यह प्रश्न बहुत परेशान करने वाला है कि यदि यूक्रेन जैसा संप्रभु देश अपनी सुरक्षा के लिए नाटो सरीखे किसी सैन्य संगठन का हिस्सा बनना चाहे तो क्या उसे रूस जैसे ताकतवर पड़ोसियों की शर्तों पर चलना पड़ेगा और यहां तक कि उसके हमले का सामना करना पड़ेगा? इसी तरह एक प्रश्न यह भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या आपकी अपनी संप्रभुता को किसी तीसरे देश की आशंकाओं का कारण बनना चाहिए? यूक्रेन पर रूस के हमले जारी हैं। इस अर्थहीन युद्ध में जनहानि भी बढ़ती जा रही है।
निरंतर आक्रामक हो रहे पुतिन ने यूक्रेन में दखल देने वालों को परमाणु आक्रमण की भी धमकी दे दी है। खबर है कि बेलारूस के हमले के साथ इसमें तीसरे पक्ष का प्रवेश हो चुका है और यह लड़ाई विश्व युद्ध की ओर बढ़ चली है। नाटो देश पहले ही प्रच्छन्न रूप से हथियारों व दूसरे संसाधनों से यूक्रेन की मदद कर रहे थे, अब यदि कोई देश सीधे उतर आया है, तो नाटो देशों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। जाहिर है, दुनिया के तमाम देशों को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी पड़ेगी, क्योंकि काफी सारे देश संयुक्त राष्ट्र से पृथक तरह-तरह के समझौतों में हितों की साझेदारी करते हैं।
भारत जैसे देशों के लिए संतुलन साधने की चुनौती और अधिक उलझ गई है। रूस हमारा भरोसेमंद मित्र देश है और यूक्रेन से मधुर रिश्तों की गवाही हजारों छात्रों की वहां मौजूदगी देती है। चिंता की बात यह है कि यह काम अब कहीं अधिक जटिल हो चुका है। रूसी सेना ज्यादा आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही है और खारकीव के गवर्नर के मुताबिक, वह नागरिक ठिकानों को भी निशाना बना रही है। किसी भी युद्ध में दावों-प्रतिदावों की प्रामाणिकता हमेशा संदिग्ध होती है, और सच्चाई सिर्फ भुक्तभोगियों के साथ होती है। यह युद्ध भी थमेगा, मानवता को गहरे जख्म देकर, लेकिन इसके दुष्प्रभाव वर्षों तक दुनिया को सिहरन देते रहेंगे। कोरोना महामारी ने संसार भर के मुल्कों में गरीबों और कम आय वाले लोगों की जिंदगी मुश्किल बना रखी है।
अब इस युद्ध के बाद एक बार फिर देशों के बीच अपनी फौजों को मजबूत करने की होड़ मचेगी, और जन-सरोकार के विषयों को हाशिये पर धकेला जाएगा। दूसरी तरफ भारत सरकार पर जल्द से जल्द वहां फंसे सभी भारतीयों को निकालने का दबाव बढ़ गया है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे और कोई नुकसान उठाए बगैर यूक्रेन से सुरक्षित स्वदेश लौटें। इस युद्ध में भारत का रुख अब तक संतुलित रहा है, मगर आने वाले दिन उसके कठिन इम्तिहान के होंगे। युद्ध जिद का नतीजा होते हैं और दो युद्धरत देश जब बातचीत की मेज पर बैठते हैं, तो जिद से मुक्त होकर बात करना उनके लिए बहुत आसान नहीं होता। यह दोनों देशों के धैर्य की परीक्षा का समय है। दोनों देशों के बीच सैन्य रूप में हस्तक्षेप के लिए तैयार होते देशों को थोड़ा इंतजार करना चाहिए।
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