Shah Mastana Ji : ‘तहसीलदार को हुआ गलती का अहसास’, हाथ जोड़कर मांगी माफी!

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शाह मस्ताना जी महाराज

Shah Mastana Ji : शाह मस्तान शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र, डेरा सच्चा सौदा, सरसा में भवन निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा था। सेवादार भाई पूजनीय बेपरवाह साँईं शाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार पूरी तन्मयता से सेवा में जुटे हुए थे। नई दीवारों पर टीप करने के लिए 50 बोरी सीमेंट की आवश्यकता थी। उन दिनों सीमेंट बाजार में बहुत ही कम मिलता था। सीमेंट का परमिट प्रशासन से आवश्यकतानुसार लेना होता था। परमिट देने का कार्य तहसीलदार के जिम्मे था। आप जी ने सरसा शहर के ही एक भक्त खुशी राम की ड्यूटी लगाई कि वह सीमेंट प्राप्त करने की अर्जी लिखवार कर तहसीलदार के पास जाए और उसे सीमेंट का परमिट देने के लिए कहे। उसने तहसील कार्यालय जाकर तहसीलदार को सीमेंट पाने की अर्जी दी। Shah Mastana Ji

तहसीलदार ने अर्जी पढ़कर उससे पूछा कि क्या यह वही सच्चा सौदा है, जहां मकान बनाते और गिराते हैं? सेवादार के ‘हां जी’ कहने पर तहसीलदार ने अर्जी को फैंकते हुए कहा सीमेंट का परमिट नहीं मिलेगा। भक्त खुशी राम उठकर वापिस चलने लगा तो तहसीलदार बोला कि पांच बोरियों का परमिट तो ले जाओ। सेवादार ने कहा हमें तो पचास बोरियों का ही परमिट चाहिए। फिर तहसीलदार ने बिल्कुल ही मना कर दिया और वह वापिस दरबार आ गया। आप जी ने पूछा, ‘‘परमिट लाए हो?’’ वह बोला कि आपजी ने दिलवाया ही नहीं है? आप जी ने फरमाया, ‘‘पुट्टर ! सब्र रख।’’

एक-दो अफसर शहनशाह के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे | Shah Mastana Ji

तहसीलदार ने अपने साथी अफसरों के साथ उक्त घटना की चर्चा की और बताया कि मुझसे ऐसा हुआ है। उनमें से एक-दो अफसर शहनशाह के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे। उन्होंने अपने साथी तहसीलदार को कहा कि तुझसे भारी गलती हुई है। इसी रविवार को हम सभी एकत्रित होकर पूजनीय बेपरवार साँईं शाह मस्ताना जी महाराज के पास डेरे में दर्शनों के लिए चलेंगे और इस गलती की माफी मांगेेंगे। रविवार को दो जीपों में सवार होकर अधिकारीगण सरसा डेरे में आ पहुुंचे। उन्होंने आदरपूर्वक दाता जी को बताया कि हम गलती की माफी मांगने आए हैं। आप जी ने उन सभी अफसरों को सम्मानपूर्वक चाय पिलवाई। फिर उन्होंने आप जी से डेरे दिखाने की इच्छा प्रकट की। इस पर आप जी उन्हें डेरा दिखाने लगे। Shah Mastana Ji

आप जी उन सभी को वहाँ ले गए जहाँ मकान बनाने की सेवा चल रही थी। तहसीलदार बोला कि बाबा जी, कुछ बात सुनाइए। आप जी उन्हें एक साखी सुनाने लगे। एक किसान की एक शेर के साथ दोस्ती हो गई। जब मित्रता गहरी हुई तो किसान ने शेर से कहा कि मेरे घर रोटी खाने के लिए चल। शेर बोला कि मैं जगली जानवर हूँ, मेरे मुँह से बदबू आती है। तेरी पत्नी मुझे ताना न मारे इसलिए घर जाकर पहले पूछकर आ। किसान ने घर जाकर अपनी पत्नी से सलाह की। उसकी पत्नी बोली कि आपके यार ने रोटी खानी है मैं ताना क्यों मारूंगी? जो दिन तय हुआ, उस दिन किसान अपने दोस्त शेर को अपने घर ले आया।

शेर को जो भी खाने को मिला, सब खा गया | Shah Mastana Ji

शेर को जब खाना खिलाया जाने लगा तो उसे जो भी खाने को मिला, सब खा गया। किसान की औरत से यह सहन न हुआ और बोली कि कैसे जानवरों से दोस्ती की है। सब कुछ ही खा गया। शेर उठकर वापिस चला गया। किसान को डर पड़ गया कि शेर को क्या मुँह दिखाऊँगा? कुछ दिनों बाद जब किसान शेर से मिला तो शेर ने कहा कि तू कूल्हाड़ा ला और मुझे मार। मैं लहूलुहान हो जाऊँगा फिर तू चले जाना और सात दिन बाद मेरा पता लेने आना। किसान ने वैसा ही किया। थोड़े दिनों में जख्म ठीक हो गया।

शेर बोला कि यह जख्म तो ठीक हो गया परंतु तेरी पत्नी के ताने का जख्म जो अंदर हो गया है, वह सारी उम्र दिल से नहीं भूलूंगा। पूजनीय बेपरवाह साँईं शाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया कि कड़वा बोलने से जो जख्म बन जाते हैं, वह जल्दी भरते नहीं। तहसीलदार को अपनी गलती का पूरी तरह अहसास हो चुका था। उसने पूजनीय बेपरवाह साँईं शाह मस्ताना जी महाराज से हाथ जोड़कर माफी मांगी। Shah Mastana Ji

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