लखनऊ में एप्पल कंपनी के सेलज मैनेजर की हत्या मामले में तथ्यों को छुपाने की कोशिश के बाद आखिरकार पुलिस सबूतों के सामने हार गई। पुलिस के लिए यह शर्मनाक बात है कि इस मामले में दो बार मामला दर्ज करना पड़ा। पुलिस पर सरकार और जनता का दबाव बढ़ने से पहले पुलिस इस मामले को अपने मनमर्जी के अंदाज में बनी-बनाई कहानी के अनुसार रद्द करने के प्रयास में थी, लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट व सीसीटीवी कैमरों की फुटेज ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विवेक तिवाड़ी की नजदीक से गोली मारकर हत्या की गई थी। पुलिस कर्मचारी आत्मरक्षा के लिए गोली चलाने की बात कहकर बचने का प्रयास कर रहे थे।
पुलिस की कार्यशैली व आम जनता के प्रति दबंग रवैये की यह बुरी मिसाल है। पुलिस की गाड़ियों पर आम तौर पर यह लिखा होता है कि ‘पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए, आपकी सहयोगी है’, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों का रवैया सेवा की बजाय दबंगों वाला बन गया है जो आम जनता को अपने रहम के पात्र समझते हैं। यूं लखनऊ की उक्त घटना कोई पहली घटना नहीं। देश भर में पुलिस के खिलाफ फर्जी पुलिस मुकाबलों की अनेक शर्मनाक कहानियां इस विभाग की कार्यशैली व ईमानदारी पर सवाल खड़े करती हैं। सैंकड़ों पुलिस अधिकारी अपने किए अपराधों के लिए न्यायालयों के चक्कर काट रहे हैं दूसरी तरफ यही पुलिस अपराधियों पर शिकंजा कसने में नाकाम साबित हो रही है।
इसका परिणाम यह है कि देश में गैंगस्टरों की सेना बन गई है। पुलिसिंग का वास्तविक अर्थ, एक ऐसी फोर्स है जिससे अपराधी डरते हों, लेकिन राजनीतिक सिस्टम भ्रष्ट होने के कारण पुलिस आम व्यक्ति पर ही अत्याचार करने पर लगी हुई है। जब बाड़ ही खेत को खाये तब रखवाली कौन करेगा? विवेक तिवाड़ी की हत्या उसके परिवार के लिए बहुत बड़ी क्षति है जिससे सीख लेने की सख्त जरूरत है। पुलिस में एक्शन से लेकर मामला दर्ज करने तक सारी प्रक्रिया पर पक्षपात व भ्रष्टाचार हावी है। इस माहौल में पुलिस सुधारों की सख्त जरूरत है। पुलिस प्रबंध की खामियों को दूर करने के लिए केवल आधुनिक गाड़ियां, तकनीकी साजो-सामान और नए हथियारों की ही जरूरत नहीं बल्कि पुलिस बलों में जनता की सुरक्षा के लिए समर्पण सच्चाई, निष्पक्षता व ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों की भी आवश्यकता है।
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