जब मंदिर-मस्जिद मार्ग ने जिंदा रखा भाईचारा

Brotherhood Alive

 दिल्ली हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। जब दिल्ली दंगों की आग में झूलस रही थी तब इन्सानियत की एक ऐसी मिसाल पेश हुई। (Brotherhood Alive) कहीं हिंदू मुस्लिम परिवारों के ढाल बन कर खड़े हो गए तो कहीं मुसलमान मंदिर के रखवाले बन गए। नूर-ए-इलाही ऐसा इलाका जो मंदिर मस्जिद मार्ग नाम से जाना जाता है। इस इलाके में हिंदू और मुस्लिम एकजुट हो दंगे की आंच को अपनी बस्ती तक नहीं आने दिया वहीं जब मौजपुर में हिंसा भड़की, यहां के हिंदू मस्जिद की रखवाली में खड़े हो गए और मुस्लिम मंदिर की हिफाजत में डट गए।

एक ऐसी सड़क जहां मंदिर और मस्जिद एक दूसरे से कुछ ही दूरी पर हों, वह फिजा में जहर घोलने की नीयत रखने वालों के लिए स्वाभाविक टारगेट होती। (Brotherhood Alive) इलाके के दोनों समुदायों के लोग मंदिर मस्जिद मार्ग पर डट गए ताकि दंगाई उनकी कॉलोनी में न घुस सके। मस्जिद के लाउडस्पीकर से लगातार अपील होती रही कि ऐसा कुछ भी न हो जिससे कॉलोनी का दामन दागदार हो।

दिल्ली हिंसा

  • बता दें कि दिल्ली हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है।
  • जबकि करीब 200 घायलों का विभिन्न अस्पतालों में उपचार चल रहा है।
  • मृतकों में दिल्ली पुुलिस का हेड कांस्टेबल रतन लाल और खुफिया ब्यूरो का जवान अंकित शर्मा भी शामिल हैं।
  • दंगों में आम आदमी पार्टी(आप) के नेहरु विहार से पार्षद ताहिर हुसैन का नाम प्रमुखता से आया है।
  • पुलिस ने कल ही चांद बाग स्थित उनके घर-फैक्ट्री को सील कर दिया था।
  • ताहिर हुसैन के घर से बड़ी मात्रा में तेजाब, बोतल बम बनाने का सामान और पत्थर आदि मिले हैं।
  • ताहिर हुसैन पर अंकित शर्मा की हत्या कर शव पास के नाले में फेंक देने का आरोप है।
  • पुलिस ने हत्या और दंगा भड़काने का मामला दर्ज का ताहिर हुसैन की तलाश में जुटी है।
  • फोरेंसिक विभाग की टीम भी आज जांच के लिए ताहिर हुसैन के घर पहुंची।

दिल्ली दंगों पर 123 प्राथिमिकी, 630 गिरफ्तार

उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगाग्रस्त क्षेत्रों में धीरे-धीरे जनजीवन पटरी पर लौटने के साथ ही पुलिस ने दंगाइयों पर नकेल कसनी शुरू कर दी है और अब तक 123 प्राथमिकी दर्ज कर 630 लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत अथवा गिरफ्तार किया है। दिल्ली दंगों पर जब नॉर्थ ईस्ट दिल्ली जब दंगों की आग में झुलस रही थी, इंसानियत तार-तार हो रही थी, उस वक्त कुछ इलाके ऐसे भी थे जहां लोगों ने गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखा।

कहीं हिंदू मुस्लिम परिवारों के ढाल बन गए तो कहीं मुसलमान मंदिर के रखवाले बन गए। नूर-ए-इलाही ऐसे ही इलाकों में से एक था। यहां के मंदिर मस्जिद मार्ग नाम से जाने वाली सड़क ने अपने नाम को चरितार्थ किया, जहां स्थानीय हिंदू और मुस्लिम एकजुट हो दंगे की आंच को अपनी बस्ती तक नहीं आने दिया।

 

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