं मार रहे है। अपने दिन की शुरूआत हम संचार क्रांति से शुरू कर रात को सोने तक इसी मायावी दुनियां में खोये रहते है। हमारी सुविधा की यह चीज हमारी सेहत विशेषकर आँखों के लिए दुविधा बन गयी है। आज यदि हमने अपनी आँखों की सलामती पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला समय हमारी दृष्टि के लिए बेहद खराब होगा। विश्व दृष्टि दिवस पर विचारने के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा आज हमारे सामने है।
विश्व दृष्टि दिवस इस वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। यह दिवस धुंधली दृष्टि, अंधापन के साथ-साथ दृष्टि संबंधित समस्याओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। भारत में नेत्र रोगों के प्रति आज भी सजगता और सतर्कता नहीं है और यही कारण है कि घर घर में बच्चे से बुजुर्ग तक नेत्र रोगी मिल जायेंगे। आँखों के स्वास्थ्य को बनाए रखना केवल एक व्यक्ति का ही कर्तव्य नहीं है बल्कि यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
आंखों की देखभाल बाल्यकाल से ही की जानी चाहिए। किसी भी बच्चे की आंखों की पहली बार जांच पांच साल के होने तक हो जानी चाहिए। इस उम्र में अगर बच्चे की आंखों में किसी प्रकार का बैंगापन, आंखों का छोटी-बड़ी होना या और भी कोई परेशानी रहती है तो वह इसी अवस्था में ठीक हो जाती हैं। इसी तरह किशोर और युवा अवस्था में भी आंखों की नियमित जांच जरूरी है। आंखों की समस्या से आज का युवा ज्यादा परेशान हैं क्योंकि वह अपना ज्यादतर समय कंप्यूटर, मोबाइल फोन, रंगीन टीवी, वीडियो गेम और टैबलेट पर बिताते हैं। उनकी यह बेपरवाही और लापरवाही उन्हें असमय आँखों का दुश्मन बना देती है और यह दंश उन्हें ताउम्र झेलना पड़ता है।
यह देखा गया है कि 15 से 40 साल तक के स्वस्थ इंसान में आंखों की समस्या नहीं होती। इस दौरान कोई खास बीमारी ही आंखों की समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। लेकिन 40 साल की उम्र के बाद से आंखों में समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं। अगर आप 60 साल से ऊपर के हैं तो कम समय के अंतराल पर नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं और डॉक्टरों के निदेर्शानुसार चश्मे का लेंस बदलवाएं। हमारी आंखें अनमोल हैं और इनसे हम यह खूबसूरत दुनिया देखते हैं, लेकिन आंखों के प्रति हमारी थोड़ी सी भी लापरवाही हमें अंधेपन का शिकार भी बना सकती है। हममें से बहुत से ऐसे लोग हैं, जो आंखों की समस्याओं के शुरूआती लक्षणों को अनदेखा कर देते हैं और धीरे-धीरे उनमें यह समस्याएं गंभीर रूप ले लेती है। आंखों की देखभाल को भी प्राथमिकता दें।
अपनी आँखों की सुरक्षा हमारी खुद की जिम्मेदारी है। आँख है तो जहान है। आंखें स्वस्थ न हों तो संसार की सारी खूबसूरती बेमानी लगती हैं। फिर भी हम अपनी आंखों का पर्याप्त खयाल नहीं रख पाते। हम अपने खान पान का ध्यान रखकर अपनी आँखों को सही सलामत रख सकते है। अच्छी और निरोगी दृष्टि के लिए स्वस्थ आहार का सेवन जरुरी है। अपने संतुलित आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियों एवं गाजर को अधिक से अधिक मात्रा में शामिल करें। धूम्रपान का त्याग कर हम दृष्टि से संबंधित कई तरह की समस्याओं से छुटकारा पा सकते है। टेलीविजन देखने या कंप्यूटर, लेपटॉप और स्मार्ट मोबाइल पर काम करते हुए एंटी ग्लेयर चश्मा पहनने से आँखों की अपेक्षाकृत सुरक्षा की जा सकती है। मंद और धीमे प्रकाश में न पढ़े। यह आँखों को होने वाली परेशानियों के प्रमुख कारणों में से एक है। इसी के साथ आँखों के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अपनी आँखों की नियमित जांच कराएं।
बाल मुकुन्द ओर्झा
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