उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की भूमिका पर उठाए सवाल
Supreme Court: नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने न्यायपालिका की सीमाओं और भूमिका को लेकर गहन चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख कार्य संविधान की व्याख्या करना है और यह कार्य कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा ही किया जाना चाहिए। धनखड़ ने स्पष्ट कहा कि संविधान में कहीं यह प्रावधान नहीं है कि न्यायपालिका राष्ट्रपति को आदेश दे सकती है। उन्होंने कहा, “संविधान राष्ट्रपति को देश की सेना का सर्वोच्च कमांडर और संविधान की रक्षा, संरक्षण और पालन का उत्तरदायी बनाता है। ऐसे में न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश देना संविधान की भावना के विपरीत है।” Jagdeep Dhankhar News
अदालत द्वारा राष्ट्रपति को निर्णय लेने का निर्देश दिया | Jagdeep Dhankhar News
उन्होंने हाल की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि “अदालत द्वारा राष्ट्रपति को एक तय समय-सीमा में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया, जो न्यायिक दायरे से परे है। न्यायपालिका का कर्तव्य संविधान के दायरे में रहकर उसकी व्याख्या करना है, न कि कार्यपालिका की भूमिका निभाना।” उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 का जिक्र करते हुए इसे लोकतांत्रिक संतुलन के लिए एक चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान अब ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ की तरह हो गया है, जो हर समय न्यायपालिका के पास उपलब्ध रहता है।
धनखड़ ने ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत की स्थापना की, लेकिन इसके दो वर्ष बाद आपातकाल लगने पर लाखों नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए और न्यायालय ने भी उस समय इस सिद्धांत की रक्षा नहीं की। उन्होंने न्यायपालिका की जवाबदेही पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “देश में हर सांसद और उम्मीदवार को अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करनी होती है, लेकिन जजों पर यह नियम लागू नहीं होता। क्या यह उचित है?” उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह ज़रूरी है कि नागरिक जागरूक रहें और ऐसे सवालों पर चर्चा करें। उन्होंने यह अफसोस भी जताया कि आज आम जनता को इन मुद्दों पर भ्रमित करने वाली कहानियां परोसी जा रही हैं। Jagdeep Dhankhar News
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