आखिर क्या है शास्त्री जी की मौत का राज ?

the tashkent files

जानने के लिए जरूर देखें ‘द ताशकंद फाइल्स’

हिन्दुस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत की गुत्थी आज भी एक सवाल बना है। उनकी मौत कैसे हुई, यह पूरा देश जानना (the tashkent files) चाहता है क्योंकि अब तक बताया ये जाता रहा है कि वर्ष 1965 में भारत-पाक जंग के उपरांत साल 1966 में दोनों देशों के बीच हुए ताशकंद समझौते के महज 12 घंटे के भीतर ही शास्त्री जी की मौत हो गई थी लेकिन मौत की वजह क्या थी, यह कोई नहीं जानता। आज 43 साल बाद भी इस राज से पर्दा नहीं उठ पाया है। शायद अब यह राज खुलने जा रहा है। बॉक्स आॅफिस पर आज से रिलीज होने जा रही फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ की कहानी भी शास्त्री जी की मौत की गुत्थी पर ही आधारित है।

फिल्म में दिखाया गया है कि शास्त्री जी की मौत को उनके साथ मौजूद एक पत्रकार कुलदीप नैयर ने किस प्रकार से नजदीकी से देखा है। फिल्म (the tashkent files) निर्देशक की मानें तो यह फिल्म पत्रकार कुलदीप नैयर की आंखों देखी दास्तां है। इसलिए तो फिल्म की रिलीजिंग से पहले ही बवाल हो गया है। कांग्रेस पार्टी के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र ने कानूनी नोटिस भेजकर फिल्म पर रोक लगाए जाने की मांग की है। इतना ही नहीं फिल्म के खिलाफ कांग्रेस ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड को भी खत लिखकर शिकायत की है।

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत की गुत्थी को लेकर आधारित विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ एक मल्टीस्टारर मूवी है जिसमें मिथुन चक्रवती, श्वेता बसु प्रसाद, पंकज त्रिपाठी, नसीरुद्दीन शाह, मंदिरा बेदी और पल्लवी जोशी लीड रोल में हैं। लाल बहादुर शास्त्री के जीवन में सबसे ज्यादा विवादास्पद उनकी मौत की घटना रही है। भारत से बाहर हुई उनकी मौत पर आज भी सवालिया निशान उठते रहते हैं।

ऐसे में इस विषय पर बनने वाली फिल्म में क्या होगा, इसपर भी कयास लगने लगे हैं। लेकिन उनकी मौत के वक्त उनके होटल (the tashkent files) में ही मौजूद पत्रकार कुलदीप नैयर उनकी मौत को कैसे देखते हैं, यह जानने वाली बात है। कुलदीप नैयर के अनुसार कैसे घटित हुआ था यह मामला? 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद ही (11 जनवरी) को लाल बहादुर शास्त्री का अचानक रहस्यमयी परिस्थितियों में निधन हो गया था। उनकी मौत की गुत्थी को ही फिल्म में दिखाने का प्रयास किया गया है। रिलिजिंग से पहले ही यह फिल्म विवादों में आ गई है।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोत्रों ने फिल्म की रिलीज के खिलाफ निर्माताओं को लीगल नोटिस भेजा है। शास्त्री जी के पोत्र कांग्रेस से जुड़े हैं। नोटिस में कहा गया है कि फिल्म के रिलीज होने से शांति भंग होगी। लोकसभा चुनाव के समय फिल्म रिलीज होने पर गलत प्रभाव पड़ेगा।

यह भी कहा गया है कि फिल्म के रिलीज को लेकर शास्त्री परिवार के किसी भी सदस्य से किसी भी तरह से कोई अनुमति नहीं ली गई है। फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने नोटिस मिलने की पुष्टि भी की है। एक बयान में विवेक ने कहा है कि कांग्रेस के प्रमुख सदस्य और पूर्व सचिव द्वारा हमसे फिल्म की रिलीज रोकने की मांग की गई है। वो लाल बहादुर शास्त्री के पोत्र हैं और गांधी परिवार के करीबी सहयोगी भी हैं।

