चीन की करतूत से दुनिया हो रही तबाह

The world is being destroyed by the handiwork of China
क्या ‘कोरोना वायरस’ पर चीन की ईमानदारी और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी संदिग्ध है ?  चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विश्व स्वास्थ्य संगठन से कुछ छुपाया है, कोरोना वायरस की समय पर जानकारी नहीं देने के दोषी हैं ? क्या कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के मानवाधिकार हनन का भी दोषी चीन है ? क्या कोरोना वायरस के संदिग्धों को इलाज न कर उनको जिंदा मारने के अमानवीय कार्य भी चीन कर रहा है ? चीन अगर सही में ईमानदार है, और कुछ नहीं छुपा रहा है तो फिर अपने वुहान शहर का दरवाजा अंतरराष्ट्रीय जगत के लिए क्यों नहीं खोल रहा है ?
अभी तक के रूख से यह यह ज्ञात नहीं होता है कि चीन अभी भी कोरोना वायरस पर सच बोलने के लिए तैयार होगा और कोरोना कैसे फैला, कब फैला और कोरोना वायरस की जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? अगर चीन इस प्रकार की सभी जानकारियां देने से इनकार कर रहा है और अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां पूरी करने में जान बुझकर इनकार कर रहा है तो फिर दुनिया को चीन के संबंध में नये सिरे से सोचने और बाध्यकारी कदम उठाने की जरूरत है। चीन के पास सयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद के बीटो का भी अधिकार है, इसलिए चीन से सुरक्षा परिषद् के बीटो का अधिकार भी वापस लिया जाना चाहिए। पर क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसी वीरता दिखाने के लिए तैयार होगा। अभी तक तो चीन के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय घुटना टेक नीति पर चलता रहता है। अंतरराष्ट्रीय नियामकों की घुटना टेक नीति के कारण ही चीन की तानाशाही और अमानवीय कार्यक्रम और नीतियां चलती रहती हैं।
दुनिया में विकसित देश और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण देश कई प्रकार के हथियार उन्नयन में लगे रहते हैं, इनमें रसायनिक हथियार और जानलेवा वायरस का निर्माण भी शामिल है। चीन क्या ऐसा वायरस युद्धकाल में अपने दुश्मन देश की सेनाओं के खिलाफ प्रयोग करने के लिए तैयार कर रहा था? अभी तक सिर्फ अनुमान है कि चमगादड़, कुता या फिर बिल्ली के सड़े मास से यह वायरस उत्पन्न हुआ है। पर अभी तक चीन की ऐसी कोई प्रमाणिक स्वीकृति सामने नहीं आयी है। अभी तक चीन के वुहान शहर तक दुनिया के स्वास्थ्य वैज्ञानिको की पहुंच नहीं हुई है और भविष्य में भी दुनिया के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की पहुंच वुहान शहर तक शायद ही होगी?
चीन एक कम्युनिस्ट तानाशाही वाला देश है, जहां पर न तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है और न ही आंदोलन, प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता होती है, मीडिया भी गुलाम है, सरकारी मीडिया होता है, पर वह वही खबर देता है जो कम्युनिस्ट तानाशाही की इच्छा होती है? स्वतंत्र मीडिया की कल्पन्ना भी नहीं की जा सकती है । भारत और अन्य देशों की तरह सोशल मीडिया भी स्वतंतंत्र नहीं है, स्वतंत्र मीडिया पर भी कम्युनिस्ट तानाशाही का पहरा है। सोशल मीडिया पर कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ लिखने या फिर आक्रोश जताने की सजा सिर्फ और सिर्फ जेल हैं।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो वह डॉक्टर है जिसने सबसे पहले कोरोना वायरस की पहचान की थी। कोरोनो वायरस की पहचान करने वाले डॉक्टर को चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही ने मुंह बंद रखने की सजा दी थी। वह डॉक्टर अपनी जान पर खेल कर सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस की पहचान की खबर प्रसारित कर गया था। जैसे ही वह डॉक्टर ने सोशल मीडिया में खबर डाली वैसे ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया, उसे प्रताड़ना का दौर से गुजारा गया। फिर उस डॉक्टर के संबंध में खबर आयी कि उसकी मौत हो गयी। चीन का कहना है कि कोरोना वायरस की पहचान करने वाले डॉक्टर की मौत भी कोरोना वायरस से हुई है। पर स्वतंत्र विशलेषकों का कुछ और ही कहना है, स्वतंत्र विश्लेषकों का साफ आरोप है कि कोरोना वायरस की पहचान करने वाले डॉक्टर की मौत प्रताड़ना से हुई है, यह प्रताड़ना डॉक्टर को चीनी सेना और पुलिस से मिली थी। जब कोरोना वायरस की पहचान करने वाले डॉक्टर को ही चीन में मौत की नींद सुला सकते हैं तो फिर चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही के खिलाफ लिखने और बोलने वाले सेनानियों के साथ कैसी प्रताड़ना होती होगी?
ध्यान रखिये कि यही कोरोना वायरस किसी लोकतांत्रिक देश में फैला होता तो निश्चित मानिये कि उसकी पूरी जानकारी दुनिया को तत्काल मिल जाती है और दुनिया भी उस वायरस से निपटने की चाकचैबंद व्यवस्था भी कर लेती। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि चीन के इस भयंकर और खौफनाक वायरस की बात छिपाने के पीछे कौन से कारण रहे हैं ? वास्तव चीन को यह डर था कि अगर इस बीमारी की जानकारी दुनिया की होगी तो फिर उसकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, दुनिया में उसके उत्पाद की विक्री कम हो जायेगी, बीमारी के डर से चीन में व्यापारियों और पर्यटकों का आना बंद हो जायेगा, उसकी फैक्टरियों में सन्नाटा पसर जायेगा? चीन को यह उम्मीद थी कि वह कोरोना वायरस पर नियंत्रण हासिल कर लेगा। चीन ने कोरोेना वायरस को लेकर नये-नये प्रयोग भी किये हैं। पर चीन को इसमें सफलता नहीं मिली, चीन को तब तबाही नजर आयी जब कोरोना वायरस से निपटने की कोई संभावना नहीं बची, सिर्फ इतना ही नही बल्कि कोरोना वायरस से ग्रसित सैकड़ों लोगों की मौत नहीं हो गयी।
चीन की अमानवीय नीति पर लोकतांत्रिक देश नहीं चल सकते हैं। चीन जैसे तानाशाही वाले देशों में जनता कोई भूमिका नहीं निभाती है, जनता के आक्रोश या फिर पंसद-नापसंद भी कोई अर्थ नहीं रखते हैं। जबकि लोकतांत्रिक और सभ्य देशों की सरकारों की जिम्मेदारी जनता के प्रति होती है, जनता के आक्रोश और जनता के पंसद या नापसंद काफी महत्वपूर्ण होते हैं। दुनिया में जब यह महामारी जानलेवा साबित हो चुकी है। दुनिया में हजारों लोगों की यह महामारी जानें ले चुकी है, दुनिया के व्यापार को, दुनिया के पर्यटन को यह महामारी प्रभावित कर चुकी है, इस महामारी से लड़ने के लिए गरीब और अमीर देशों को खराबों-खरब रुपए खर्च करने के लिए बाध्य होने पड़ रहे हैं तो फिर इस महामारी की सच्चाई को जरूर सामने लाया जाना चाहिए। चीन जैसे अराजक और गैर जिम्मेदार देशों को ऐसी महामारी की समय पर जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सबक भी दिया जाना चाहिए।
विष्णुगुप्त

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