ताशकंद समझौते के बाद आखिर क्या हुआ था उस रात

1965 में भारत ने पाकिस्तान के कश्मीर पर हमले के बाद कच्छ की ओर से पाकिस्तान में सेना को भेजने का निश्चय किया और पाकिस्तान के अच्छे-खासे इलाके का अतिक्रमण कर लिया। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने 1966 में हुए ताशकंद समझौते में पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल के जीते इलाके वापस कर दिए। जिसके बाद यहां उनकी काफी आलोचना हो रही थी। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ मौजूद पत्रकार कुलदीप नैयर बताते हैं कि देर रात उन्होंने अपने घर पर फोन मिलाया. फोन उनकी सबसे बड़ी बेटी ने उठाया था। फोन उठते ही शास्त्री बोले, ‘अम्मा को फोन दो।’ शास्त्री अपनी पत्नी ललिता को अम्मा कहा करते थे।

उनकी बड़ी बेटी ने जवाब दिया, अम्मा फोन पर नहीं आएंगीं। शास्त्री जी ने पूछा क्यों? जवाब आया क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया है। वो बहुत नाराज हैं। शास्त्री को इस बात से बहुत धक्का लगा। इसके बाद वो परेशान होकर अपने कमरे में चक्कर लगाने लगे। हालांकि कुछ ही देर में उन्होंने फिर से अपने सचिव वेंटररमन को फोन किया। वो भारत में नेताओं की प्रतिक्रिया जानना चाहते थे। उन्हें बताया गया कि अभी तक दो ही प्रतिक्रियाएं आई हैं, एक अटल बिहारी वाजपेयी की और दूसरी कृष्ण मेनन की। दोनों ने ही उनके इस कदम की आलोचना की है।

पत्रकारों को समर्पित बॉलीवुड की पहली फिल्म

डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के अनुसार भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये पहली ऐसी फिल्म है जिसे देश के पत्रकारों को समर्पित किया गया है। मैं पत्रकारों से उम्मीद करता हूं कि वे हाईकमान से सवाल करें क्यों वे ये मूवी रोकना चाहते हैं? क्यों इसकी रिलीज से वे डरे हुए हैं?””ये नोटिस उन्होंने फिल्म देखने के बाद दिया है। उन्होंने 7 अप्रैल को फिल्म देखी थी और तारीफ करते हुए आभार भी जताया था। मुझे सूत्रों से पता चला कि उन्हें ऐसा करने के लिए गांधी परिवार से आदेश मिला है। शास्त्री जी के पोतों को बलि का बकरा बनाया गया है। मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि कांग्रेस के बड़े नेता ऐसा क्यों करेंगे? क्यों कांग्रेस ये फिल्म बंद करना चाहेगी? मुझे लगातार क्यों धमकाया जा रहा है?” इशारों-इशारों में गांधी परिवार का नाम लिए बिना विवेक ने कहा है कि, ”वे फिल्म की रिलीज से क्यों डरे हुए हैं ?

मृत शास्त्री को देखने आधी रात पहुंचे अयूब खान

कुलदीप बताते हैं कि उस समय भारत-पाकिस्तान समझौते की खुशी में होटल में पार्टी चल रही थी और चूंकि वे शराब नहीं पीते थे तो वे अपने कमरे में आ गए और सो गए। सपने में उन्होंने देखा कि शास्त्री जी का देहांत हो गया है। वे बताते हैं कि उनकी नींद दरवाजे की दस्तक से खुली। सामने एक रूसी औरत खड़ी थी, जो उनसे बोली, “यॉर प्राइम मिनिस्टर इज डाइंग।”कुलदीप नैयर बताते हैं कि वे तेजी से अपना कोट पहनकर नीचे आये। वहां पर रूसी प्रधानमंत्री कोसिगिन खड़े थे।

और उन्होंने कुलदीप नैयर से कहा, शास्त्री जी नहीं रहे। वहां पर बहुत बड़े से एक पलंग पर शास्त्री जी का छोटा सा शरीर सिमटा हुआ पड़ा था। कुलदीप नैयर बताते हैं कि वहां पर जनरल अयूब भी पहुंचे और कहा, “हियर लाइज अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगैदर” (यहां एक ऐसा आदमी लेटा हुआ है, जो भारत और पाकिस्तान को साथ ला सकता था)

मरणोपरांत 1966 में मिला भारत रत्न

शास्त्री जी को 1966 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। आज भी लोग मानते हैं कि शास्त्री जी की मौत के बाद कई सवालों के उत्तर नहीं दिए जा सके हैं। कुछ लोग मौत के बाद उनके शरीर पर दिखने वाले निशानों और पंचनामा न कराए जाने की बात का जिक्र भी करते हैं।

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